विचार / लेख

हिटलर, अम्बेडकर और माओ!
26-Dec-2023 2:52 PM
हिटलर, अम्बेडकर और माओ!

  रणजित मेश्राम

शीर्षक पढक़र किसी को भी अचंभा होगा। जैसे मुझे लिखते हुए हो रहा है! पर, ऐसे ग्रहण न करें। समकालीन और वैश्विक। केवल इतना ही संबंध है इसका संदर्भ भी।

1889 में अडोल्फ हिटलर, 1891 को भीमराव अम्बेडकर और 1893 को माओ त्से तुंग इन तीनों महाचर्चित लोगों का दो-दो वर्ष के अंतराल में जन्म हुआ। तीनों के अलग-अलग देश। अलग पृष्ठभूमि। विविधतापूर्ण अवरोध। तब भी, ये तीनों अपने-अपने देश में लोक नेता सिद्ध हुए।

इनमें से दो लोगों को राष्ट्रप्रमुख होने का अवसर मिला। तीसरे ने भी प्रयास किया पर असफल रहे। वे दोनों मृत्युपर्यंत राजनीतिक सत्ता में रहे। तीनों में से एक ने देश बनाया, एक ने देश को डुबाया और एक ने देश को दिशा दी।

तीनों के जीवन में पिता की भूमिका महत्वपूर्ण थी। पिता के मामले में आम्बेडकर धनी सिद्ध हुए। आम्बेडकर की प्रगतिशील नींव बनाने का काम पिता ने किया। इस मामले में हिटलर और माओ वंचित रहे।

दोनों के पिता बहुत अत्याचारी थे। चड्डी गीली होने तक मारते थे। पिता के कारण दोनों का बचपन नष्ट हुआ। तीनों की माँएँ ममत्व भरी थीं। बच्चों पर मां के प्राण न्योछावर होते। माओ की मां बौद्ध स्त्री थी।

हिटलर एक चित्रकार था तो माओ कवि। आम्बेडकर संगीत पारखी थे। तीनों का ही जन नेतृत्व से उदय हुआ। तीनों में हिटलर कुशल वक्ता थे। उनकी देह भाषा और संवाद शैली लोगों को घंटों-घंटों तक बांधकर रखती थी। द्वेष निर्मित करने में उसकी सानी न थी। वही लोगों को समझ आती और लोगों में आग पैदा करती। हाईल हिटलर .. हाईल हिटलर का उद्घोष लोगों में व्याप जाता।

अम्बेडकर और माओ के आंदोलन के पीछे विचारधारा थी। वह केवल राज्य क्रांति का आह्वान मात्र नहीं था। दासता के विरूद्ध स्वतंत्रता थी। बस, दोनों के विचार सूत्र में बहुत अंतर था।

हिटलर के पिता कस्टम में अधिकारी थे तो माओ के पिता किसान। आम्बेडकर के पिता सेना में सूबेदार थे। तीनों के जीवन में नगरीय संस्कृति बाद में आई। उनके जन्म गांव का नाम हिटलर (ब्रानाऊ), माओ (चांगशा) व आंबेडकर (महू) है।

तीनों में माओ ने अधिक उम्र पाई। वे 83 वर्ष तो हिटलर 56 वर्ष और अम्बेडकर 65 वर्ष तक जीवित रहे। हिटलर को ‘फ्युरर’, माओ को ‘चेयरमैन माओ’ व अम्बेडकर को ‘बाबासाहेब’ की उपाधि लोगों ने दी। तीनों का मृत्यु दिवस बताया जाए तो हिटलर की 30 अप्रैल 1945, माओ की 9 सितम्बर 1976 और अम्बेडकर की 6 दिसम्बर 1956 है।

1933 में हिटलर जर्मनी का चांसलर हुआ। फिर उसने विश्व को बरगलाया। दूसरे भयंकर विश्व युद्ध का जनक बना। उसी में डूब गया। अवध्य ‘अजेय ‘अशरण’ गप्प सिद्ध हुई। सत्ता के बल पर क्रूरता की प्रतिमा निर्मित करनेवाला लोगों की भत्र्सना के समक्ष आत्महत्या करने का बाध्य हुआ। एक झटके में। वहीं विश्व में अपनी खलनायक की अमिट छाप छोड़ गया।

1934 में माओ ने लॉंग मार्च निकाला। उसके साथ एक लाख लोग थे। 1935 में चीनी साम्यवाद नामक राजनीतिक दल का प्रमुख हुआ। माओ का आग्रह था कि किसान को ही विचारों के केंद्र में होना चाहिए। उसने माक्र्सवाद को चीनी स्वरूप प्रदान किया। ‘क्रांति बंदूक की नोक से ही आती है’ यह उसका प्रिय सत्तात्मक विचार सूत्र था। सांस्कृतिक क्रांति के लिए उसने स्वयं को प्रतिबद्ध कर रखा था। उनकी उपलब्धियाँ इस तथ्य से उजागर होती है कि उन्होंने चीन को एक महाशक्ति बना दिया।

1936 में अम्बेडकर ने स्वतंत्र मजदूर दल की स्थापना की थी। वह अपने समय का अपने लक्ष्य को प्राप्त करने वाला राजनीतिक दल था। राजनीतिक दृष्टि से सफल भी हुआ था। 1937 के चुनाव में इस दल के आम्बेडकर समेत चौदह लोग चुने गए थे। ये चौदह लोग सम्मिलित समाज से थे। आगे चलकर विलक्षण घटनाक्रमों के कारण अम्बेडकर को बाध्य होना पड़ा कि वे यह दल विलोपित करें। बाद में 1942 को आम्बेडकर ने शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन नामक नए राजनीतिक दल की स्थापना की। उन्होंने स्वतंत्रता के तीन माह पहले संविधान सभा में राज्य समाजवाद के जो राजनीतिक सूत्र दिए थे, वे बेहद महत्वपूर्ण थे। वे नीतिपूर्ण जीवन और सामाजिक-आर्थिक समता की महत्ता से अपार प्रेम करते थे। वे मानते थे कि धर्म हो या सत्ता, वह मनुष्य के लिए है।

ऐसी थी तीनों की यात्रा। तीनों में से एक को उसके देश के बाहर भुला दिया गया है। और दो अपने-अपने देश में स्मृतियों के चरम पर हैं।

और यह चरम रोज दर रोज बढ़ता चला जा रहा है। अनुवाद-हेमलता महिश्वर

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news