विचार / लेख

मीलों फैले खेतों से प्रकृति बुरी तरह असंतुलित
26-Dec-2023 2:57 PM
मीलों फैले खेतों से प्रकृति बुरी तरह असंतुलित

सिद्धार्थ ताबिश

चावल, गेहूं और गन्ना उगाने को लोग उपलब्धि बता रहे हैं।। और किसानों की जय जयकार कर रहे हैं।। जबकि ये न तो कोई पुण्य का काम है, न ही प्रकृति को बचाने का, न ही मिट्टी को संरक्षित करने का।। ये पूरी तरह से व्यवसाय है।। वैसा ही व्यवसाय जैसे कोई भी शहर या किसी अन्य क्षेत्र का व्यक्ति करता है। किसानी भी उतना ही इज्ज़तदार पेशा है जितना कोई अन्य।। जैसे कसाई अपनी आजीविका के लिए पशुओं को काटता है वैसे ही किसान अपनी जीविका के लिए अन्न बोता है।। जब कोई भी व्यक्ति अपने स्वयं के खाने के लिए मुर्गा या मछली काटता है तो वो कसाई नहीं बन जाता है वैसे ही कोई भी व्यक्ति जो स्वयं के खाने के सब्ज़ी या अन्न बोता है तो वो किसान नहीं कहलाता है।। किसानी एक पेशा है, कोई दैवीय या पुण्य काम नहीं।। मेरा लक्ष्य या ज़ोर प्रत्येक व्यक्ति के स्वयं के लिए सब्ज़ी या अन्न बोने पर है।। मैं कमर्शियल किसानी के महिमामंडन के पक्ष में नहीं हूं।

आप उत्तर प्रदेश के हों या किसी अन्य प्रदेश के, अगर आप खेत रखे बैठे हैं और उसमें गन्ना, गेहूं, चावल और बाकी अन्न ही ही उगाते हैं तो आप महापुरुष या अन्नदाता नहीं बन जाते हैं मेरे लिए।। आप व्यवसाई हैं और आप गन्ना बोने के लिए जितनी भी मेहनत करते हैं वो अपने व्यवसाय के लिए करते हैं, कोई मानवतावादी कार्य आप नहीं कर रहे हैं।। आप की मेरे नजऱ में उतनी ही इज़्ज़त है जितनी शहर में बैठे किसी हलवाई, पंसारी, परचून वाले या गोलगप्पे वाले की।। हलवाई की मिठाई अगर बीमारी और परेशानी का कारण है तो अपना गन्ना उस बीमारी का मूल है।  मगर लोग मिठाई वालों को कोसते हैं गन्ना बोने वालों को अन्नदाता बोलते हैं।। ये बेवकूफी हमारी नियति है।

मेरे लिए महापुरुष वो हैं जो प्रकृति और उसके साथ एकरूपता की बात करते हैं और उस विषय पर काम करते हैं। (बाकी पेज 8 पर)

जो ये समझते हैं कि अत्यधिक किसानी और अन्न बुवाई ने मिट्टी की जान को ख़त्म कर दिया है और ये दिल्ली और मुंबई के प्रदूषण से पांच सौ गुनी अधिक बड़ी समस्या है जो आने वाले समय में हमारी नस्लों के लिए काल बनेगी।। इसलिए व्यावसायिक किसानी मेरे लिए अब एक दुस्वप्न है

मैं ये कामना करता हूं कि अब शहरों के लोग गावों में ज़मीनें खरीदें और स्वयं के लिए सब्जिय़ां और बाकी चीज़ उगना शुरू करें ताकि व्यावसायिक किसानी पर लगाम लगाया जा सके।। हर व्यक्ति स्वयं का अन्नदाता बने और कमर्शियल अन्नदाताओं की महिमा बंद करे।। शहर के पढ़े लिखे और समझदार लोग यदि ज़मीनों पर काम करना शुरू करेंगे तो खेती के उन्नत और प्राकृतिक तरीके पर काम करेंगे।। वो फल सब्जियां और प्राकृतिक संतुलन को प्राथमिकता देंगे और वो ये सुनिश्चित करेंगे कि मीलों में फैले गेहूं और धान के खेत बिना फलदार वृक्षों और पेड़ों के प्रकृति को बुरी तरह से असंतुलित कर रहे हैं।। पढ़े लिखे लोग इसे संतुलित करें और कमर्शियल अन्नदाताओं से धरती, मिट्टी और खेतों की कमान अपने हाथों में ले लें।

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