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कांग्रेस की क्राउडफंडिंग के मायने
28-Dec-2023 4:54 PM
कांग्रेस की क्राउडफंडिंग के मायने

 विनीत खरे-पायल भुयन

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ‘डोनेट फॉर देश’ नाम से ऑनलाइन क्राउडफंडिंग कैंपेन की शुरुआत की है।

18 साल से अधिक उम्र के भारतीय 138 रुपए, 1380, 13,800 या फिर और ज्यादा चंदा पार्टी को एक खास डिजाइन की गई वेबसाइट से दे सकते हैं।

इस वेबसाइट की लॉन्चिंग के मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा, ‘ये पहली बार है कि कांग्रेस पार्टी ने आम जनता से मदद लेकर देश को बनाने के लिए ये क़दम उठाया है।’

क्राउडफंडिंग वेबसाइट के लगातार अपडेट हो रहे डोनेशन डैशबोर्ड के मुताबिक, अभियान के तहत छह करोड़ रुपये से ज़्यादा इक_ा हो चुके हैं और पार्टी के मुताबिक अब तक करीब दो लाख लोग इस अभियान से जुड़ चुके हैं।

बीबीसी से बातचीत में कांग्रेस कोषाध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि कैंपेन की शुरुआत का मतलब ये नहीं है कि पार्टी के पास संसाधनों की कमी है।

वो कहते हैं, ‘हम ये उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि इससे हमारा चुनाव का खर्चा निकल जाएगा। ये तो हमारा टारगेट भी नहीं है। ये एक राजनीतिक गतिविधि है, जिससे हम लोगों को जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं।’

संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के मुताबिक़, साल 2021-22 में देश की आठ प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में करीब 6,046।81 करोड़ की संपत्ति के साथ भाजपा सबसे आगे है जबकि कांग्रेस के पास करीब 806 करोड़ रुपये की संपत्ति है।

यानी भाजपा के पास कांग्रेस से सात गुना से भी ज़्यादा संपत्ति है और ये बात छिपी नहीं कि भारत में चुनाव लडऩा बेहद महंगा है।

‘डोनेट फॉर देश’

‘डोनेट फॉर देश’ कैंपेन की टाइमिंग को लेकर किए गए सवाल पर अजय माकन मानते हैं, ‘’मैं समझता हूँ कि ये पहले होना चाहिए था जितना ये पहले होता उतना हमारा जनता से बेहतर कनेक्ट हो पाता।’’

कांग्रेस के ‘डोनेट फॉर देश’ कैंपेन की शुरुआत के वक़्त को लेकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पीएचडी अराध्य सेठिया कहते हैं, ‘अब ये बहुत लेट हो गया है। अब लोगों को लगेगा कि इनको कैंपेन चलाने के लिए इनको पैसे चाहिए और हम पैसे दे रहे हैं।’

अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा के मुताबिक, ‘देर आए दुरुस्त आए। पैसा आ रहा है, देर से आ रहा है, क्या फर्क़ पड़ता है।’

तो वहीं सत्तारूढ़ भाजपा ने कांग्रेस के इस कैंपेन को गांधी परिवार को समृद्ध करने की एक और कोशिश बताया है।

भाजपा प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने कहा, ‘साठ साल ‘लूट फ्रॉम देश’ करते-करते आज कैंपेन ये चला रहे हैं ‘डोनेशन फॉर देश’। साठ वर्षों तक ‘जीप स्कैम’ से लेकर ‘अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम’ तक, ‘नेशनल हेरल्ड स्कैम’ तक आपने देश की पाई-पाई लूटी, लाखों करोड़ों रुपए का गबन किया, लूट फ्रॉम देश किया और आज आप कैंपेन चला रहे है ‘डोनेशन फ्रॉम देश’।’

कांग्रेस के इस कैंपेन की शुरुआत के ठीक पहले भाजपा ने तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हराया था, तो वहीं कांग्रेस पर आरोप लगे कि उसकी वजह से चुनावी कैंपेन के दौरान ‘इंडिया अलायंस’ की गतिविधियां रुक सी गईं।

इस बीच तमाम सर्वे कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं।

भाजपा उनके तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का विश्वास जता रही है और विपक्ष के सामने चुनौती है कि भाजपा को लगातार तीसरी बार संसदीय चुनाव जीतने से कैसे रोका जाए।

संसद की सुरक्षा में सेंध पर संसद में हंगामे के बाद करीब 150 सांसदों का संसद से निलंबन सरकार और विपक्ष के बीच टकराव का ताज़ा उदाहरण है।

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय झा के मुताबिक, विपक्ष के लिए अगले चुनाव के नतीजे ‘करो या मरो’ की स्थिति है।

क्या है ये कैंपेन?

जानकारों के मुताबिक़, क्राउडफंडिग का मक़सद पैसा इक_ा करने के अलावा समर्थकों को ये महसूस कराने का भी है कि पार्टी में उनका भी हिस्सा है।

कांग्रेस के सामने ये भी चुनौती होगी कि वो इस कैंपेन से कितनी बड़ी संख्या में लोगों को जोड़ पाती है।

अजय माकन कहते हैं, ‘जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का इस्तेमाल करती आ रही है तो ये (संसाधन जुटाना) चुनौती तो है ही, इसके बावजूद हमारी आर्थिक स्थिति खऱाब नहीं है।’

विपक्ष लगातार सरकार पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाती रही है। सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया है।

कांग्रेस इस कैंपेन के जरिए कितनी रकम जुटाना चाहती है, इस सवाल पर अजय माकन कहते हैं, ‘क्राउडफंडिंग का कोई टारगेट नहीं रखा गया है। फिलहाल 80 प्रतिशत से ज़्यादा पैसा यूपीआई के माध्यम से आ रहा है। हम कैंपेन के ज़रिए जमा पैसों का 50 प्रतिशत फिक्स्ड डिपॉजि़ट में डाल देंगे। इससे कमाया गया ब्याज पार्टी के कामकाज पर खर्च किया जाएगा। बाकी का पैसा राज्य इकाइयों को दे दिया जाएगा। लेकिन उसे भी कैश में नहीं दिया जाएगा।’’

नागपुर में होने वाली कांग्रेस की रैली में हर जगह क्यूआर कोड लगा कर लोगों से डोनेट कराने की योजना है। साथ ही भविष्य में पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए लोगों में मर्चेंडाइज़ बाँटने का भी प्लान है।

अजय माकन कहते हैं, ‘ये तो कोई सोच ही नहीं सकता कि क्राउडफंडिंग से चुनाव निकाल ले। ये संभव है ही नहीं। संसाधन तो हमें क्राउड फंडिंग के अलावा भी चाहिए होंगे।’

उन्होंने बताया कि वेबसाइट पर हजारों मैलवेयर हमले हो चुके हैं और कई हमलों का मकसद डेटा चुराने का था।

वो कहते हैं, ‘हमने एक भी हमले को कामयाब नहीं होने दिया है। हमारी वेबसाइट एक मिनट के लिए भी धीमी नहीं हुई है। हमारी क्षमता 5,000 ट्रांजैक्शन प्रति मिनट की है।’

धन जुटाने की होड़

नजदीक आते चुनावों में संसाधनों के असंतुलन की बहस के केंद्र में इलेक्टोरल बॉन्ड्स है।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स यानी चंदा देने का वित्तीय ज़रिया, जिसे कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदकर राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है।

भारत सरकार ने इस योजना की शुरुआत करते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था को साफ कर देगा।

लेकिन पिछले सालों में ये सवाल बार-बार उठा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वालों की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के त्रिलोचन शास्त्री कहते हैं, ‘पूरी दुनिया में, कोई भी लोकतंत्र ले लीजिए आप, हर कहीं पाई पाई का हिसाब होता है। जनता को मालूम होता है कि किसने कितना पैसा दिया। उसमें रोक होती है। वो रोक भी हटा दी उन्होंने।’

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 और 2021-22 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले पैसे का सबसे ज़्यादा हिस्सा सत्तारूढ़ भाजपा को मिला।

कांग्रेस की लोगों तक पहुँच

हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा कहते हैं, ‘कांग्रेस पब्लिक आउटरीच कर रही है और जनता को अपना मैसेज भी पहुंचा रही है और देख रही है कि कितना उसको रेस्पॉन्स मिलेगा, कितने लोग उसके साथ जुड़ेंगे।’

‘आज के दिन कोई भी उद्योगपति विपक्ष को पैसा देता नजर नहीं आना चाहता। उनको क्या डर है, ये तो वो स्वयं ही बता सकते हैं।’

‘लेकिन हमें पता है कि वो खुले तौर पर विपक्ष को पैसा देने से घबराते हैं क्योंकि उनको लगता है कि कहीं इससे जो सत्ता में बैठी पार्टी है वो कहीं उससे नाराज़ न हो जाए।’

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में पीएचडी कैंडीडेट अराध्य सेठिया के मुताबिक, अभी भी चुनाव में ख़र्च होने वाला ढेर सारा पैसा कैश में आता है।

वो कहते हैं, ‘कानून ये कहता है कि अगर डोनेशन 20 हजार रुपये से ज़्यादा है तो आपको बताना होगा। लेकिन वो ये नहीं कहता कि कोई कितनी बार 20 हजार या उससे कम का चंदा दे सकता है।’

‘ज़्यादातर पार्टियां जिनमें राष्ट्रीय पार्टियां भी शामिल हैं, इस चीज़ की जानकारी नहीं देती हैं। उनका तर्क है कि ये तो 20 हजार से कम की रकम है’’

कांग्रेस का कैंपेन

कांग्रेस का दावा है कि उसका ये अभियान आजादी से पहले वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के लिए शुरू किए गए महात्मा गांधी के ऐतिहासिक तिलक स्वराज फंड से प्रेरित है।

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी अपनी पार्टी के गठन के बाद क्राउडफंडिंग से पैसा जुटाया था।

पश्चिमी देशों में पार्टियां क्राउड फंडिंग के ज़रिए पैसा इक_ा करती हैं। वहां पार्टी का सदस्य बनने के लिए भी फीस होती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में पीएचडी कैंडीडेट अराध्य सेठिया के मुताबिक अगर कांग्रेस क्राउडफंडिंग कैंपेन को किसी अंडरडॉग की तरह लेती है तो उसे बहुत फायदा नहीं होगा।

वो कहते हैं कि ‘अगर कांग्रेस इस सोच के साथ जाएगी कि हाँ हम मज़बूत हैं, हम भाजपा के खिलाफ बड़ी ताकत हैं और अगर आपको राजनीतिक में हिस्सा लेना है तो पैसा दीजिए’ तब पैसा इक_ा करने की कोशिश कामयाब हो सकती है।

अराध्य सेठिया के मुताबिक राजनीति में पैसा महत्वपूर्ण है लेकिन कोई भी चुनाव सिर्फ पैसे से नहीं जीता जाता। पार्टी का चेहरा, नेतृत्व, संगठन और विचारधारा भी पार्टी के प्रदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

एक सोच ये भी है कि अगर इस क्राउड फंडिंग की कोशिश कांग्रेस के बजाए 28 विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया अलायंस की तरफ से होती तो शायद उसकी प्रतिक्रिया और बेहतर होती, और विपक्ष लोकतंत्र बचाने के अपने राजनीतिक संदेश को भी आगे बढ़ा पाता।  (bbc.com)

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