विचार / लेख

रेलयात्रा के नोट्स
30-Dec-2023 3:32 PM
रेलयात्रा के नोट्स

दीपक तिरुआ

एक युवा लडक़े और उसकी गर्लफ्रेंड में बहस हो रही है।

मेरे कान में इयरफोन ठुंसा है, इसलिए वे मेरी परवाह नहीं कर रहे। मैं चाहता भी नहीं, इसलिए उधर देख भी नहीं रहा।

उनकी प्राइवेट बातों के बीच पॉलिटिक्स घुस आयी है और मैंने चुपके से इयरफोन पे गाना बंद कर लिया है।

लडक़ा समझा रहा है, ‘डेमोक्रेसी का मतलब है कि अगर चार लोग हैं तो चारों की सुनी जाये। ये नहीं कि तीन आपकी साइड हैं, तो आप चौथे को दबा लो।’

लडक़ी मानने को तैयार नहीं है। ‘डेमोक्रेसी है, तो जो लोग चाहेंगे वही होगा। लोग उन्हें पसंद कर रहे हैं, तभी तो चुन रहे हैं।’

‘लोग गलत भी हो सकते हैं।’ वो कह रहा है।

‘तुम्हारे मन की नहीं होगी तो तुम देश की जनता को गलत कह दोगे?’ वो पूछ रही है। ‘तुम हो कौन? क्या समझते हो अपने आपको?’

‘कबीर सिंह देखी है तूने ? गल्र्स के लिए कैसी फिल्म है?’ लडक़ा पूछ रहा है।

‘अब कबीर सिंह इसमें कहाँ से आ गया ?’

‘बता न कैसी है ?’

‘महा घटिया है।’

‘लेकिन सुपरहिट हुई थी। इट मीन्स लोगों ने बहुत पसंद की थी।’

‘लोग साले बेवकूफ हैं। ऐसी ही चीज़ें पसंद करते हैं।’ लडक़ी कह रही है।

अब लडक़ा हँस रहा है। मुझे हवा में ब्रेकअप की बू आ रही है।

मैंने इयरफोन पे एडवांस में, उनके लिए दु:ख भरा गीत चालू कर लिया है।

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