विचार / लेख

विनोद कुमार शुक्ल का विनोदजी बनना
31-Dec-2023 7:34 PM
विनोद कुमार शुक्ल का विनोदजी बनना

  88वें जन्मदिवस, 1 जनवरी पर  

-रमेश अनुपम

विनोद कुमार शुक्ल इस 1 जनवरी 2024 को अपने सुदीर्घ जीवन के 87वां वर्ष पूर्ण कर 88वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं इस अर्थ में वे हिंदी के सबसे सम्माननीय बुजुर्ग कवि-लेखक हैं।

विनोद कुमार शुक्ल आज भी जिस तरह से लेखन के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहते हैं, वह काफी कुछ विस्मित करने वाला है। उनके लेखन का क्षेत्र भी इधर विविध और विपुल होता जा रहा है, जिसमें बहुत सारा लेखन बच्चों और किशोरों के लिए भी है।

विनोद कुमार शुक्ल के लगभग दो काव्य संग्रह के लायक कविताएं और कहानियां अभी अप्रकाशित हैं। विनोद कुमार शुक्ल जिस तरह से प्रचुर मात्रा में लिख रहे हैं उससे लगता है कुछ ही दिनों में इसकी संख्या में काफी इजाफा भी संभव है।

विनोद कुमार शुक्ल के पाठकों की संख्या काफी बड़ी है। हिंदी से बाहर भी उन्हें पढऩे और प्यार करने वाले उनके असंख्य पाठक वर्ग है। इसलिए उनके काव्य संग्रह और कहानी संग्रह की सबको आतुरता के साथ प्रतीक्षा है।

‘मैं दुनिया के सारे सन्नाटे को सुनता हूं। रात में जब नींद नहीं आती है तो मैं मुक्तिबोध की तस्वीर के निकट जाकर बैठ जाता हूं और इस तरह मुक्तिबोध को अपने निकट पाता हूं।’ कहने वाले विनोद कुमार शुक्ल अपने जीवन और लेखन में मुक्तिबोध के सान्निध्य में बिताए हुए दिनों को याद कर इन दिनों बेहद भावुक हो उठते हैं।

विनोद कुमार शुक्ल को गढऩे में जिन पांच विराट चरित्रों की सर्वाधिक उल्लेखनीय भूमिका रही है उनमें उनकी मां श्रीमती रूखमणी देवी, चाचा किशोरी लाल शुक्ल जिन्होंने पिता की असमय मृत्यु के पश्चात पूरे परिवार को आश्रय दिया, विनोद जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुधा शुक्ल, हरिशंकर परसाई तथा मुक्तिबोध प्रमुख हैं।

जबलपुर में कृषि महाविद्यालय में अध्ययन के दरम्यान विनोद कुमार शुक्ल को हरिशंकर परसाई का सान्निध्य मिला। विनोद कुमार शुक्ल अक्सर परसाई जी के नेपियर टाउन स्थित उनके घर जाया करते थे।

राजनांदगांव के दिग्विजय महाविद्यालय में मुक्तिबोध की नियुक्ति के पश्चात अपने बड़े भाई संतोष शुक्ल जो मुक्तिबोध के छात्र थे, उनके साथ मुक्तिबोध के बसंतपुर निवास में जाकर पहले पहल मिलना विनोद जी को आज रोमांचित करता है कि किस तरह शाम की गहरे धुंधलके में मुक्तिबोध अपने हाथों में कंदील लेकर बाहर निकले थे जिसकी रोशनी पहले आई थी, रोशनी के पीछे-पीछे मुक्तिबोध आए थे, किसी कविता की अपूर्व बिम्ब की तरह।

साहित्य और अपने लेखन को लेकर विनोद कुमार शुक्ल का यह कथन दुनिया के किसी भी बड़े कवि या लेखक के कथन की तरह है, अभी हाल ही में रायपुर के शैलेंद्र नगर स्थित अपने घर में उन्होंने कहा था कि ‘आप जो लिख रहे हैं, वह अपने लिए नहीं लिख रहे हैं। आप जो भी लिख रहे हैं वह सब ओर बिखर जायेगा और बिखरकर सब तक पहुंच जाएगा। मेरा लिखा हुआ अगर बिखर कर सब तक नहीं पहुंचा तो मेरा लिखा हुआ एक पेड़ की तरह हो जायेगा जिससे लोग मेरी छाया में सुस्ता सकें।’

अभी हाल ही में दिसंबर के माहांत में विनोद जी के पास इजरायल से एक मेल आया है जिसमें मरीना रिम्शा ने उनकी तीन कविताओं ’हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था’, ‘जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे’ और ’जीने की आदत’ के हिब्रू और अंग्रेजी में अनुवाद करने की इजाजत मांगी है।

मरीना रिम्शा ने विनोद कुमार शुक्ल को भेजे गए अपने मेल में लिखा है कि उनकी इन कविताओं के हिब्रू भाषा में अनुवाद से इजरायल और फिलिस्तीन युद्ध में आहत नागरिकों को राहत मिलेगी।

विनोद कुमार शुक्ल का एक काव्य संग्रह अंग्रेजी में भी आने को है। अमेरिका में अरविंद कृष्ण मल्होत्रा इस कार्य को पूरी गंभीरता और ईमानदारी से सम्पन्न करने में जुटे हुए हैं। अंग्रेजी में अनुदित विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं की अनुवाद की किताब भी आगामी फरवरी 2024 में अमेरिका से प्रकाशित होने जा रही है।

विनोद कुमार शुक्ल ने बीते दस पंद्रह वर्षों में बच्चों और किशोरों के लिए ढेर सारा साहित्य लिखा है जो अब तक के प्रचलित और लोकप्रिय बाल साहित्य के खांचे में कहीं फिट नहीं बैठता है। यह हिन्दी का वैसा बाल साहित्य भी नहीं है जो सर्वमान्य और सर्वस्वीकृत है।

‘नजर लागी राजा’ विनोद कुमार शुक्ल की एक अलक्षित कविता है जिस पर किसी काव्य पारखी, गुणगाहक या समीक्षक की दृष्टि अब तक नहीं गई है। इस कविता से विनोद कुमार शुक्ल का नाम हटा दिया जाए तो पहचान करनी मुश्किल होगी कि यह विनोद कुमार शुक्ल की कोई कविता है। उनकी यह कविता अपनी अंतर्वस्तु, रूप और भाषा सबमें अलग और अनूठी है।

हिंदी के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना यह मानते हैं कि विनोद कुमार शुक्ल की यह कविता काव्य की दृष्टि से एक विलक्षण कविता है। वे यह भी मानते हैं कि ’नजर लागी राजा’ जैसी कविता समकालीन हिंदी कविता में अन्यत्र नहीं है। यह समकालीन हिंदी कविता की उपलब्धि है।

इस कविता का जिक्र करने पर स्वयं विनोद कुमार शुक्ल कुछ कम चकित नहीं होते हैं। उन्हें दुख है कि इस सुंदर कविता पर अब तक किसी की भी दृष्टि नहीं गई है। विनोद कुमार शुक्ल की यह कविता उनके छठवें और अब तक अंतिम काव्य संग्रह ‘कभी के बाद अभी’ (प्रकाशन वर्ष सन 2012) में संग्रहित है। बहरहाल विनोद कुमार शुक्ल की कविता ‘नजर लागी राजा’ उनके 88 वें जन्मदिवस 1 जनवरी के अवसर पर प्रस्तुत है -

नजर लागी राजा
नजर लागी राजा काले चश्में में
अब तू यह चश्मा उतार दे
मैं बहुत सांवली हूं
काले चश्मे से मैं नहीं दिखूंगी।
राजा! चश्मा उतार दे
और नजर मिला ले
अपने सांवलेपन में मैं अच्छी दिखूं
इसलिए मैं तेज धूप में खड़ी हूं।
काले चश्मे की बदली ने तुम्हारी आंखों को
और मुझे और सांवला ढंाक दिया है
काला चश्मा उतार कर मुझे पूरा उघार दे
और मुझे नजर लगा दे।

सचमुच तू यह चश्मा उतार दे
मैं बहुत सांवली
अंधेरी रात में तुमसे मिलना चाहती हूं
तेरे काले चश्मे से पूर्णिमा का गोरा चन्द्रमा भी
नहीं दिखता होगा
धूप का चश्मा लगाने वाले
चश्मा उतार दे
रात में कहीं धूप होती है?
मुझे और धूप को देखे हुए तुम्हें बहुत
दिन हो गए
मैं बहुत सांवली हूं
काला चश्मा उतार कर केवल मुझे देखोगे
तो लगेगा तुमने काला चश्मा नहीं उतारा।

राजा! प्रेम का संसार बुझ गया
मेरी छाती चकमक पत्थर की तरह कठोर और गोल हैं
तुम्हारे हाथ भी चकमक पत्थर की तरह कठोर हैं
हाथों के आघात से जो चिनगारी पैदा होगी
उसी की यह बुझता संसार प्रतीक्षा कर रहा है
कि जल उठे
और प्रेम की अग्नि को पा सके
परन्तु राजा! मैंने तुम्हारे ह्रदय को पत्थर नहीं कहा।

राजा! तुम्हारा काला चश्मा मैं क्यों चुराऊंगी
क्या तुम इसे पहने सो रहे?
कई रातों की जागी
तुममें जो मेरा मन बसा है
तुम तक मुझे बुलाता है
चलते-चलते तुम्हारी दूरी से थकी
एक दिन तुम्हारे बिछौने पर
तुम्हारे साथ सो जाऊंगी
तुम चश्मा पहने सो रहे होगे
और मैं तुमको चश्मा सहित चुरा लूंगी।

राजा! तेरे काले चश्मे में मेरी नजर लगी
अपनी अनदेखी देह का क्या करूं
मैं कैसे उजागर होऊं
कि केवल तुम मुझे देख सको
या तो चश्मा उतार कर फेंक दो
धूप में खड़ी मैं कोयला

तुम्हारी देह की हवा को छू लेने से
चिनगारी परच
अंगार होकर दहक गई हूं
देखो सूर्य बुझ गया है
और मैं सुलग रही हूं।
चश्मा मत उतारो।

जो गरमी है वह मेरा ताप है
तुम अब चश्मा मत उतारना
मेरे ताप में बहुत तेज धूप
जैसे तुम्हारी धूप में
मेरी धूप निकली है।

राजा! काले चश्मे में मेरी नजर लगी है
पर तुम्हारी धूप और ताप को मैं नहीं सह पाऊंगी
तुम काला चश्मा मुझे दे दो
मैं शृंगार करूंगी
हंसुली, पैरी, मुंदरी, पहनूंगी
स्नो-पाउडर लगाऊंगी
कीमती गहने की तरह काला चश्मा पहनकर
तुमको रिझा लूंगी।
तुम मेरे लिए मड़ई-मेले से
एक काला चश्मा खरीद देना
हम दोनों काला चश्मा लगाये मेला घूमेंगे
फोटो खिंचवायेंगे
परदे के हवाई जहाज के साथ
जिसमें दोनों काला चश्मा लगाये
सूरज तक उड़ेंगे।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news