विचार / लेख
- ध्रुव गुप्त
हर नए साल में लोगों को लगता है कि यह साल देश-दुनिया के लिए कुछ नया, कुछ अलग लेकर आने वाला है। हर साल यह भरम टूट भी जाता है। देश-दुनिया की वर्तमान परिस्थितियां बताती हैं कि आने वाले साल में भी सब कुछ वही रहने वाला है। देश में होगा वही बंटा हुआ समाज, वही रहनुमा, वही विभाजनकारी सोच, वही सामाजिक और आर्थिक विषमताएं, वही असहिष्णुता, वही सियासी ड्रामें और वही भांड मीडिया। देश के बाहर युद्ध, आतंक और विनाश का वही वैश्विक परिदृश्य। ऊपर जानलेवा वायरस के कुछ और नए अवतार। हां, नए साल के स्वागत के बेमतलब हंगामे में देश में असंख्य मुर्गे और बकरे ज़रूर कट जाने वाले हैं। अमीर क्लबों और होटलों में नंगी-अधनंगी लड़कियां नचाई जाएंगी। बेमतलब की आतिशबाजी में हवा में थोड़ा और जहर घुलेगा। चौतरफा शराब की नदियां बहेंगी। जहां दारूबन्दी हैं वहां नकली और जहरीली शराब पीकर कुछ और लोग मरेंगे।
नए साल में कुछ नया तब होगा जब हमारे भीतर कुछ नया घटित होगा। कुछ ऐसा कि हमारे आसपास की दुनिया थोड़ी और मुलायम, थोड़ी और खूबसूरत, थोड़ी और प्रेमिल, थोड़ी और निरापद दिखे। सडक़ों पर मानसिक दरिद्रता के भोंडे प्रदर्शन के बज़ाय आने वाले साल के लिए कुछ सार्थक सोचें और करें। खाए-अघाए लोगों के साथ मस्ती करने की जगह कुछ खुशियां उनके साथ बांटे जिन्हें उनकी वाक़ई ज़रुरत है। थोड़ी मुस्कान उन होंठों पर धरें जो मुस्कुराना भूल गए हैं। जो अपने अरसे से रूठे बैठे हैं, उन्हें मना लें। क्षमा मांग लें उनसे जीवन के किसी मोड़ पर जिनका दिल दुखाया है हमने। बासी पड़ चुके रिश्तों में फिर से ताजगी भरें। राजनीति को ख़ुद पर ऐसा हावी न होने दें कि वह हमारी वैचारिक स्वतंत्रता छीनकर हमें मानसिक तौर पर पंगु बना दे। धर्मों की निजता को सडक़ों पर इस तरह मत उतारें कि वह हमारी उदार सामाजिक संरचना को ही तोड़ डाले। नए साल में एक दूसरे की आस्थाओं और निजता का सम्मान करना सीखें।
राजनीति, धर्म और तमाम विचारधाराएं हमारे लिए बनी हैं, हम उनके लिए नहीं। इनमें से कुछ भी एक इंसानी जान से ज्यादा कीमती नहीं है। इसे समझने और महसूस करने के लिए किसी वैचारिक, सियासी या धार्मिक चश्मे की नहीं, थोड़ी अंतर्दृष्टि और बहुत सारी संवेदनशीलता की दरकार है ! आप सभी मित्रों को नववर्ष की मंगलकामनाएं!