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होलोकॉस्ट स्मृति दिवस : ताकि नाजी इतिहास कभी न दोहराया जाए
27-Jan-2024 9:44 PM
होलोकॉस्ट स्मृति दिवस : ताकि नाजी इतिहास कभी न दोहराया जाए

स्मृति दिवस की शुरुआत साल 1996 में हुई, जब तत्कालीन राष्ट्रपति रोमान हैरत्सोग ने 27 जनवरी को नाजी यातना के पीड़ितों की याद में समर्पित किया. तस्वीर: पूर्व यातना शिविर आउशवित्स में निगरानी के लिए बनाया गया एक टावर.

जर्मनी के लिए 27 जनवरी एक अहम तारीख है. यह दिन 'होलोकॉस्ट स्मृति दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. होलोकॉस्ट मानव इतिहास का एक जघन्य अध्याय है, जब 1933 से 1945 के बीच नाजी शासन में लाखों यहूदी कत्ल कर दिए गए.

  डॉयचे वैले पर स्वाति मिश्रा का लिखा-


‘होलोकॉस्ट स्मृति दिवस’ के लिए 27 जनवरी की तारीख चुने जाने का संदर्भ आउशवित्स यातना शिविर से जुड़ा है। यह यातना शिविर नाजी जर्मनी के कब्जे वाले पोलैंड में था। 27 जनवरी 1945 को सोवियत संघ की सेना ने आउशवित्स को आजाद कराया था। साल 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने होलोकॉस्ट के शिकार हुए 60 लाख यहूदियों की याद और नाजियों द्वारा सताये गए अन्य पीडि़तों के सम्मान में अंतरराष्ट्रीय होलोकॉस्ट स्मृति दिवस के लिए 27 जनवरी की तारीख चुनी।

क्या है आउशवित्स का इतिहास?
दूसरे विश्व युद्ध के समय आउशवित्स, दक्षिणी पोलैंड का एक छोटा सा शहर था। सितंबर 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने के बाद जल्द ही नाजी जर्मनी की सेना ने यहां कब्जा कर लिया और इसे थर्ड राइष में मिला लिया गया। 1940 में सबसे क्रूर नाजी नेताओं में से एक हाइनरिष हिमलर के नेतृत्व में नाजी सेना ने यहां एक यातना शिविर बनाया। यह जगह हत्या के कारखाने जैसी थी। यहां लाए जाने वाले नए लोगों में से करीब 80 फीसदी को बतौर कैदी रजिस्टर तक नहीं किया जाता था, बल्कि लाए जाने के साथ ही सीधे गैस चैंबरों में भेज दिया जाता था।

अनुमान है कि आउशवित्स में करीब 11 लाख लोगों की हत्या की गई। इनमें लगभग 90 फीसदी यहूदी थे, जो मुख्य रूप से हंगरी, पोलैंड, इटली, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, ग्रीस, सोवियत संघ और क्रोएशिया से थे। यहूदियों के अलावा नाजियों की क्रूरता का शिकार बने समूहों में रोमा और सिंती, समलैंगिक, कैथोलिक, यहोवा विटनेस, विकलांग और राजनैतिक विरोधी शामिल थे। 1947 में इसे स्मारक स्थल बना दिया गया।

होलोकॉस्ट क्या है?
1945 में दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जब नाजी जर्मनी की क्रूरताओं के ब्योरे सामने आए, यातना शिविरों में औद्योगिक स्तर पर की गई जघन्य हत्याओं का विस्तार पता चला, तो दुनिया सन्न रह गई। तब से ही नाजी जर्मनी के शासन में यूरोपीय यहूदियों की हत्याओं के लिए बतौर अभिव्यक्ति ‘होलोकॉस्ट’ एक पर्याय बन गया।
1933 में नाजियों के सत्ता में आने के बाद से ही यहूदी समेत कई अन्य समूहों के साथ भेदभाव शुरू हो गया था। उन्हें सताने की एक सुनियोजित और विस्तृत कवायद शुरू हुई। यहूदियों को ‘कमतर नस्ल’ बताकर कलंकित किया गया। उनसे संपत्ति का अधिकार छीन लिया गया। उन्हें ‘चिह्नित’ और अपमानित किया गया। उन्हें अलग-थलग कर घेटो में रहने के लिएमजबूर किया गया। लाखों यहूदी यातना शिविरों में कत्ल कर दिए गए। ये नरसंहार और व्यवस्थागत नृशंसता होलोकॉस्ट इतिहास का हिस्सा है।

‘नेवर फॉरगेट, नेवर अगेन’
नाजी शासन के दौरान यूरोपीय यहूदियों के साथ हुई नृशंसताओं को याद करना जर्मनी की स्मरण संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। अक्सर इसकी अभिव्यक्ति के लिए ‘नेवर फॉरगेट, नेवर अगेन’ शब्द इस्तेमाल किया जाता है। यानी, नाजियों के अपराध और उनकी क्रूरता का इतिहास ना तो कभी भुलाया जाए और ना ही फिर कभी दोहराया जा सके।

असल में इस इतिहास का सबक आधुनिक जर्मनी को आधार देता है। जर्मनी मानता है कि एक देश और समाज के तौर पर होलोकॉस्ट की याद को जिंदा रखना और इस अतीत से सबक लेना उसका कर्तव्य है। जर्मनी के सभी राज्यों में नाजी इतिहास और होलोकॉस्ट, पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा हैं।

स्टाट्सरेजॉं: देश का विवेक
यह इतिहास जर्मनी की विदेश नीति का भी एक अहम हिस्सा है। यहूदियों की सुरक्षा को जर्मनी अपनी एक खास ऐतिहासिक जिम्मेदारी मानता है। इसी ऐतिहासिक भूमिका के मद्देनजर इस्राएल की सुरक्षा को जर्मनी अपना ‘स्टाट्सरेजॉं’ कहता है, यानी देश का विवेक। पूर्व जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने 2008 में इस्राएली संसद को संबोधित करते हुए इस शब्द का इस्तेमाल किया था।

जर्मनी में कई स्मारक और संग्रहालय हैं, जो नाजियों के अपराध के शिकार हुए समूहों को समर्पित हैं। इनके अलावा नाजी शासन के शिकार बने लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए जर्मनी समेत कई अन्य यूरोपीय देशों में फुटपाथ पर पीतल की पट्टियां भी लगी हैं। जर्मन भाषा में ‘श्टोल्परश्टाइन’ कही जाने वाली इन पट्टियों की संख्या 90,000 से ज्यादा है। 

स्मृति दिवस की शुरुआत साल 1996 में हुई, जब तत्कालीन राष्ट्रपति रोमान हैरत्सोग ने 27 जनवरी को नाजी यातना के पीडि़तों की याद में समर्पित किया। स्मृति की इस परंपरा का मकसद नाजी अपराधों के इतिहास से सबक लेना है। इस रोज जर्मनी में कई खास कार्यक्रम होते हैं, ताकि नाजियों के अपराध की याददाश्त बनी रहे। यातनाओं की आपबीतियों से आने वाली पीढिय़ां भी वाकिफ रहें और लोगों की चेतना को आकार देती रहें।

क्यों जरूरी है याद रखना, याद दिलाना
होलोकॉस्ट का दौर बीते लंबा वक्त हो गया है। उन क्रूरताओं के चश्मदीद, ऐसे लोग जिन पर होलोकॉस्ट गुजरी है, वो अकल्पनीय यातनाएं जिनकी आपबीतियों का वे हिस्सा हैं, वो हमेशा दुनिया में नहीं रहेंगे। बीते दिनों ‘ज्यूइश क्लेम्स कॉन्फ्रेंस’ ने एक रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया कि 1941 से 1945 के बीच नाजी शासन के दौरान हुए नरसंहार और अत्याचारों से बचे करीब 245,000 लोग अब भी दुनिया में हैं।

इनमें लगभग 14,000 जर्मनी में रहते हैं। सर्वाइवर्स की औसत उम्र 86 साल है। इनमें से 95 फीसदी ‘चाइल्ड सर्वाइवर’ की श्रेणी में हैं, जो दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के समय औसतन सात साल के थे। 1933 में जब हिटलर ने जर्मनी में सत्ता संभाली, तब देश में रह रहे यहूदियों की संख्या लगभग 560,000 थी। 

1945 में जब विश्व युद्ध खत्म हुआ, तब जर्मनी में केवल 15,000 यहूदी बचे थे।
ज्यूइश क्लेम्स कॉन्फ्रेंस ने कहा कि होलोकॉस्ट से जिंदा बचे 5।8 फीसदी लोगों ने जर्मनी को अपना घर बनाया, यह तथ्य ‘जर्मन लोकतंत्र की स्थिरता का एक संकेत था, जिसकी हमें हिफाजत करनी चाहिए और सहेजना चाहिए।’ कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष गिडियन टेलर ने कहा, ‘ज्यादातर सर्वाइवर उम्र के ऐसे दौर में पहुंच गए हैं, जहां उन्हें ज्यादा मदद और देखभाल की जरूरत है। यह वक्त है कि हम ऐसे लोगों पर पहले से दोगुना ज्यादा ध्यान दें, जिनकी संख्या नाटकीय रूप से कम हो रही है। उन्हें अब हमारी सबसे ज्यादा जरूरत है।’

कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष ग्रेग श्नाइडर का कहना है, ‘ये ऐसे यहूदी थे, जो उस दुनिया में पैदा हुए जो उन्हें कत्ल होते हुए देखना चाहता था। उन्होंने अपने बचपन में होलोकॉस्ट की क्रूरताएं झेलीं। उन्हें उन यातना शिविरों और घेटो की राख से अपनी आगे की पूरी जिंदगी नए सिरे से बनानी पड़ी, जिसने उनके परिवारों और समुदायों को खत्म कर दिया था।’

दशकों बाद जर्मनी में यहूदी विरोधी भावना फिर से बढ़ रही है। 7 अक्टूबर को इस्राएल पर हमास के हमले और गाजा में शुरू हुए संघर्ष के बाद से जर्मनी में यहूदियों को निशाना बनाने वाले अपराधों की संख्या बढ़ी है। 7 अक्टूबर के बाद से अब तक ऐसी 1,200 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं। दूसरी ओर यहूदियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कई शहरों में प्रदर्शन भी हुए हैं। (dw.com)

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