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नीतीश कुमार को फिर से बीजेपी के संग लाने के पीछे की कहानी
30-Jan-2024 4:12 PM
नीतीश कुमार को फिर से बीजेपी के संग लाने के पीछे की कहानी

चंदन कुमार जजवाड़े

अगस्त 2022 में एनडीए से रिश्ता तोडऩे के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि वो मरना पसंद करेंगे लेकिन उनके (बीजेपी) के साथ लौटना पसंद नहीं करेंगे।

दूसरी तरफ़ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं।

बीजेपी के कई अन्य नेता भी इस बात को दोहराते रहे हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तो पिछले हफ्ते तक बोलते रहे हैं कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए का रास्ता बंद हो चुका है।

नीतीश ने पिछली बार एनडीए छोड़ते वक़्त बीजेपी पर जेडीयू को कमजोर करने का आरोप लगाया था। जेडीयू के नेता कई बार ‘चिराग मॉडल’ की बात करके भी बीजेपी पर अपनी नाराजग़ी ज़ाहिर करते रहे हैं।

साल 2000 के विधानसभा चुनावों में एनडीए का हिस्सा होते हुए भी लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान ने बिहार में जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे। इससे जेडीयू को सीटों का बड़ा नुकसान हुआ था और बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी हो गई थी।

जेडीयू ने अपने नेता और उस वक़्त अध्यक्ष रह चुके आरसीपी सिंह पर भी बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया था। बाद में आरसीपी सिंह पार्टी से बाहर हो गए और अब वो बीजेपी में शामिल हो गए हैं।

विपक्ष को एक करने की कोशिश

नीतीश कुमार ने इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की पहल की थी।

इस तरह से 18 विपक्षी दलों की पहली बैठक बिहार की राजधानी पटना में ही 23 जून 2023 को हुई थी।

इस बैठक के बाद बिहार में महज 45 विधायकों के सहारे मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठे नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गए थे। इस तरह से पहली बार बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए एक संगठित विपक्ष की चुनौती तैयार हो रही थी। लेकिन अब कहानी पूरी तरह से बदल गई है।

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘नीतीश को भी राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के बाद लगने लगा था कि बीजेपी का मुकाबला करना आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ़ भले ही बिहार के बीजेपी नेता न चाहते हों लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व नीतीश को अपने साथ जोडऩा चाहता था ताकि विपक्षी एकता की नींव ही कमज़ोर हो जाए।’

कभी नीतीश के करीबी रहे आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं, ‘नीतीश के बारे में राजनीतिक विशेषज्ञ कुछ नहीं बता सकता, उनके बारे में मनोचिकित्सक बता सकता है। उन्होंने ख़ुद विपक्ष के लोकतंत्र बचाने के प्रस्ताव पर दस्तख़त किए थे। उनको शर्म आनी चाहिए, यह धोखा देना है। अगर उन्हें कोई शिकायत थी तो बात कर सकते थे।’

नीतीश कुमार पर धोखा देने और रंग बदलने का आरोप कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी लगाया है, जबकि समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा है कि एक भावी प्रधानमंत्री को बीजेपी ने षडय़ंत्र कर मुख्यमंत्री तक सीमित कर दिया है।

किसने बनाया एनडीए में वापसी का रास्ता

बीजेपी के साथ रिश्ते तल्ख़ होने के बाद भी नीतीश कुमार ने विपक्ष का साथ क्यों छोड़ा और उनकी एनडीए में वापसी की पहल किसने की?

विपक्षी धड़े में रहकर नीतीश मुख्यमंत्री होने साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी और सक्रिय भूमिका में दिख रहे थे।

वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, ‘नीतीश ने विपक्ष के गठबंधन का साथ छोडऩे की जो वजह बताई है, वह तलाक़ लेने का केवल बहाना है। इसकी असली वजह वह नहीं है जो बताई जा रही है या जो दिख रही है। इसकी वजह अदृश्य है।’

कन्हैया भेलारी के मुताबिक़, ‘जेडीयू के नेताओं और कुछ के कऱीबियों के उपर जाँच एजेंसियों का कसता शिकंजा इसकी सबसे बड़ी वजह है। कुछ मामलों में नीतीश के कुछ कऱीबी अधिकारियों तक जाँच की आँच पहुँच सकती थी और नीतीश के मन में यह डर भी होगा कि कहीं उनसे भी पूछताछ न शुरू हो जाए।’

इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने पिछले साल सितंबर महीने में जेडीयू एमएलसी राधा चरण सेठ को गिरफ़्तार किया था। राधा चरण सेठ की गिरफ़्तारी आरा के उनके घर से हुई थी।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक राधा चरण सेठ को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था। ख़बरों के मुताबिक़ जलेबी बेचने के व्यवसाय से शुरुआत करने वाले राधा चरण सेठ बाद में कई तरह के कारोबार से जुड़े, जिनमें माइनिंग, होटल और रेस्टोरेंट का कारोबार भी शामिल है।

नीतीश की वापसी में बड़ी भूमिका किसकी?

पिछले साल नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले जेडीयू विधायक और मंत्री विजय चौधरी के साले अजय सिंह उर्फ कारू सिंह के आवास पर भी आयकर विभाग ने छापेमारी की थी।

बेगूसराय में बिल्डर कारू सिंह के आवास पर यह छापेमारी पटना में जून में विपक्षी दलों की मीटिंग के एक दिन पहले हुई थी।

पिछले साल ही अक्टूबर के महीने में जेडीयू के करीबी माने जाने वाले ठेकेदार गब्बू सिंह के ठिकानों पर भी आयकर विभाग ने छापेमारी की थी।

कन्हैया भेलारी के मुताबिक़, ‘राधाचरण सेठ के यहाँ ईडी को एक लाल डायरी मिली थी, बताया जाता है कि इसमें बहुत कुछ पाया गया है। इसलिए नीतीश के उपर अपने नेताओं का भी दबाव रहा होगा कि वो एनडीए में वापस चले जाएँ। इसकी पहल जेडीयू विधायक संजय झा की हो सकती है, जो पहले बीजेपी में ही थे।’

इसके अलावा नीतीश की एनडीए में वापसी की पहल करने वालों में नीतीश के करीबी माने जाने वाले विधान परिषद सदस्य अशोक चौधरी और नीतीश के करीबी कुछ अधिकारियों की भी इसमें अहम भूमिका मानी जाती है।

शिवानंद तिवारी आरोप लगाते हैं, ‘नीतीश कुमार के करीबी अधिकारी क्या कर रहे हैं, उनको भी पता है। नीतीश खुद चौबीसों घंटे ऐसे नेताओं से घिरे रहते हैं जो ‘मंडल’ विरोधी हैं। आप उनके नाम देख लीजिए। इन सबने नीतीश को एनडीए में वापस जाने की सलाह दी होगी और खुद नीतीश ने परोक्ष रूप से बीजेपी से संपर्क किया होगा।’

इसमें विजय चौधरी, संजय झा और जेडीयू एमएलसी ललन सिंह जैसे नेताओं नाम लिया जाता है। पिछले साल दिसंबर में ललन सिंह के मुद्दे पर चल रही अटकलों के दौरान विजय चौधरी ‘इंडिया’ को ‘इंडी’ गठबंधन कहते नजऱ आए थे। यह नाम आमतौर पर बीजेपी और उनके सहयोगी लेते हैं।

जेडीयू के भीतर मंदिर और मंडल खेमा

वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद का मानना है कि जेडीयू में बीजेपी के करीबी और बीजेपी के विरोधी दोनों तरह के लोग हैं, मसलन संजय झा नीतीश कुमार के बेहद कऱीबी हैं और बीजेपी के भी। इसलिए दोनो के बीच डोर के तौर पर संजय झा की भूमिका हो सकती है।

फैजान अहमद कहते हैं, ‘लालू और नीतीश के बीच मतभेद राजनीति के बहुत शुरुआती दिनों में ही हो गया था। नीतीश कुमार भी लालू से ज़्यादा बीजेपी के साथ रहे हैं और वहीं सहज भी दिखते हैं। लेकिन इस बार गठबंधन छोडऩे के पीछे नीतीश ने लालू की जगह कांग्रेस पर आरोप लगाया है।’

दअसल नीतीश कुमार का यह फ़ैसला अचानक का फैसला भी नहीं दिखता है। पिछले कई हफ्तों से कई कार्यक्रमों में नीतीश और तेजस्वी यादव को एक साथ नहीं देखा गया था। नीतीश कई बार बिहार के राज्यपाल से भी मिले लेकिन तेजस्वी से उनकी दूरी बनी रही।

बिहार में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए पिछले महीने यानी दिसंबर हुए ‘इन्वेस्ट बिहार’ कार्यक्रम में भी तेजस्वी यादव नजर नहीं आए थे। इसमें अदानी ग्रुप ने बिहार में अपने कारोबार के विस्तार के लिए 8700 करोड़ रुपये का निवेश की घोषणा की थी।

वहीं नीतीश ने खुद पटना में पिछले साल नवंबर महीने में सीपीआई की रैली में पहुँचकर गठबंधन के प्रति कांग्रेस के रुख पर सवाल उठाया था। पिछले साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में हार के बाद तो जेडीयू ने कांग्रेस को सहयोगी दलों को उचित सम्मान देने की सलाह भी दी थी।

कौन ले गया नीतीश को दूर

कांग्रेस के साथ नीतीश के मोहभंग की शुरुआत भोपाल में महागठबंधन की रैली रद्द होने के दौरान मानी जाती है। पिछले साल मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान भोपाल में विपक्षी दलों की एक बड़ी रैली होनी थी, जिसे कांग्रेस नेता कमलनाथ ने रद्द करा दिया था।

पटना में विपक्ष की मीटिंग के बाद बेंगलुरु, मुंबई या विपक्ष की बाक़ी मीटिंग को लेकर नीतीश कुमार बहुत उत्साहित नजर नहीं आ रहे थे। बीजेपी की तरफ से यह दावा किया जा रहा था कि नीतीश ‘इंडिया’ के संयोजक नहीं बनाए जाने से नाराज हैं, हालाँकि नीतीश कुमार और जेडीयू इससे इनकार करते रहे।

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘नीतीश ख़ुद को विपक्षी गठबंधन का संयोजक देखना चाहते थे, भले ही वो स्वीकार न करें, लेकिन सबकी अपनी महत्वाकांक्षा होती है। फिर भी कांग्रेस उन्हें यह पद क्यों दे? नीतीश एक राज्य में सहयोगियों से भरोसे मुख्यमंत्री हैं और कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है।’

नीतीश कुमार को लेकर कांग्रेस की दुविधा की एक और वजह मानी जाती है। नीतीश ख़ुद को लेकर कांग्रेस या बाकी कई दलों का भरोसा नहीं जीत पाए और सबके मन में यह सवाल हो सकता है कि जिम्मेदारी सौंपने के बाद नीतीश विपक्षी गठबंधन से दूर हो गए तो यह विपक्ष के लिए ज़्यादा बुरी स्थिति होती।

हालाँकि गठबंधन को लेकर कांग्रेस के रुख़ पर भी कई लोग सवाल उठाते हैं। तीन विधानसभा चुनावों में हार के बाद काँग्रेस ने अचानक विपक्ष की मीटिंग बुला ली थी, जिस पर ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। (bbc.com)

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