विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
ऐसा लगता है कि रेल प्रशासन आम जनता से केवल तरह तरह से धन वसूली में ही लगा है इसीलिए जिन लोगों को जरूरी काम से यात्राएं करनी पड़ती हैं उनकी मजबूरी का लाभ उठा कर पहले उसने महंगी तत्काल सेवा शरू की थी और अब हवाई यात्रा की तरह कम सीट रहने पर बहुत महंगी डायनेमिक प्राइसिंग भी शरू हुई है जिससे कभी कभी रेल का किराया हवाई यात्रा से भी महंगा हो गया है।
दूसरी तरफ यात्रियों की सुविधाओं के नाम पर वैसा ही शून्य पसरा हुआ है जैसा कई दशक से चल रहा है। यदि रेल प्रशासन लोगों से ज्यादा से ज्यादा धन वसूली में पूरी तरह से सजग है तब उसे यात्रियों की सुविधाओं के प्रति भी उसी तरह से सजग होना चाहिए। यात्रियों की सुविधाओं के नाम पर रेल प्रशासन कुंभकरण की नींद सोया लगता है।
उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में दिसंबर और जनवरी माह में हर साल कोहरा पड़ता है जिसकी वजह से अधिकांश ट्रेनों का विलंब से चलना स्वाभाविक है। इस दौरान बहुत सी फ्लाइट भी विलंब से चलती हैं और निरस्त भी होती हैं। ऐसी स्थिति में अधिकांश एयरलाइंस यात्रियों को गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के लिए कनेक्टिंग फ्लाइट की व्यवस्था के साथ-साथ भोजन आदि की भी व्यवस्था करती हैं। एयरपोर्ट पर वातानुकूलन के कारण भी यात्रियों और विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को परेशान नहीं होना पड़ता क्योंकि वहां काफी संख्या में टॉयलेट, खाद्य पदार्थों की दुकानें, और चलने के लिए व्हीलचेयर और स्वचालित सीढिय़ों आदि की व्यवस्था है। एयरलाइंस विलंब की स्थिति में समय-समय पर एसएमएस आदि से सूचना भी देती हैं। इस मामले में रेल प्रशासन में हद दर्जे की लापरवाही है।
रेल प्रशासन की हद दर्जे की लापरवाही का ताजा उदाहरण आजकल दिल्ली से भोपाल की तरफ आने वाली ट्रेनों को लेकर समझा जा सकता है जिसका खामियाजा हाल ही में हमने भी भुगता है। दिल्ली से आगरा की लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी अमूमन ट्रेन दो से तीन घंटे में पूरी करती हैं लेकिन आजकल इस रूट की अधिकांश ट्रेनों को मथुरा में ट्रेक रिपेयर के कारण अलीगढ़ होकर आगरा भेजा जा रहा है जिससे दिल्ली आगरा की दो-तीन घंटे की यात्रा बारह घंटे में पूरी हो रही है। टिकट बुक करते समय रेल प्रशासन यह सूचना यात्रियों से छिपा रहा है जिससे यात्रियों के दस दस घंटे बर्बाद हो रहे हैं।
हर दिन लाखों लोग इस ट्रैक से यात्रा करते हुए रेल प्रशासन की अपारदर्शिता और लापरवाही को कोस रहे हैं। महिलाओं के लिए यह मुसीबत और भी ज्यादा खतरनाक है। यदि उन्होंने अपनी यात्रा इस तरह प्लान की है कि वे शाम को दिल्ली से चलकर दिन में भोपाल पहुंच जाएं तो उन्हें दिल्ली में भी आधी रात के बाद ट्रेन पकडऩी पड़ रही है और भोपाल भी आधी रात को पहुंचकर परेशानी झेलनी पड़ रही है। उदाहरण के तौर पर 23 जनवरी की शाम आठ बजकर चालीस मिनट पर दिल्ली के निजामुद्दीन स्टेशन से चलकर सुबह छह बजे भोपाल पहुंचने वाली ट्रेन को दिल्ली से आधी रात के बाद सुबह चार बजे चलाया गया। पहले सूचित किया कि यह ट्रेन रात साढ़े ग्यारह बजे चलेगी। फिर बताया गया कि सुबह तीन बजे चलेगी। सुबह तीन बजे दिल्ली की कडक़ड़ाती ठंड में प्लेटफार्म पर पहुंचे हजारों यात्रियों को सही सूचना बताने के लिए रेलवे का कोई व्यक्ति मौजूद नहीं था।
प्लेटफार्म की दुकानें भी बंद हो चुकी थी। रेलवे की तरफ से संवेदनहीन अनाउंसमेंट में यह कहा जा रहा था कि ट्रेन तकनीकी देखरेख में यार्ड में खड़ी है यात्री अगली सूचना को ध्यान से सुनें। रेल प्रशासन का इस तरह का व्यवहार निकृष्टतम श्रेणी का है। प्लेटफार्म पर महिला यात्रियों के लिए न कोई सुरक्षा थी और न टॉयलेट आदि की सुविधा रहती है। यह ट्रेन सुबह चार बजे चलकर अठारह घंटे विलंब से रात साढ़े बारह बजे भोपाल पहुंची। विशेष रूप से महिला यात्रियों के लिए दो रात भयानक बीती। डायनेमिक प्राइसिंग से यात्रियों से धन वसूली करने वाला रेल प्रशासन कितना संवेदनहीन हो गया यह रेल से यात्रा करने वाले लाखों लोग आए दिन भुगत रहे हैं।