विचार / लेख

फेसबुक के 20 साल: वो चार अहम बातें जिनके जरिए सोशल प्लेटफॉर्म ने बदली दुनिया
31-Jan-2024 3:22 PM
फेसबुक के 20 साल: वो चार अहम बातें जिनके जरिए सोशल प्लेटफॉर्म ने बदली दुनिया

ऊपर की तस्वीर देखिए। फेसबुक तब ऐसा ही दिखता था और उस समय इसका नाम था ‘द फेसबुक’। ये 20 साल पुरानी बात है जब मार्क जुकरबर्ग ने अपने चंद दोस्तों के साथ इसे लॉन्च किया था।

दुनिया के सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म को तब से दर्जनों बार रिडिजाइन किया जा चुका है।

लेकिन, इसका मकसद वही है, लोगों को ऑनलाइन कनेक्ट करना यानी उनके बीच संपर्क बनाना और विज्ञापन के जरिए पैसों का पहाड़ खड़ा करना।

फेसबुक की शुरुआत को 20 साल हो गए हैं। आइए, फ़ेसबुक से जुड़ी उन चार अहम बातों पर नजऱ डालते हैं, जिनके जरिए इसने दुनिया को बदल दिया।

1. फेसबुक ने बदला सोशल मीडिया का खेल

माइस्पेस पर टॉम हर किसी के पहले दोस्त होते थे। इस सोशल नेटवर्क को टॉम एंडरसन ने फेसुबक की शुरुआत से एक साल पहले लॉन्च किया था।

फेसबुक की शुरुआत के पहले ‘माइस्पेस’ जैसे सोशल नेटवर्क मौजूद थे लेकिन मार्क जुकरबर्ग की साइट ने साल 2004 में लॉन्च होने के साथ ही रफ्तार पकड़ ली और साबित किया कि इस किस्म की ऑनलाइन साइट किस तरह दबदबा बना सकती है।

एक साल से कम वक्त में फेसबुक के 10 लाख यूजर्स थे। चार साल के अंदर इसने माइस्पेस को पीछे छोड़ दिया। इस तरक्की के पीछे, फेसबुक की कई ख़ूबियों की भूमिका थी, जैसे कि फोटो में लोगों का ‘टैग’ करने का विकल्प देना।

नाइट आउट के वक्त डिजिटल कैमरा का साथ होना, तमाम तस्वीरों में अपने दोस्तों को ‘टैग करना’, 2000 के दशक के आखिरी सालों में टीनएजर्स के जिंदगी का हिस्सा था। शुरुआती यूजर्स को लगातार फीड बदलना भी लुभाता था।

साल 2012 आते आते फेसबुक के एक अरब से ज़्यादा यूजर्स हो चुके थे। साल 2021 के आखिरी महीनों में पहली बार फेसबुक के एक्टिव यूजर्स की संख्या 1.92 अरब तक गिर गई। अगर इसे छोड़ दें तो बाकी वक्त ये प्लेटफॉर्म लगातार बढ़ता ही रहा है।

जो देश कनेक्टिविटी के मामले में पिछड़े हैं, फेसबुक ने वहां भी पैर फैलाए और मुफ्त इंटरनेट का ऑफर दिया। ये कंपनी फेसबुक यूजर्स की संख्या लगातार बढ़ाने में कामयाब रही। साल 2023 के अंत में फेसबुक ने जानकारी दी कि उसके पास दो अरब से ज़्यादा ऐसे यूजर्स हैं, जो हर दिन इस सोशल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं।

ये तथ्य है कि युवाओं के बीच फेसबुक पहले की तरह लोकप्रिय नहीं है लेकिन फिर भी ये दुनिया की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क साइट है और इसने ऑनलाइन सोशल एक्टिविटी के नए युग का दरवाजा खोला है।

कुछ लोग फेसबुक और इससे मुकाबला कर रहे दूसरे सोशल प्लेटफॉर्म को कनेक्टिविटी को सशक्त बनाने वाले औजार के तौर पर देखते हैं तो बाकी लोग इन्हें लत का शिकार बना देने वाले विध्वंस का एजेंट मानते हैं।

2. निजी डेटा को बनाया कीमती

लेकिन निजता में दिया दखल

फेसबुक ने साबित किया कि हमारी पसंद और नापसंद की जानकारी जुटाना, बहुत फ़ायदे की बात है।

इन दिनों, फेसबुक की पैरेंट कंपनी, मेटा ‘एडवर्टाइजि़ंग जायंट’ यानी विज्ञापन की दुनिया की सरताज जैसी हैसियत रखती है।

मेटा और गूगल जैसी कंपनियां दुनिया भर में विज्ञापन पर ख़र्च होने वाली रकम का सबसे बड़ा हिस्सा हासिल करती हैं।

मेटा ने बताया कि 2023 की तीसरी तिमाही में 34 अरब डॉलर यानी करीब 28 खरब 25 अरब से ज़्यादा रुपये कमाए। इसमें से 11।5 अरब डॉलर यानी करीब नौ खरब 55 अरब रुपये ज़्यादा मुनाफा था। कमाई का ज़्यादातर हिस्सा टार्गेटेड एड सर्विसेज़ के जरिए आया।

लेकिन, फ़ेसबुक ने ये भी दिखाया है कि डेटा इक_ा करने का किस तरह दुरुपयोग हो सकता है। मेटा पर निजी डेटा की मिसहैंडलिंग (सही तरह से इस्तेमाल नहीं करने) के लिए कई बार जुर्माना लगाया जा चुका है।

सार्वजनिक तौर पर जिस मामले को सबसे ज़्यादा चर्चा मिली वो साल 2014 का कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल था। फेसबुक ने इस मामले में सेटलमेंट के लिए 72 करोड़ डॉलर से ज़्यादा रकम चुकाने को तैयार हो गया।

साल 2022 में फ़ेसबुक ने ईयू की ओर से लगाया गया 2650 लाख यूरो का जुर्माना भरा। ये जुर्माना फ़ेसबुक की साइट से निजी डेटा निकालने की वजह से लगाया गया था।

बीते साल इस कंपनी पर आयरिश डेटा प्रोटेक्शन कमीशन ने रिकॉर्ड 1।2 अरब यूरो का जुर्माना लगाया। ये जुर्माना यूरोप के यूजर्स के डेटा को जूरिडिक्शन (क्षेत्राधिकार) से बाहर ट्रांसफऱ करने के लिए लगाया गया था। फेसबुक ने जुर्माने के खिलाफअपील की है।

3. फेसबुक ने किया इंटरनेट का राजनीतिकरण

फेसबुक टार्गेटिंग विज्ञापन की सुविधा देता है। इससे ये दुनिया भर में चुनाव प्रचार का प्रमुख प्लेटफ़ॉर्म बन गया है।

उदाहरण के लिए, साल 2020 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में सिफऱ् पांच महीने बाकी थे, तब तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टीम ने फेसबुक विज्ञापन पर 400 लाख डॉलर से ज़्यादा रकम खर्च की। ये आंकड़ा स्टेटिस्टा रिसर्च ने जारी किया है।

फेसबुक की भूमिका जमीनी स्तर की राजनीति को बदलने में भी रही है। ये समूहों को इकट्टा होने, अभियान चलाने और वैश्विक स्तर पर कदम उठाने से जुड़ी योजना बनाने की सहूलियत देता है।

अरब स्प्रिंग यानी अरब क्रांति के दौरान विरोध प्रदर्शन आयोजित करने और जमीन पर हो रही घटनाओं की खबर प्रसारित करने में फेसबुक और ट्विटर की भूमिका अहम मानी गई।

लेकिन, कुछ नतीजों को लेकर फेसबुक के राजनीतिक इस्तेमाल की आलोचना भी होती है। मानवाधिकारों पर असर भी इसमें शामिल है।

साल 2018, में फेसबुक ने संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट से सहमति जाहिर की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि म्यामांर में रोहिंग्या लोगों के खिलाफ ‘हिंसा के लिए उकसाने’ के वक्त फेसबुक यूजर्स को अपना प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने से रोकने में नाकाम रहा।

4. फेसबुक के जरिए मेटा का दबदबा

फेसबुक की बेशुमार कामयाबी के जरिए मार्क जुकरबर्ग ने सोशल नेटवर्क बनाया और तकनीकी साम्राज्य खड़ा कर लिया। यूजर्स की संख्या और इसके जरिए मिली ताकत अतुलनीय है।

उभरती कंपनियों मसलन व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और ऑकुलस को फेसबुक ने खरीद लिया। इस को फेसबुक के तहत लाया गया और बाद में साल 2022 में इस कंपनी का नाम मेटा कर दिया गया।

मेटा का कहना है कि आज तीन अरब से ज़्यादा लोग हर दिन उसका कम से कम एक प्रॉडक्ट इस्तेमाल करते हैं।

मेटा जब अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनी को खरीद नहीं पाता है तो कई बार उन पर अपनी नकल करने का आरोप लगा देता है। ताकि वो अपना दबदबा बनाए रख सके।

फेसबुक और इंस्टाग्राम का ‘डिस्एपीयरिंग स्टोरीज’ का फीचर स्नैपचैट के अहम फीचर की ही तरह है।

इंस्टाग्राम रील्स मेटा की ओर से वीडियो शेयरिंग ऐप टिकटॉक का जवाब है। मेटा का थ्रेड्स सोशल प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) जैसा विकल्प देने का प्रयास है।

अब रणनीति की भूमिका कहीं ज़्यादा अहम हो गई है। इसकी वजह बढ़ता मुकाबला और निगरानी रखने वाली संस्थाओं की बढ़ती सख्ती है।

साल 2022 में मेटा घाटा सहकर भी जीआईएफ़ मेकर जिफी को बेचने पर मजबूर हो गई। ब्रिटेन के रेगुलेटर ने मार्केट में इसके जरूरत से ज़्यादा दबदबे के डर से इसकी सेवाओं पर स्वामित्व रखने से रोक दिया।

अगले 20 साल में क्या होगा?

फ़ेसबुक का उभार और इसका लगातार दबदबा बनाए रखना मार्क जुकरबर्ग की क्षमता दिखाता है जो इस साइट को लगातार प्रासंगिक बनाए हुए हैं।

लेकिन अगले 20 साल के दौरान इसे सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म बनाए रखना पहाड़ जैसी चुनौती साबित हो सकती है।

मेटा अब मेटावर्स के आइडिया के इर्द-गिर्द बिजनेस खड़ा करने की पुरज़ोर कोशिश में जुटा है, वो एपल जैसे प्रतिस्पर्धी से आगे निकलने की कोशिश में है।

मेटा के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी बड़ी प्राथमिकता में शुमार है। और अब जब कंपनी फेसबुक की जड़ों से कटती जा रही है, ये देखना दिलचस्प होगा कि दुनिया भर में मौजूद इस सोशल नेटवर्क साइट का भविष्य कैसा रहता है।(bbc.com)

(इमान मोहम्मद के इनपुट के साथ) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news