विचार / लेख
ध्रुव गुप्त
पिछली सदी के चौथ-पांचवे दशक की स्टार अभिनेत्री और दिलकश गायिका सुरैया के बारे में यह बहस होती रही है कि वे उनके अभिनेत्री और गायिका रूपों में बेहतर रूप कौन सा था। अभिनेत्री के रूप में उन्हें हिंदी सिनेमा की पहली 'ग्लैमर गर्ल’ माना जाता है जिन्होंने अपने चुंबकीय व्यक्तित्व, शालीन सौंदर्य और दिलफरेब अदाओं से करोड़ों के दिल जीते थे। अपनी सीमित अभिनय प्रतिभा के बावज़ूद उस दौर की कई बेहतरीन अभिनेत्रियों- नूरजहां, नरगिस, कामिनी कौशल, निम्मी और मधुबाला के बीच भी उनकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ी। अपने दो दशक लंबे कैरियर में सुरैया की कुछ चर्चित फिल्मे थीं- उमर खैयाम, विद्या, परवाना, अफसर, प्यार की जीत, शमा, बड़ी बहन , दिल्लगी, वारिस, माशूका, जीत, खूबसूरत, दीवाना, डाकबंगला, अनमोल घडी, मिर्जा गालिब और रुस्तम सोहराब। इन फिल्मों में अभिनेत्री के तौर पर सुरैया में नया और अलग कुछ भी नहीं था। सीधे-सादे अभिनय के बावजूद परदे पर उनकी शालीन उपस्थिति, ग्लैमर, मीडिया द्वारा बनाए गये उनके रहस्यमय आभामंडल और अभिनेता देव आनंद के साथ चर्चित लेकिन असफल प्रेम-संबंधों की वजह से ही लोग उनकी फिल्मों तक खींचे चले आते थे।
ज्यादातर लोगों का मानना है कि सुरैया अभिनेत्री से बेहतर एक गायिका थी जिनकी खनकती, महीन, सुरीली आवाज के लाखों मुरीद आज भी हैं। उन्होंने हालांकि संगीत की कभी विधिवत शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनका रूझान बचपन से ही संगीत की ओर था। वे पाश्र्वगायिका ही बनना चाहती थी। उनके गायन की शुरुआत आकाशवाणी से हुई थी। संगीतकार नौशाद ने आकाशवाणी के एक कार्यक्रम में जब सुरैया को गाते सुना तो उनकी आवाज और अंदाज से प्रभावित हुए। उन्होने पहली बार सुरैया को फिल्म ‘शारदा’ में गाने का मौका दिया। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। उनके कुछ बेहद लोकप्रिय गीत हैं- तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, जब तुम ही नहीं अपने दुनिया ही बेगानी है, तुम मुझको भूल जाओ, ओ दूर जानेवाले वादा न भूल जाना, धडक़ते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम, नैन दीवाने एक नहीं माने, सोचा था क्या क्या हो गया, वो पास रहे या दूर रहे नजरों में समाए रहते हैं, मुरली वाले मुरली बजा, तेरे नैनो ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया, नुक्ताचीं है गमे दिल उसको सुनाए न बने, दिले नादां तुझे हुआ क्या है, ये न थी हमारी कि़स्मत कि विसाले यार होता, ये कैसी अजब दास्तां हो गई है, ऐ दिलरुबा नजरे मिला। ‘मिर्जा गालिब’ में गुलाम मोहम्मद के संगीत में गालिब की कुछ गजलों को जिस बारीकी और ख़ूबसूरती से उन्होंने गाया है, उन्हें सुनना आज भी एक विलक्षण अनुभव है। उनकी आवाज़ की खनक, गहराई और भंगिमाएं सुनने वालों को एक दूसरी ही दुनिया में ले जाती थी। लता के उत्कर्ष के पूर्व सुरैया ने ही हिंदी सिनेमा में गीत को गरिमा और ऊंचाई दी थी। राष्ट्रपति का स्वर्ण कमल पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘मिर्जा गालिब’ में सुरैया की गायिकी से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनसे कहा था- ‘तुमने मिर्जा गालिब की रूह को जिंदा कर दिया।’ आज उनके अभिनय का अंदाज़ पुराना पड़ गया है, लेकिन उनकी दिलकश गायिकी का असर संगीत प्रेमियों पर कई सदियों तक हावी रहेगा।
आज सुरैया की पुण्यतिथि पर खिराज-ए-अकीदत!