विचार / लेख

पाक चुनाव: नवाज और इमरान एक-दूसरे की भूमिका में कैसे पहुँचे
01-Feb-2024 4:09 PM
पाक चुनाव: नवाज और इमरान एक-दूसरे की भूमिका में कैसे पहुँचे

 फरहत जावे-फ्लोरा ड्रूरी

पाकिस्तान में राजनीति ऐसे दौर से गुजऱ रही है, जैसा पहले कभी नहीं देखा गया।

देश के लोगों में सियासत को लेकर ग़ुस्सा और निराशा है लेकिन वो उम्मीद के किरण के बारे में भी बातें करते हैं।

24 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में लगातार तीसरी बार आम चुनाव हो रहे हैं। सैन्य शासन और तानाशाही के इतिहास के लिहाज से देखें तो देश के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है।

हालांकि, आठ फऱवरी का चुनाव कथित सैन्य हस्तक्षेप के साये में हो रहा है। पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा कोई भी चुनाव नहीं रहा है, जो विवादों के घेरों में न हो।

मौजूदा समय में देश के एक पूर्व पीएम जेल में हैं तो दूसरे पूर्व पीएम स्वघोषित निर्वासन के बाद वतन वापस लौट आए हैं।

पाकिस्तान की राजनीति में पिछले काफ़ी समय से सियासी उथल-पुथल चल रहा है। ऐसे हालात में जानिए ये चुनाव पाकिस्तान के भविष्य के लिए क्यों अहम है।

भारत के चीर प्रतिद्वंद्वी देश पाकिस्तान की सीमा ईरान और तालिबान नियंत्रित अफग़़ानिस्तान से लगती है। पाकिस्तान का अमेरिका के साथ लव एंड हेट (प्यार और तकरार) का संबंध रहता है और वो चीन का कऱीबी है।

पाकिस्तान में पिछले साल से ही सत्ता को लेकर नेताओं के बीच टकराव चल रहा है। 2022 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता से बाहर कर गठबंधन की सरकार आई।

इसके बाद पिछले साल अनिर्वाचित केयर टेकर सरकार ने सत्ता संभाली, जिसे नवंबर तक देश में चुनाव करा लेने थे लेकिन चुनाव में देरी होती चली गई।

पाकिस्तान में कई लोगों का मानना है कि देश में सबसे ज़्यादा जरूरत स्थिर सरकार की है ताकि सुरक्षा से लेकर आर्थिक मसलों पर मजबूत निर्णय हो सके। हालांकि चुनावी दौड़ में शामिल नेताओं पर नजऱ डालने से लगता है कि स्थिरता दूर की कौड़ी है।

नवाज शरीफ, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) - पीएमएल-एन

नवाज शरीफ एक बार फिर पाकिस्तान में चर्चा के केंद्र में हैं। 2018 के चुनाव में वो उम्मीदवार नहीं थे।

वो जेल में थे। उन्हें करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार के मामले में दोषी कऱार दिया गया था और इसकी वजह से वो चुनाव नहीं लड़ सकते थे।

तबियत बिगडऩे के बाद 2019 में वो इलाज के लिए लंदन गए और फिर वहीं रहने लगे।

पिछले साल उनकी वतन वापसी हुई है। 2022 में इमरान ख़ान के सत्ता से बाहर होने के बाद नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ़ ने नेतृत्व संभाला।

2024 के चुनाव से कुछ महीने पहले ही नवाज शरीफ को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया और उनके चुनाव लडऩे पर लगी आजीवन रोक को भी असंवैधानिक बताया गया।

पाकिस्तान में कई लोग ये कयास लगाते हैं कि सेना और इमरान खान के बीच बढ़ी दूरी ने नवाज शरीफ के लिए रास्ते तैयार किए और वो चौथी बार प्रधानमंत्री बनने की रेस में आ गए।

हालांकि, शरीफ को पता है कि सेना पाला बदल सकती है। सेना और शरीफ के बीच उनके तीसरे कार्यकाल (2013) से ही खूब तनातनी रही और बाद में शरीफ़ सत्ता से बाहर भी हुए।

1999 में उनके कार्यकाल के दौरान सैन्य तख़्ता पलट हुआ था।

क्रिकेटर से नेता बने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के इमरान ख़ान जेल में बंद हैं। ख़ान अपने ऊपर लगे आरोपों को ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ और ‘षडयंत्र’ बता रहे हैं।

इमरान ख़ान के सत्ता में आने और जाने की कहानी दोनों सेना से जुड़ी है।

2018 में उनके आलोचकों ने उन्हें ‘सेना का मुखौटा’ बताया था और अब जब वो जेल में बंद हैं तो उनके समर्थकों का आरोप है कि पूर्व पीएम के जेल में होने के पीछे सेना प्रमुख वजह हैं।

2018 में ख़ान की छवि पाकिस्तान का भविष्य बदलने वाले नेता के रूप में बन रही थी।

वो अपने भाषणों में वंशवाद की राजनीति ख़त्म करने, भ्रष्ट नेताओं को जेल में डालने, न्यायपालिका में बदलाव करने और युवाओं को नौकरी देने के साथ ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बात कर रहे थे।

लेकिन उनके कार्यकाल में पाकिस्तान में आर्थिक हालात खऱाब होते गए, महंगाई बढ़ती गई और कई विपक्षी नेता जेल गए, मीडिया पर पाबंदी लगी और मानवाधिकार के उल्लंघन समेत पत्रकारों पर हमले की ख़बरें आती रहीं।

पाकिस्तान तालिबान के साथ शांति वार्ता पर हस्ताक्षर हो या अफग़़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता का समर्थन, इन मामलों के लिए ख़ान की व्यापक आलोचना हुई।

पाकिस्तान में कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि हाल के वर्षों में इमरान खान की लोकप्रियता कम होती गई है।

इन विश्लेषकों का कहना है कि वो जेल से बाहर होते तब भी 2023 में उनकी हार तय थी।

लेकिन सर्वे करानी वाली कंपनी गैलप ने जनवरी 2024 में एक सर्वे में बताया कि खान अब भी पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता हैं।

हालांकि, पिछले छह महीने में शरीफ की लोकप्रियता बढ़ी है।

पाकिस्तान में ऐसी चिंताएं हैं कि पीटीआई को चुनाव प्रचार का निष्पक्ष मौक़ा नहीं दिया जा रहा है। पार्टी के कई बड़े नेता जेल में हैं या पार्टी से संबंध तोड़ चुके हैं।

पीटीआई के नेताओं को अब स्वतंत्र उम्मीदवार की तरह चुनाव में आना पड़ रहा है। यहां तक कि पार्टी के हाथ से क्रिकेट बैट का चुनावी चिह्न भी जा चुका है।

बिलावल भुट्टो जऱदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रही थी। जऱदारी ही पार्टी के अध्यक्ष भी हैं।

बिलावल पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बेटे हैं। बेनज़ीर की 2007 में हत्या हो गई थी। बिलावल भुट्टो देश के मंत्री रह चुके हैं।

बिलावल की पार्टी चुनावों में लंबे-चौड़े वादे के साथ उतरी है। इसमें वेतन दोगुना करना, सरकारी खर्च में कटौती कर बजट बढ़ाना समेत कई चीज़ें शामिल हैं।

मौजूदा समय में ये असंभव ही लग रहा है कि पार्टी को ये नीतियां अपनाने का मौक़ा मिलेगा। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर गठबंधन की सरकार बनती है तो वो किंगमेकर बन सकते हैं।

बीबीसी से बातचीत में भुट्टो ने कहा था कि पीएमएलएन और पीटीआई के बीच किसी को चुनना काफ़ी मुश्किल फ़ैसला होगा।

पाकिस्तान की राजनीति पर जो लोग नजऱ रख रहे हैं, उन्हें ये लग रहा है कि पिछले छह साल की तुलना में मौजूदा समय भी कुछ ज़्यादा बदला नहीं है।

इस बार भी दर्जनों उम्मीदवार अयोग्य घोषित किए गए हैं, वो या जेल में हैं या फिर मजबूरी में चुनाव ही नहीं लड़ रहे हैं।

पाकिस्तान में जनता एक ऐसी सरकार की उम्मीद लगा रही है जो स्थिर हो और उन्हें बढ़ती महंगाई, पटरी से उतरती अर्थव्यवस्था और खऱाब सुरक्षा हालात से छुटकारा दे। (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news