विचार / लेख

कविता कहां से बनती है?
01-Feb-2024 4:12 PM
कविता कहां से बनती है?

 प्रियदर्शन

1. कविता लिखना कोई मुश्किल काम नहीं है। हर व्यक्ति के हिस्से कुछ स्मृतियां होती हैं, रिश्ते होते हैं, टूटने और जुडऩे के अनुभव होते हैं, किसी से धोखा खाने या किसी के समय पर काम आने की यादें होती हैं, कुछ सपने होते हैं। कविता इन्हीं के बीच तो बनती है।

2. बेशक, अनुभव का होना और उसे अभिव्यक्त करने का कौशल होना दो अलग-अलग बातें हैं। लेकिन अनुभव और अभिव्यक्ति के बीच एक अपरिहार्य रिश्ता भी है। अनुभव जहां अभिव्यक्ति को अधिकतम प्रामाणिक और विश्वसनीय भाषा अर्जित करने का यत्न करने को मजबूर करता है वहीं अभिव्यक्ति भी कई बार अनुभव की नई खिड़कियां खोलने की प्रेरणा देती है।

3. अनुभव की भी की परतें होती हैं। एक ही दृश्य से- समंदर या पहाड़ या सूर्योदय या सूर्यास्त या तारों जड़ी रात या कोहरे में डूबीं सुबह से- अलग-अलग लोगों के भीतर अलग-अलग अनुभव पैदा होते हैं। उस दृश्य या स्थिति से जुड़ाव हमारे भीतर जितनी तीव्रता पैदा करता है, हमारी अभिव्यक्ति उतनी ही गहन होती जाती है।

4. हम बहुत सारे लोग लगभग एक सी कविता लिखते हैं - प्रेम की स्मृति की, बीते हुए दुखों की, न आए सुखों की, प्रतीक्षा, उम्मीद और स्वप्न की- इसलिए कि हम सबके अनुभव और अभ्यास का लगभग एक प्रकार होता है- कई बार वह बिल्कुल प्राथमिक अनुभव होता है।

5. लेकिन यह बिल्कुल एक जैसी, लगातार दुहराई जा रही कविता एक जड़ क्लीशे में बदल जाती है। हमें पता रहता है कि हम क्या पढऩे जा रहे हैं, वह हमें स्पंदित नहीं करता।

6. किसी कवि की वास्तविक चुनौती यहीं से शुरू होती है - वह अपनी कविता को अलग कैसे करे। बल्कि यह काम भी इस तरह प्रयत्नपूर्वक नहीं किया जा सकता। इसके लिए अपने देखने, सुनने, महसूस करने का ढंग बदलना पड़ता है, दृश्य में छुपा जो अदृश्य है, शब्दों के बीच छुपा जो मौन है, सुनाई पडऩे के बीच पड़ा जो अनसुना है, सुंदरता के पीछे छुपी जो कुरूपता है, शालीनता के पीछे छुपी जो फूहड़ता है, उन सबको देखना-सुनना और महसूस करना होता है। कविता लिखने की कोशिश मजबूर करती है कि हम मनुष्य के रूप में भी बदलें, ज़्यादा संवेदनशील हों।

7. हालांकि इतने भर से काम नहीं चलता। बहुत लोग यह सब महसूस करने के बावजूद उसे लिख नहीं पाते। यहां अभिव्यक्ति की चुनौती सामने आती है। उसे साधना पड़ता है। इस काम में धैर्य भी चाहिए होता है, निर्मम ईमानदारी भी और अपने अनुभव से एक तरह की तटस्थ दूरी भी- ताकि उसे संपूर्णता में देखा-रचा जा सके।

8. किसी बड़े कवि की पंक्तियां हम क्यों उद्धृत करते हैं? इसलिए कि हमें लगता है कि हम जो अनुभव करते हैं, जो कहना चाहते हैं वह उसने बहुत सुंदर ढंग से कह दिया है। प्रेम, जीवन, संघर्ष या स्वप्न की जो कविता हम रचना चाहते हैं वह किसी और के शब्दों में हमारे पास है।

9. लेकिन कई बार यह भी होता है कि कोई कवि हमें अचरज में डाल देता है- कि जिस तरह उसने देखा-सोचा, वह हमें पहले क्यों नहीं दिखा। यहां अनुभव करने की प्रक्रिया पर ध्यान जाता है। दरअसल अनुभव करना भी अनायास कुछ महसूस कर लेना नहीं है। अनुभव को ठहर कर और बार-बार जीना पड़ता है, उसमें निहित वास्तविक अर्थ समझने होते हैं, उसमें न दिखने वाली विडंबनाओं को पहचानना पड़ता है। इस काम में स्मृति भी हमारी मदद करती है और अध्ययन भी। जो रचना में ढल सके, जिसका मर्म हमें छू सके, जो जीवन को देखने के लिए नई दृष्टि दे सके, वह अनुभव लेखन का असली कच्चा माल होता है। उससे लिखना सार्थक भी लगता है और सुखद भी?।

10 क्या अनुभव की इस प्रक्रिया से गुजऱे बिना भी अभिव्यक्ति को साध कर कविता लिखी जा सकती है? निश्चय ही। लेकिन ऐसी कविता बस चमकदार पंक्तियों का खेल लगती है, कभी-कभी इससे सूक्तियों का जादू भी निकल सकता है, लेकिन वह असली कविता छूट जाती है जो मर्म को छू ले, हमें इस तरह जकड़ ले कि हम उससे मुक्त भी होना चाहें और फिर लौट कर उसी के पास जाना चाहें।

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