विचार / लेख

इण्डिया गठबंधन का रायता
02-Feb-2024 9:08 PM
इण्डिया गठबंधन का रायता

- डॉ. आर.के. पालीवाल
इण्डिया के रायते में सबसे बड़े कंकड़ ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस थे। ममता बनर्जी का अहंकार, नितीश कुमार की पलटनी खाने की प्रवृति, अरविंद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा और कांग्रेस का बिखरापन शुरु से ही आशा नहीं जगा रहे थे। सबसे पहले इसे सबसे बड़ा धक्का नीतीश कुमार ने ही लगाया है। 

यह वही नीतीश कुमार हैं जिन्होने भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ सबसे बड़ा मोर्चा खोला था जब वे लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव के साथ अलग अलग दलों के नेताओं से बात कर रहे थे। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस गठबंधन की दल उन्हें उसी तरह संयोजक चुन लेंगे जैसे कभी वे राजग के संयोजक रहे थे। इस मामले में निराशा हाथ लगने पर उन्होंने ऐसी पलटी मारी कि इंडिया गठबंधन को ही अलविदा कह दिया। आया राम गया राम के मुहावरे में नीतीश कुमार विचारधारा को ताक पर रखकर इसी तरह गठबंधन बदलने का रिकॉर्ड बना रहे हैं जैसे वे सर्वाधिक बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बना रहे हैं।

1977 में जनता पार्टी को एकजुट करने में तीन मुख्य बातें थी, एक आपात काल का खौफ वर्तमान दौर से कहीं ज्यादा था, दूसरे जयप्रकाश नारायण ऐसे वरिष्ठ नेता थे जिनकी छवि त्यागी, सेवाभावी और स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेता की थी और तीसरे उन दिनों मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम जैसे राजनीति की भट्टी में तपे हुए कई नेता थे जिनके अपने सिद्धांत थे और अपनी विचारधारा थी। वर्तमान दौर में इंडिया गठबंधन में सीमेंट का काम करने वाले इन तीनों तत्वों का नितांत अभाव है इसीलिए आगे आगे इण्डिया गठबंधन का रायता और ज्यादा खट्टा होने की प्रबल संभावना है। नीतीश कुमार को बड़ा झटका तब लगा था जब ममता बनर्जी ने संयोजक के मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम आगे बढ़ाया था, अरविन्द केजरीवाल ने भी ममता बनर्जी का समर्थन किया था।

ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है, सबसे ज्यादा यह कि संयोजक के रुप में राहुल गांधी स्वीकार्य नहीं है का स्पष्ट संकेत, दूसरे मलिकार्जुन खडगे को आगे कर दलित वोट बटोरने की कवायद और नीतीश कुमार को किनारे करने की जुगत।

मल्लिकार्जुन खडगे जानते हैं कि कांग्रेस ने उन्हें सीताराम केसरी की तरह अध्यक्ष तो बना दिया है लेकिन पार्टी की कमान सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हाथ में ही रहेगी। इसीलिए उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि पहले लोकसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित कर लें तब प्रधानमन्त्री कौन हो यह निर्णय हो जाएगा।इण्डिया गठबंधन की अगले छह महीने के सफर में और भी बहुत सी बाधाएं हैं। करीब ढाई दर्जन छोटे बड़े दलों को साधना, कांग्रेस की भूमिका तय करना उनमें सबसे प्रमुख हैं। जम्मू कश्मीर में फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच सीटों का समन्वय और उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सीटों का तालमेल भी आसान नहीं है।

बिहार में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के बीच सीटों का बंटवारा मुश्किल होगा और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच।ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को कोई रियायत नहीं देंगी इसके संकेत उन्होंने पहले ही दे दिए हैं।समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव में भी काफी तनातनी हो चुकी है। इसका दुष्प्रभाव उत्तर प्रदेश में सीटों के बंटवारे को लेकर दिखना स्वाभाविक है। इससे कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होना है। वह मध्य प्रदेश में पहले ही काफी पिछड़ गई है और उत्तर प्रदेश में तो उसकी स्थिती अत्यंत दयनीय है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद बढते धार्मिक ध्रुवीकरण का भी सबसे ज्यादा लाभ भाजपा और समाजवादी पार्टी को ही होगा। ऐसे में कांग्रेस के लिए वहां की जमीन और ज्यादा सिकुड़ेगी। कुल मिलाकर इंडिया गठबंधन का रायता समेटना टेढ़ी खीर लगता है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news