विचार / लेख

अंतरिम बजट 2024
05-Feb-2024 5:06 PM
अंतरिम बजट 2024

-डॉ आर के पालीवाल
आर्थिक मामलों की गहरी जानकारी रखने वाले प्रबुद्धजन यह मानकर चल रहे थे कि यह बजट अंतरिम है इसलिए इसमें दूरगामी फैसले नहीं होंगे। हालांकि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को चौंकाने वाले निर्णय लेने के लिए जाना जाता है इसलिए कुछ लोग यह उम्मीद भी पाले थे कि लोकसभा चुनाव पूर्व के बजट में व्यक्तिगत आयकर छूट की सीमा या टैक्स की दर में परिर्वतन कर करदाताओं को खुश किया जा सकता है। हकीकत जबकि इसके एकदम विपरित है। कभी व्यापार से जुड़ा आयकरदाताओं का मध्यम वर्ग जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी का सबसे विश्वसनीय वोट कैडर हुआ करता था। इन दिनों भारतीय जनता पार्टी की नजऱ पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बड़े वोट बैंक पर सबसे ज्यादा टिकी है इसलिए अपने पुस्तैनी वोट बैंक की कोई पूछ नहीं है। हास्य के रुप में कह सकते हैं कि इस वर्ग की दशा मार्गदर्शक मंडल जैसी हो गई है। यही कारण है कि कॉरपोरेट सेक्टर की तुलना में अन्य वर्ग के आयकर दाताओं को विगत वर्षों में लाभ के बजाय नुकसान ही हुआ है। अधिकतम कॉरपोरेट टैक्स तीस से घटकर बाइस प्रतिशत हुआ है लेकिन व्यक्तिगत कर वही तीस प्रतिशत रहा है।

यह भी तय माना जा रहा था कि चुनावी साल के बजट में कम से कम आम जनता पर ज्यादा भार नहीं डाला जाएगा इसीलिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की दरों को जस का तस रखा गया है। जहां तक सरकार के खजाने की स्थिति का प्रश्न है वह कोविड संकट से उबरने के बाद लगातार समृद्ध हो रहा है। जीएसटी अच्छी खासी गति से बढ़ रहा है और आयकर भी लगभग उसी तर्ज पर बढ़ रहा है। राजस्व संग्रह की मजबूत स्थिति से सरकार के पास धन की कोई कमी नहीं है। ऐसी स्थिति में कुछ राहत घोषणाएं की जा सकती थीं।

कुल मिलाकर अंतरिम बजट उदासीन बजट है। हालांकि सत्ता पक्ष हमेशा बजट की तारीफ में अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग करता है और विपक्ष हमेशा मीन मेख निकालता है, लेकिन तटस्थ भाव से देखने पर यह बजट अति साधारण ही कहा जाएगा। न कुछ खास छीनने वाला और न कुछ खास देने वाला। अंतरिम बजट होने के बावजूद अपने दल के मंत्रियों और सांसदों से सदन में ताली बजवाने के लिए वित्तमंत्री ने पिछ्ले दस साल के अपने दल के शासन की तारीफों के खूब पुल बांधे थे, मसलन पिछ्ले दस साल से अर्थव्यवस्था में बहुत सुधार हुआ है और 2047 में विकसित भारत बन जाएगा आदि आदि।

वित्तमंत्री ने कर दाताओं को धन्यवाद जरूर दिया है क्योंकि वे ही चालू वित्त वर्ष में सरकार को खुले हाथ से खर्च करने के लिए 23 लाख करोड़ रुपया टैक्स के रुप में सौंपेंगे जो अगले वित्त वर्ष में लगभग दस प्रतिशत बढक़र छब्बीस लाख करोड़ रुपए से ज्यादा होने की संभावना है। टैक्स का यह आंकड़ा भले ही अमेरिका और चीन आदि की तुलना में काफी कम है लेकिन अस्सी करोड़ गरीब जनता को मुफ़्त राशन देने वाले अति गरीब देश के लिए आश्चर्चकित करने वाला है। इसके बावजूद भी हमारे देश में मध्यम वर्गीय आयकरदाताओं का कोई सम्मान नहीं है। वित्तमंत्री की इस बात में जरूर दम है कि टैक्स रिफंड देने में बहुत प्रगति हुई है और अब अधिकांश मामलों में एक सप्ताह में रिफंड मिल जाता है। इसके अलावा आयकरदाताओं के उस वर्ग को बजट प्रावधान से जरूर लाभ प्राप्त होगा जिनकी वर्ष 2009-10 से पहले की पच्चीस हजार रूपए तक की डिमांड लंबित हैं, या 2009-10 से 2014-15 के बीच की दस हजार रूपए तक की डिमांड लंबित हैं। ऐसी डिमांड माफ की गई हैं। यह प्रावधान केवल पुरानी और तय सीमा से कम राशि के लिए लागू होने से अधिकांश मतदाता इससे अप्रभावित रहेंगे। वित्तमंत्री के भाषण का साइज भी तुलनात्मक रूप से काफी कम रहा। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के इस मत में भी जान है कि श्री राम मय माहौल में सत्ताधारी दल को चुनाव जीतने के लिए बजट के सहारे की जरुरत ही नहीं है।

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