विचार / लेख

महिला नहीं, पुरुषों का चरित्र प्रमाणपत्र
09-Mar-2024 2:02 PM
महिला नहीं, पुरुषों का चरित्र प्रमाणपत्र

ऋतु तिवारी

आज महिला दिवस पर बधाइयों के बीच मुझे वो दिन याद आ रहा है जिस दिन मैं कोलकाता के सोनागाछी गई थी सेक्स वर्कर्स से मिलने और जानने और समझने कि सोनागाछी के बारे में शहर से लेकर देश -विदेश में जो मिथक हैं उनमें कितनी सच्चाई है और जिन पर फिल्में बनाकर फिल्मकारों ने जाने कितने अवार्ड बटोरे।

सबसे पहला संघर्ष रहा उस गली तक पहुँचना जो उन तक जाती थी।उनके संगठन के ऑफि़स तक पहुँचने में कोई मुश्किल नहीं हुई और संगठन के सेक्रेटरी से बात करने के बाद जब उन्हें संतोष हुआ कि हम किसी गलत नीयत से नहीं आये हैं, एक रास्ता खुला कि उन तक पहुँचा जा सके।

पर वहाँ उस गली में पहुँचते पहुँचते जाने कितनी बार हम पर शक किया गया..पर हम ये बताने में सफल रहे कि हम उनलोगों में से नहीं हैं जिनसे उन्हें डर है।  (हमसे डरने का कारण उन्होंने बताया, जिसकी चर्चा एथिक्स के हिसाब से गलत होगा।)

आखिरकार शहर के एक आम रास्ते से होते हुए हम उस गली में पहुँच ही गये जिसके हर मकान की खिडक़ी को बाहर से गुजरने वाला एक ऐसी नजऱ से देखता है मानो उस खिडक़ी के पार दुनिया की सबसे खराब औरत रहती है।

जब हम एक मकान के भीतर घुसे तो दृश्य बिल्कुल वैसा था जैसा सिनेमा में आप सबने देखा होगा कि रात को शरीर बेचने वाली भी दिन में बैठकर बालों में तेल लगा रही है, कोई बच्चे को खाना खिला रही है।जिस बात ने सबसे पहले मुझे चोट पहुँचाई वो ये कि एक अजीब सी हिकारत से हमें देखा गोया हम बाहरी उनकी दुनिया में इतनी आसानी से कैसे घुस आये।

धीरे-धीरे उनके बीच हमने विश्वास कायम किया और उन्होंने हमसे बातचीत शुरू की।

आश्चर्य होगा आप सबको ये जानकर कि उनके बीच जब हम थे तो हमपर बाहर से कुछ युवक नजर रखे हुए थे और बीच बीच में आकर तस्दीक करते थे कि कहीं कुछ संदेहास्पद तो नहीं।

लेकिन अंतत: हम पर भरोसा किया गया और फिर जो सुना, उनकी आँखों से देखा और समझा उसकी बात एक साथ लिखते हुए फोन हैंग हो जायेगा।

पर इतना जरूर देखा हमने कि उन्होंने हमारी आँखों में आँखें डाल कर जिस तरह बात की,बयान किया..हम शर्मिंदा थे..हमारी आँखें नीची थी और उनकी आत्मा पर लगे घाव हम सिर्फ महसूस करने की कोशिश कर रहे थे।

कितना अद्भुत संयोग है कि हम जिसको प्यार करते हैं उसे बाबू कहकर पुकारते हैं, उनके बाबू वो हैं जो उनके लिये ग्राहक लाकर देते हैं।

कितने ही अनुभव उन क्षणों में हमने सुना, उनके दर्द को सुना (हम समझने का दावा कर लें पर ये आसान नहीं तो मैं खुद को नहीं छल सकती।)लेकिन सबसे ऊपर रहा उनके अपने आत्मसम्मान की भावना जिसको बयान किया ही नहीं जा सकता।

वो तो सिर्फ ‘धंधा’ करती हैं कि कोई अपनी अपाहिज बच्ची का इलाज करा सके या कोई अपनी बहन-भाई को पढ़ा सके या फिर किसी के पति ने उसे छोड़ दिया और उसके पास अपने बच्चों को जीवन देने के लिये इसके अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा जो उसकी जरूरत पूरी कर पाये।

फिर हमारे लौटने का वक्त हुआ तो एक उम्रदराज ‘बाबू’ ने मुझे अपना नम्बर देते हुए सिफ$ इतना कहा कि मेरा नम्बर रख लें। शायद आप किसी की कोई भला करना चाहेंगी तो मैं मदद कर सकता हूँ।

इस दुनिया में सेक्स वर्क होम का होना किसी महिला  का नहीं बल्कि पुरुषों का चरित्र प्रमाणपत्र है।

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