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यूरोप अपनी गिरती प्रजनन दर को कैसे दोबारा बढ़ा सकता है?
10-Mar-2024 10:43 PM
यूरोप अपनी गिरती प्रजनन दर  को कैसे दोबारा बढ़ा सकता है?

इस साल यूरोप में एक बड़ा बदलाव हो रहा है, यह बदलाव दिखाई दे रहा है यूरोपीय देशों में शिशुओं की संख्या में। पिछले साल फ्रांस में छह लाख 78 हजार बच्चों का जन्म हुआ। दूसरे महायुद्ध के बाद से पहली बार देश में एक साल में इतने कम बच्चे पैदा हुए हैं।
देश में घटती जन्म दर की समस्या केवल फ्ऱांस में ही नहीं बल्कि इटली, स्पेन और पुर्तगाल में भी है, जहां दशकों से जन्म दर घटती जा रही है। 
यूरोप के कई अन्य देशों में भी जन्म दर में रिकॉर्ड गिरावट आ रही है। वहां कि सरकारों को चिंता है कि अगर इस समस्या का हल नहीं निकाला गया तो भविष्य में अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखना मुश्किल हो जाएगा।
कई यूरोपीय देशों की आबादी बूढ़ी हो रही है। इस समस्या को सुलझाने के लिए यूरोपीय सरकारों ने आबादी बढ़ाने के लिए अरबों यूरो का निवेश भी किया है लेकिन अभी तक उसका कोई फल नजर नहीं आ रहा क्योंकि स्थिति में कोई खास फर्क नहीं आया है।
इस सप्ताह हम दुनिया जहान में यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या यूरोप अपनी गिरती प्रजनन दर को दोबारा बढ़ा सकता है?
प्रेगनेंसी पॉज
फिनलैंड की पॉप्यूलेशन रिसर्च इंस्टिट्यूट की शोध निदेशक एना रोथकेर बताती हैं कि सदी की शुरुआत में फिनलैंड की प्रजनन दर ऊंची थी और बढ़ रही थी।
लेकिन आगे बढऩे से पहले कुछ परिभाषाओं को समझना ज़रूरी है। प्रजनन दर का मतलब है- सैद्धांतिक रूप से प्रति महिला औसत शिशु जन्म दर, बशर्ते कि वह उस समय तक जीवित रहे जब तक वह गर्भधारण कर सकती है। यूरोपीय संघ की औसत प्रजनन दर 1.53 है।
एना रोथकेर कहती हैं, ‘2011 में फिऩलैंड में प्रजनन दर 1.9 थी जो फिऩलैंड के हिसाब से काफी अच्छी दर थी लेकिन 2023 में वो घट कर 1.3 से भी कम हो गई है। यानि प्रजनन दर में 32 फीसद की गिरावट आयी है।’
जन्म दर का अर्थ है प्रति एक हज़ार लोगों के हिसाब से औसतन कितने बच्चे जन्म लेते हैं। तो जन्म दर में भी भारी गिरावट देखी गई। एना रोथकेर कहती हैं कि 2010 के बाद से फिनलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और डेनमार्क जैसे दूसरे नॉर्डिक देशों में जन्म दर में गिरावट आना शुरू हो गया था। वह कहती हैं हालांकि यहां शिशु और माताओं के स्वास्थ्य की बेहतरीन सुविधाएं हैं और अच्छी परिवार कल्याण योजनाएं हैं जो कि नॉर्डिक देशों की विशेषता है, मगर उसके बावजूद प्रजनन दर गिर रही है। ऐसे में इसके क्या कारण हो सकते हैं?
एना रोथकेर ने कहा, ‘बेरोजग़ारी और साथी ढूंढने में दिक्कत का भी गर्भधारण पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा समाज और संस्कृति में आ रहे परिवर्तन का भी इस पर असर पड़ रहा है।’
एना रोथकेर के अनुसार फिनलैंड में सरकारी संस्थाओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि सर्वेक्षणों में भाग लेने वालों में पंद्रह फीसद लोग बच्चे पैदा करना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके रहन-सहन में बड़ा बदलाव आएगा। इस शोध के दौरान लोगों की माता-पिता बनने से जुड़ी कई धारणाएं भी सामने आईं जिनमें कुछ सकारात्मक थीं और कुछ नकारात्मक।
एना रोथकेर कहती हैं, ‘जो लोग बच्चे पैदा करना नहीं चाहते उन्होंने यह वजह बताई कि मां-बाप बनने से वह कम सो पाएंगे और कम आराम कर पाएंगे। या करियर को आगे बढ़ाने में दिक्कत आएगी। और जो लोग बच्चे पैदा करना चाहते हैं वो इसके सकारात्मक पहलू को देखते हैं।’
‘वैसे देखा जाए तो नॉर्डिक देशों में लोगों की आय अच्छी है, उनके पास पैसे भी हैं और समय भी। और वह बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी आसानी से निभा सकते हैं। लेकिन शायद उन्हें यह बात सही तरीके से समझाई नहीं गई है।’
यह एक कारण है जिससे इन देशों में प्रेगनेंसी पॉज आ गया है यानि महिलाओं में गर्भधारण बहुत कम हो गया है। कई महिलाओं के सामने यह समस्या है कि जब तक वह मां बनने का फैसला करें तब तक समय निकल जाता है या उम्र बढऩे से उसमें दिक्कतें पेश आती हैं।
मगर क्या यह ट्रेंड बदलने के कोई आसार दिखाई दे रहे हैं? एना रोथकेर कहती हैं कि कोविड की महामारी के दौरान 2021 में कुछ समय के लिए नॉर्डिक देशों में जन्म दर बढ़ गई थी लेकिन 2022 में वह फिर नीचे आ गई। इस दौरान कुछ समय के लिए जन्मदर स्थिर भी हुई। लेकिन पिछले कई सालों में प्रजनन दर में जिस प्रकार की गिरावट आई है उसकी किसी को अपेक्षा नहीं थी।
प्रजनन दर में लगातार गिरावट
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष में अर्थशास्त्र और जनसांख्यिकी यानि डेमोग्राफिक्स के वरिष्ठ सलाहकार माइकेल हर्मन की राय है कि अगर प्रजनन दर बहुत नीचे आ जाए तो उसे दोबारा बढ़ाना बहुत मुश्किल होता है।
यह संस्था विश्वभर में जनसंख्या से जुड़े मामलों पर काम करती है। माइकेल हर्मन ने बताया कि यूरोप में इटली, पुर्तगाल, ग्रीस, सर्बिया और दक्षिण पूर्वी यूरोपीय देशों में प्रजनन दर 1।3 के करीब आ गई है। हम कह सकते हैं कि यूरोपीय देश दुनिया को डेमोग्राफिक्स में आ रहे नए बदलाव की दिशा में ले जा रहे हैं। इससे पहले हमने कभी जनसंख्या में इस प्रकार लगातार गिरावट नहीं देखी है।
दुनिया में सबसे कम प्रजनन दर दक्षिण कोरिया में है। साथ ही ईरान, मॉरिशस और लातिन अमेरिका के कुछ गऱीब देशों में भी पिछले कुछ सालों में प्रजनन दर घटी है।
कुछ देशों में प्रजनन दर घटने के विशेष कारण रहे हैं। मिसाल के तौर पर चीन में जहां जनसंख्या नियंत्रण के लिए 1979 में प्रति दंपत्ति केवल एक बच्चे का नियम लागू कर दिया गया था जिसे अभी नौ साल पहले ही रद्द किया गया।
माइकेल हर्मन ने कहा, ‘इस ट्रेंड को बदल कर प्रजनन दर बढ़ाना बहुत मुश्किल होता है। चीन में भी यही हो रहा है। दरअसल काम और घरेलू जीवन के बीच संतुलन बनाने में आने वाली दिक्कत भी इसका एक कारण है। वहीं बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता नहीं मिल पाती। इस वजह से फिलहाल चीन में कई लोग दो या तीन बच्चे पैदा नहीं करना चाहते।’
माइकेल हर्मन कहते हैं कि जन सर्वेक्षणों के अनुसार कई देशों में लोगों के बच्चे पैदा ना करने के अन्य कारण भी हैं। जैसे कि कुछ लोग बिगड़ते पर्यावरण की वजह से या अपने देश की बदहाल राजनीतिक स्थिति की वजह से भी बच्चे पैदा करना नहीं चाहते। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आर्थिक और सामाजिक स्थितियों में सुधार आने से प्रजनन दर बढ़ जाएगी। यह मसला काफी पेचिदा है।
माइकेल हर्मन ने कहा, ‘जापान, कोरिया और यूरोप कई देश प्रजनन दर बढ़ाने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं। हम कह सकते हैं कि इस दिशा में हंगरी को इसमें सफलता जरूर मिली है। 2010 से 2022 के बीच हंगरी की कुल प्रजनन दर में 25 फीसद वृद्धि हुई है।’
हंगरी की राष्ट्रवादी सरकार ने प्रवासन यानि इमीग्रेशन के बजाय प्रजनन को प्राथमिकता देने की नीति अपनाई हुई है। सरकार लोगों को बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए टैक्स में भारी छूट देती है। जो विवाहित लोग बच्चे पैदा करना चाहते हैं, उन्हें मकान खरीदने के लिए आर्थिक सहायता दे रही है। मगर समलैंगिक जोड़ों को यह सहायता नहीं दी जाती। अफ्रीका में प्रजनन दर ऊंची है लेकिन वहां भी कई देशों में वह कम है।
माइकेल हर्मन के अनुसार पचास साल पहले अफ्ऱीका में औसत प्रजनन दर 6.5 थी। अब वह घट कर 4.1 हो गई है। अनुमान है कि साठ साल बाद यह घट कर 2.1 रह जाएगी। मगर एरिट्रिया में प्रजनन दर 6.5 है जो कि काफी ऊंची है।
विश्व की आबादी बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार दुनिया की आबादी 2022 में आठ अरब के ऊपर चली गई है। लेकिन अनुमान है कि गिरती प्रजनन दर की वजह से भविष्य में आबादी की वृद्धि दर धीमी हो जाएगी। अब लोगों की अधिक अपेक्षित आयु बढ़ रही है। कई देशों की सरकारों के सामने समस्या है कि बूढ़ी आबादी के पेंशन का खर्च कैसे उठाया जाए क्योंकि जन्म दर के घटने से बाजार में नए श्रमिकों की किल्लत बढ़ती जा रही है। इसका सीधा असर देशों की उत्पादकता पर पड़ रहा है। प्रजनन दर बढ़ भी जाए तब भी इसके जरिए श्रमिकों की कमी को पूरा करने में कई दशक लग जाएंगे।
प्रजनन संबंधी सरकारी नीतियां
इटली के मिलान शहर की बोकोनी यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस सेंटर में डेमोग्राफ़ी यानि जनसांख्यिकी के प्रोफेसर एमस्टेन आसेव की राय है कि जिन देशों में महिला और बाल कल्याण की अच्छी योजनाएं कायम रही हैं जिसके तहत महिलाओं को मैटरनिटी लीव या छुट्टी और बच्चों की देखभाल के लिए बेहतर सुविधाएं और आर्थिक सहायता मिलती रही है, वहां प्रजनन दर अच्छी रही है। उसमें गिरावट कम आई है।
‘महिलाओं और परिवार संबंधी नीतियां प्रजनन दर बढ़ाने के उद्देश्य से नहीं बल्कि महिलाओं को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए बनायी गयी थीं। लेकिन इससे प्रजनन दर बढऩे में भी मदद मिली। इसका मतलब है कि प्रजनन दर बढ़ाने के लिए नीतियां बनाते समय हमें कई और बातों के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि केवल प्रजनन दर को बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियां संभवत: उतनी सफल ना हों।’
जो संदेह एमस्टेन आसेव जता रहे हैं वैसी ही बात फ्रांस में भी देखी जा रही है, जहां इन नीतियों के जरिए लोगों को बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने में दिक्कत आ रही है।
एमस्टेन आसेव कहते हैं, ‘फ्रांस उन देशों में है जिसकी परिवार संबंधी नीतियों को काफ़ी बेहतर माना जाता रहा है। यूरोप के अन्य देशों की तुलना में फ्ऱांस की प्रजनन दर हमेशा अच्छी रही है। इसमें पिछले कुछ सालों में जो गिरावट आई है वो भविष्य में भी जारी रहेगी या नहीं यह कहना मुश्किल है। दूसरा उदाहरण जर्मनी का है जहां कुछ सालों पहले घटती प्रजनन दर को लेकर काफ़ी चिंता थी लेकिन उसने नॉर्डिक देशों की तजऱ् पर परिवार कल्याण संबंधी नीतियां लागू कीं और परिवारों को बच्चों की परवरिश के लिए सहायता देना शुरू किया। यह नीति काफ़ी हद तक सफल भी हुई है क्योंकि जर्मनी के प्रजनन दर में वृद्धि हुई है।’
मगर यूरोप के कई देश कई पीढिय़ों से प्रजनन दर बढऩे का इंतजार कर रहे हैं।
एमस्टेन आसेव के अनुसार इटली और स्पेन में पिछले करीब 30 सालों से प्रजनन दर कम रही है। ऐसा नहीं है कि वहां प्रजनन दर घटती गई है बल्कि वह कम ही रही है। जाहिर सी बात है कि उन सरकारों के लिए यह चिंता का विषय है।
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने हाल में कहा था कि देश में जन्मदर बढ़ाना उनकी सरकार की प्राथमिकता होगी। वहीं 2022 में इटली में 18 से 35 वर्ष की आयु के सत्तर फीसद लोग अपने माता पिता के साथ ही रह रहे थे। यानि उनमें से कई लोग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हैं। ऐसे में उनके लिए बच्चे पैदा करने का फ़ैसला करना मुश्किल हो जाता है।
एमस्टेन आसेव का मानना है कि युवाओं को सहायता देने से लाभ हो सकता है मगर इसके लिए यह भी ज़रूरी है कि सरकार की नीतियों में निरंतरता बनी रहे ताकि लोग आश्वस्त हो सकें कि बच्चे पैदा करने के बाद भी सहायता जारी रहेगी।
प्रजनन दर और कितनी गिर सकती है?
ऑस्ट्रियन एकेडमी ऑफ साइंसेज की विएना इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेमोग्राफ़ी के उपनिदेशक टोमस सोबोत्का मानते हैं कि कई देशों में प्रजनन दर रिकॉर्ड स्तर तक नीचे आ गयी है और वह यह अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह और कितना गिर सकती है।
‘प्रजनन दर जितना नीचे गिरेगी उतना ही भविष्य में उसे बढ़ाना मुश्किल होगा। कई देशों को इसके गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा।’
यह भी एक गंभीर प्रश्न है कि नीति निर्माताओं को किस हद तक लोगों के प्रजनन संबंधी फ़ैसलों को प्रभावित करना चाहिए या लोगों के परिवार संबंधी फ़ैसलों में किस हद तक दख़ल देना चाहिए।
टोमस सोबोत्का का कहना है, ‘हम समाज कल्याण पर आधारित देशों में रहते हैं जिस वजह से इस क्षेत्र में सरकार का दख़ल तो हमेशा से रहा है। मगर हमने इतिहास में यह भी देखा है कि प्रजनन दर बढ़ाने की इस प्रकार की सरकारी नीतियों से लंबे समय में उतनी सफलता नहीं मिलती।’
लोग बच्चे पैदा करें या नहीं और कितने बच्चे पैदा करें इस बारे में लोगों के रूख़ को बदलने के बजाय उसे स्वीकार कर लेना और कम होती आबादी के हिसाब से अपनी अर्थव्यवस्था को ढालना भी क्या सही विकल्प हो सकता है? यह इस बात पर निर्भर करता है किसी देश में प्रजनन दर कितनी तेजी से कम हो रही है।
टोमस सोबोत्का का मानना है कि जिन देशों में जनसंख्या लंबे समय के दौरान धीमी गति से कम हो रही है, वहां की अर्थव्यवस्था और लेबर मार्केट अपने आपको उस स्थिति के अनुसार ढाल सकते हैं। लेकिन जहां जनसंख्या प्रतिवर्ष लगभग एक फीसद से घट रही है, वहां इस समस्या से जूझना चुनौतिपूर्ण होगा क्योंकि लेबर मार्केट में नए श्रमिकों की कमी का असर ढांचागत व्यवस्थाओं पर पड़ेगा। संचार और परिवहन से लेकर सरकारी तंत्र को चलाने के लिए भी लोगों की किल्लत होगी जिसके चलते वो सुचारू तरीके से नहीं चल पाएंगे।
कनाडा जैसे कुछ देश इस समस्या के समाधान के लिए दूसरे देशों से प्रवासियों को लाकर अपने देश में बसाने का रास्ता अपना रहे हैं। लेकिन कई देशों में प्रवासन या इमिग्रेशन के मुद्दे को लेकर ध्रुवीकरण हो रहा है।
टोमस सोबोत्का का कहना है कि घटती प्रजनन दर को एक अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है। यानि जिन देशों में कम बच्चे पैदा हो रहे हैं वहां उन्हें बेहतर शिक्षा और सामाजिक सुविधाएं दी जा सकती हैं जो देश की उत्पादकता बढ़ाने में मददगार होगी और जब यह बच्चे बड़े होंगे तो वहां प्रतिस्पर्धा कम होगी और उन्हें अच्छी तनख़्वाह मिल सकती है।
इसके साथ ही आबादी के घटने से मकानों की उपलब्धता की समस्या भी कम होगी और युवाओं को बेहतर जीवन प्राप्त होगा। तो क्या यूरोप अपनी गिरती प्रजनन दर को दोबारा बढ़ा सकता है? जैसा कि हमने उत्तर यूरोपीय यानि नॉर्डिक देशों में देखा कि लोगों को बच्चे पैदा करने के लिए उदार आर्थिक सहायता देने की नीति कुछ खास कामयाब नहीं रही है।
ऐसे में सरकार की सामाजिक नीतियों में स्थिरता और निरंतरता बनी रहे तो उसके सफल होने की संभावना अधिक है। पहले जैसी ऊंची प्रजनन दर तक पहुंचना अत्यंत चुनौतिपूर्ण होगा। ऐसे में यूरोपीय देशों के लिए सबसे बेहतर विकल्प यह होगा की वो प्रजनन दर को तेज़ी से गिरने से रोकने पर ध्यान केंद्रित करें। (bbc.com/hindi)

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