विचार / लेख

नीतीश कुमार ब्रांड के नेता
12-Mar-2024 2:50 PM
नीतीश कुमार ब्रांड के नेता

डॉ. आर.के. पालीवाल

राजनीति में विचारधारा का जैसा विचलन इधर देखने में आ रहा है उससे लगता है कि राजनीति से विचार और सेवा तत्व लगभग नदारद हो गया है और राजनीति मात्र सत्ता की असीमित शक्ति और ऐशो आराम की जिंदगी जीने का सर्वोत्तम माध्यम बन गई है।सबसे ज्यादा ताज्जुब तो तब होता है जब इस जमात के वरिष्ठ नेता तीन सौ साठ डिग्री टर्न लेकर अपनी धुर विरोधी विचारधारा वाले राजनीतिक दल की शरणागत होकर अचानक नए दल के उन नेताओं के स्तुति गान गाने लगते हैं जिन्हें वे कई साल से पानी पी पीकर बुरी तरह गलियाते रहते थे।

दुर्भाग्य से हमारा संविधान, केन्द्रीय चुनाव आयोग और जन प्रतिनिधि कानून इस तरह के स्वार्थी और विचार रहित नेताओं पर लगाम कसने में अक्षम हैं। इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इन महा स्वार्थी नेताओं को विरोधी राजनीतिक दल चुनाव मे टिकट भी दे देते हैं और राज्य सभा के उच्च सदन में पहुंचाकर माननीय भी बनाते हैं।जाति और धर्म के नाम पर बंटे हुए नागारिक भी इन्हें सर आंखों पर बिठाकर अपना प्रतिनिधि चुन लेते हैं। निश्चित रूप से इन नेताओं की राजनीतिक दुकान चलवाने के लिए सबसे बड़ा दोष तो मतदाताओं का ही है क्योंकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में नागरिकों को शासन चलाने के लिए वैसे ही शासक मिलते हैं जैसे वे खुद हैं।

     कभी हरियाणा में भजनलाल से राजनीति में आयाराम गयाराम की शुरुआत हुई थी जिसे हमारे समय में नीतीश कुमार ने और आगे बढ़ाकर वैचारिक राजनीति को गर्त मे पहुंचाया है। नीतीश कुमार की वर्तमान छवि जोड़ तोड़ से सरकार बनाने के पितामह की बन गई है। अमूमन हर राज्य में उनकी तरह के नेताओं का एक ऐसा बड़ा वर्ग पैदा गया है जो ज्यादा दिन सत्ता से दूर नहीं रह सकते। यह देखने में आया है कि इन नेताओं के परिवार के विविध व्यापारिक हित भी होते हैं और आर्थिक घोटालों के काले कारनामें भी होते हैं जिसकी वजह से ये जांच एजेंसियों के रडार से बचने के लिए सत्ता के आसपास मंडराते रहते हैं।

महाराष्ट्र से अशोक चव्हाण और उत्तर प्रदेश से स्वामी प्रसाद मौर्य और मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी आदि नेता इसी वर्ग में आते हैं। ऐसे नेताओं को लुभाकर अपना अश्वमेध अजेय रखने के लिए सत्ता पक्ष भी जीजान से जुटता है और विपक्ष भी उन पर सवार होकर सत्ता पाने के लिए लालायित रहता है।2024 के लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से अपनी खोई हुई जमीन वापिस हासिल करने की कोशिश कर रही है वहीं भाजपा नई रणनीति के तहद इस चुनाव को कांग्रेस मुक्त चुनाव बनाने में लगी है।हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह का एक बयान प्रमुखता से अखबारों में प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने स्थनीय नेताओं से कांग्रेस के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को भाजपा में लाने का निर्देश दिया है और कहा है कि सांसदों और विधायकों को भाजपा में शामिल कराने का काम भाजपा हाई कमान करेगा।

ऐसे में विपक्ष का यह आरोप सही लगता है कि भाजपा खुद को लॉन्ड्री मशीन मानती है जिसमे घुसकर दागी नेता साफ हो जाते हैं। इसका प्रमाण हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में आए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण हैं जिन पर भाजपा ने आदर्श घोटाले में खूब कीचड़ उछाली थी। हाल ही में भाजपा में शामिल होने पर उन्हें राज्य सभा के उच्च सदन में प्रतिष्ठित किया गया है। इसके पहले यही घटनाक्रम मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ घटित हुआ था।महाराष्ट्र में अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री बनाकर भी यही संदेश दिया गया था कि भाजपा के साथ आने से जांच एजेंसियों के एंटीना का रुख आपकी पूर्व की संदिग्ध गतिविधियों पर नहीं रहेगा। लोकतंत्र के लिए यह स्थिति अत्यन्त घातक है। अंतिम उम्मीद की किरण मतदाता ही हैं। मतदाताओं की जागरूकता के बगैर लोकतंत्र निरंतर भोंथरा होता जाएगा।

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