विचार / लेख
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बीते दिनों ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में ओबीसी की भागीदारी पर बात करते दिख रहे हैं।
राहुल गांधी ने ब्यूरोक्रेसी में भी ओबीसी अधिकारियों की संख्या का मुद्दा संसद में उठाया था।
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बीजेपी को इस संबंध में घेरती हुई नजर आती रही है।
दूसरी तरफ बीजेपी ने हरियाणा में मंगलवार को अहम फैसला लिया।
मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़े के बाद जाटों के दबदबे वाले हरियाणा में बीजेपी ने अपने ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है।
इससे पहले मध्य प्रदेश में भी मोहन यादव को सीएम बनाया गया था। वो भी ओबीसी समुदाय से आते हैं।
खट्टर के इस्तीफा देते ही साढ़े चार साल पुराना बीजेपी और जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी का सरकार में गठबंधन में खत्म हो गया।
ऐसे में सवाल पूछा जा रहा है कि लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आखिर बीजेपी ने खट्टर को सीएम पद से क्यों हटाया और नायब सैनी को सीएम क्यों बनाया?
चुनाव से पहले चेहरे बदलना बीजेपी की रणनीति का हिस्सा
चुनाव से पहले राज्यों में मुख्यमंत्री बदलना बीजेपी की परखी हुई रणनीति है।
इसकी शुरुआत 2021 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के इस्तीफे से होती है। विजय रूपाणी के इस्तीफे के बाद पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को बीजेपी ने गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया था।
अगले साल ही यानी 2022 में गुजरात में विधानसभा चुनाव होना था। रूपाणी की पूरी कैबिनेट ने इस्तीफ़ा दे दिया था और रातोंरात मुख्यमंत्री से लेकर गुजरात का पूरा मंत्रिमंडल नया हो गया था।
एक साल बाद गुजरात में चुनाव हुआ और बीजेपी ऐतिहासिक बहुमत के साथ सातवीं बार सत्ता में लौटी थी।
बीजेपी ने गुजरात के बाद कर्नाटक, उत्तराखंड और त्रिपुरा में भी मुख्यमंत्रियों को बदल दिया था। कर्नाटक को छोड़ दें तो मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति बीजेपी के हक़ में गई थी।
हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति को बीजेपी की ओबीसी केंद्रित राजनीति के आईने में देखा जा रहा है।
बीजेपी संदेश देना चाहती है कि कांग्रेस भले ओबीसी की बात कर रही है लेकिन वो हकीकत में इसे करके दिखा रही है।
77 सदस्यों वाले मोदी मंत्रिमंडल में सबसे ज़्यादा 27 मंत्री ओबीसी हैं। बीजेपी के 303 लोकसभा सांसदों में 85 ओबीसी हैं।
हरियाणा में जाति का आंकड़ा
हरियाणा में कऱीब 44 फ़ीसदी आबादी ओबीसी है। माना जा रहा है कि पार्टी सैनी को सीएम बनाकर ओबीसी मतदाताओं को लुभाना चाहती है।
हरियाणा में बीजेपी के एक तबके का कहना है कि खट्टर को बदलने की पहल एक साल से हो रही थी, पार्टी कोशिश कर रही थी कि ज़्यादा दलित, ओबीसी चेहरों को सामने लाया जाए।
इसके अलावा फरवरी 2024 में खट्टर के खिलाफ कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाई थी। हालांकि ये प्रस्ताव गिर गया था। मगर खट्टर के कार्यकाल में लाया गया ये दूसरा अविश्वास प्रस्ताव था।
कहा जा रहा है कि खट्टर के प्रति अविश्वास की स्थिति बीजेपी के अंदर भी थी। पार्टी कार्यकर्ताओं में खट्टर को लेकर नाराजग़ी थी।
ऐसे में खट्टर को हटाकर बीजेपी की कोशिश है कि चुनावों में नए चेहरे के साथ उतरा जाए।
द टेलीग्राफ अखबार से एक बीजेपी नेता ने कहा, ‘खट्टर और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच कटाव सा था। काम तो अच्छा ही कर रहे थे।’
बीजेपी के कई नेताओं ने कहा कि खट्टर के बारे में पार्टी को फीडबैक दिया गया था।
कुछ महीने पहले हरियाणा के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने बीजेपी का हाथ थामा था। तंवर के रूप में बीजेपी को राज्य में दलित चेहरा मिला, जिनकी हरियाणा की आबादी में हिस्सेदारी 20 फीसदी है।
बीजेपी की कोशिश है कि ओबीसी-दलित चेहरों की बदौलत जाटों की नाराजग़ी से हो सकने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके।
हरियाणा की 90 सीटों में से 40 सीटों पर जाटों का दबदबा रहता है। कहा जा रहा है कि बीते साल अक्तूबर में जाट ओपी धनखड़ को अध्यक्ष पद से हटाए जाने से नाखुश हैं।
खट्टर और धनखड़ के बीच पार्टी और सरकार में मतभेद थे।
बीजेपी के लोगों की मानें तो खट्टर पीएम मोदी के ख़ास हैं और लोकसभा चुनावों में उन्हें करनाल से टिकट दी जा सकती है। वहीं तंवर को कुरुक्षेत्र से टिकट दी जा सकती है। नायब सैनी कुरुक्षेत्र सीट से सांसद थे।
जाट वोट और खट्टर के इस्तीफे की वजह
हरियाणा की राजनीति जाट और गैर-जाट वोट के इर्द-गिर्द घूमती है।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि सैनी को सीएम बनाकर बीजेपी पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों के वोट हासिल करना चाहती है क्योंकि बीजेपी ब्राह्मण, पंजाबी, बनिया और राजपूत वोटों को लेकर आश्वस्त है।
बीजेपी ने पार्टी सर्वे में ये पाया कि किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के प्रदर्शन के कारण खट्टर के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है।
बीजेपी के लिए हरियाणा में जाट वोट चुनौती की तरह हैं।
2019 लोकसभा चुनावों में राज्य की 10 सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही थी। इन चुनावों में बीजेपी को 58 फ़ीसदी वोट मिले थे और इसमें जाटों ने अहम भूमिका अदा की थी।
2019 लोकसभा चुनाव बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद हुए थे और बीजेपी की जीत में जानकार इस घटना को भी अहम मानते हैं।
वहीं जब विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी का वोट शेयर घटकर 36 फीसदी हो गया था।
बीजेपी हरियाणा में बदलाव करके आगामी चुनावों में ख़ुद को मजबूत करना चाहती है।
दुष्यंत चौटाला बीजेपी के लिए कितने ज़रूरी?
लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले और हरियाणा विधानसभा चुनाव से सात महीने पहले प्रदेश में इस परिवर्तन के कई संदेश हैं।
2019 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी और जेजेपी में हुआ गठबंधन अब भी संदिग्ध बना हुआ है। दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के 10 विधायक हैं और इसी के दम पर वह उपमुख्यमंत्री बने थे।
खट्टर के इस्तीफे के बाद वह भी हरियाणा की सरकार से बाहर हो गए हैं। लेकिन बीजेपी और जेजेपी दोनों की ओर से स्पष्ट तौर पर गठबंधन टूटने पर कुछ नहीं कहा गया।
दोनों तरफ़ के नेता इस पर चुप हैं।
कहा जा रहा है कि हरियाणा बीजेपी में यह मांग ज़ोर पकड़ रही थी कि लोकसभा चुनाव में उसे बिना किसी गठबंधन के अकेले जाना चाहिए।
लेकिन ये स्पष्ट है कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने जेजेपी को छोड़ दिया है।
90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में बीजेपी के 41 विधायक हैं और उसे सात निर्दलीय विधायकों समर्थन मिला है। 48 सदस्यों के साथ बीजेपी को हरियाणा विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिल गया है। ऐसे में बीजेपी को जेजेपी की जरूरत भी नहीं थी।
जेजेपी 2018 में बनी थी जब अजय चौटाला अपने पिता और इंडियन नेशनल लोकदल की सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला से अलग होने का फ़ैसला किया था। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में आईएनएलडी एक सीट ही जीत पाई थी जबकि जेजेपी 10 सीट जीतकर किंगमेकर बन गई थी।
दुष्यंत चौटाला की मुश्किलें
मंगलवार को खट्टर के इस्तीफे और सैनी के सीएम बनते ही दुष्यंत चौटाला ने सोशल मीडिया पर दो पोस्ट लिखी।
दुष्यंत चौटाला ने लिखा, ‘सीमित समय और सीमित संख्या के साथ हमने दिन रात हरियाणा के हितों की रक्षा के लिए लगाए हैं। हमने हरियाणा के हर वर्ग और हर क्षेत्र के काम सरकार में करवाए हैं। हमारे मुश्किल और संघर्ष के दौर में आपने हम पर जो भरोसा लगातार जताया है और जो साथ हमेशा दिया है उसके लिए मैं आपका सदैव आभारी रहूँगा।’
नायब सैनी को बधाई देते हुए दुष्यंत चौटाला ने लिखा, ‘मुझे पूरा विश्वास है कि गरीब, किसान और प्रदेश के विकास की जिन योजनाओं को हमने लागू किया, आप उन्हें आगे बढ़ाते हुए जन-हितैषी सरकार चलाएंगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि जनता की सुनवाई के लिए आपके निवास के द्वार हमेशा खुले रहेंगे।’
चौटाला ने हरियाणा में हुए सियासी फेरबदल के बाद मंगलवार को विधायकों की बैठक बुलाई थी।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस बैठक में पांच विधायक शामिल नहीं हुए। इसके बाद ये कयास लगाए जा रहे हैं कि जेजेपी के अंदर भी टूट हो सकती है।
पार्टी बैठक के बाद जब जेजेपी के हरियाणा प्रमुख निशान सिंह ने बैठक में मौजूद विधायकों की संख्या नहीं बताई और कहा कि बैठक की बातचीत के बारे में बुधवार को हिसार रैली में बताया जाएगा।
जेजेपी के चार विधायक नई सरकार के शपथग्रहण समारोह में भी दिखे थे।
द हिंदू ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि सोमवार को दुष्यंत चौटाला ने अमित शाह से मुलाकात की थी और 2024 चुनावों के लिए दो लोकसभा सीटों की मांग की थी।
मगर 2024 चुनावों में बीजेपी हरियाणा में अकेले मैदान में उतरने का सोच रही है।