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आखिर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने में हीलाहवाली क्यों कर रहा था!
16-Mar-2024 10:14 PM
आखिर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने में हीलाहवाली क्यों कर रहा था!

-डॉ. आर.के. पालीवाल
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भारत सरकार के अधीन ठीक उसकी नाक के नीचे काम करने वाला सार्वजनिक उपक्रम है जिसे देश और देश की सरकार का बैंक नंबर वन भी कहा जाता है। अब यह साबित हो गया है कि सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड की जो जानकारी मात्र चौबीस घंटे में उपलब्ध करा दी आखिर उसे देने में तीस जून तक का लम्बा समय मांगकर बैंक यह सूचना उपलब्ध कराने में जान बूझकर इतनी हीलाहवाली कर रहा था। इसीलिए इस नाटकीय घटनाक्रम पर विपक्षी दल सीधे सीधे मोदी सरकार को कटघरे मे खड़ा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया केंद्र की मोदी सरकार के इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले पर लोकसभा चुनाव तक पर्दा डालने के लिए ऐसी हरकत कर रहा था। यह तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के आला अफसरान या भगवान श्री राम ही जानते हैं कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर किस तरह का दबाव था। 

क्या उसके डायरेक्टर्स अपनी तरफ से ही सरकार को खुश करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे या उन पर ऐसा करने का ऊपर से दबाव था। बैंक ने जिस सूचना को सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद चौबीस घंटे में केंद्रीय सूचना आयोग को सौंप दिया उस पर वह पंद्रह दिन से कुंडली मारे बैठा था और आगे भी तीन महीने कुंडली मारकर बैठना चाहता था। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सार्वजनिक बैंक है इसलिए भारत की जनता के प्रति उसकी जवाबदेही बनती है। जिन परिस्थितियों में इस बैंक की छवि धूमिल हुई है उसके कारणों को बैंक द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर स्पष्ट किया जाना चाहिए। यदि इस पूरे घटनाक्रम में सरकार यह मानती है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर उसका कोई दबाव नहीं तो वित्त मंत्रालय या प्रधानमन्त्री कार्यालय को आगे आकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के निदेशक मंडल पर बैंक की छवि खराब करने के लिए कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। यदि सरकार इस मामले में कोई कड़ा कदम नहीं उठाती तो यही निष्कर्ष निकाला जाएगा कि बैंक सरकार के दबाव में सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह कर रहा था। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को अक्षरस : मानना हम सबकी जिम्मेदारी है।क्योंकि अभी संसद स्थगित है और लोकसभा के आम चुनाव सर पर खड़े हैं इसलिए सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए अन्यथा तमाम विपक्षी दल इस मुद्दे को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाएंगे और स्थिति स्पष्ट नहीं होने की स्थिति में अफवाहों का बाज़ार गर्म होगा जिसकी शुरुआत सोशल मीडिया पर हो चुकी है।

जो सूचना स्टेट बैंक ने केंद्रीय चुनाव आयोग को उपलब्ध कराई है उसे चुनाव आयोग ने तय समय सीमा के अंदर अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इस बात के लिए भी केन्द्रीय चुनाव आयोग की सराहना बनती है कि उसने बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मीडिया के माध्यम से जनता को यह सूचित किया है कि बैंक से प्राप्त इलेक्टोरल बॉन्ड की सूचना जिस फार्म में उपलब्ध कराई गई है वह जस की तस अपलोड कर दी है। इस विज्ञप्ति में चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि चुनाव आयोग चुनावों में हर तरह की पारदर्शिता के प्रति कृत संकल्पित है। बेहतर होगा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भी इसी तरह की विज्ञप्ति जारी करता तो उसकी साख को लगा बट्टा कुछ कम अवश्य होता। अभी भी बैंक की तरफ से यह जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है कि कि विभिन्न कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा खरीदे गए बॉन्ड किन किन पार्टियों को गए हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग को भी सभी राजनितिक दलों को यह घोषणा करने के लिए बाध्य करना चाहिए कि उन्हें किन किन कंपनियों और व्यक्तियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिया है। क्योंकि सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है और उसकी ही केन्द्र में सरकार है। ऐसे में उसकी जिम्मेदारी सर्वाधिक है। जब तक बैंक से पूरी जानकारी सामने नहीं आएगी तब तक केन्द्र सरकार और भाजपा पर विपक्षी दलों के आरोप लगते रहेंगे।

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