विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
हमारी भोगवादी पाश्चात्य जीवन शैली और सरकारों के अंधाधुंध भौतिक विकास का काला चेहरा अब आए दिन और भयावह होता जा रहा है। यह चेहरा कभी हमारे महानगरों के जीवन को कठिनाई में डाल रहा है और कभी गांव देहात की खेती किसानी को मौसम का कहर बनकर बर्बाद कर रहा है।गत वर्ष दिल्ली में जब सर्दी और धुंए ने मिलकर सांस लेने में तकलीफ पैदा कर दी थी तब सर्वोच्च न्यायालय को आगे आकर कहना पड़ा था कि केन्द्र और राज्य की सरकारें इस समस्या पर एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय एक साथ मिलकर काम करें।
दिल्ली की यह हालत तब हुई थी जब एक तरफ वहां उन नरेंद्र मोदी की केन्द्र सरकार थी जिनकी गारंटी के विज्ञापन हम आए दिन अखबारों के पहले पन्ने पर देखते हैं और जो भारत को शीघ्र विश्व गुरु बनाने की गर्जना हर रोज करते हैं। इसी दिल्ली की आम आदमी पार्टी की राज्य सरकार मुफ्त में पानी देने के लिए वाहवाही तो लूटती है लेकिन यमुना जल सफाई और दिल्ली में जल सरंक्षण पर उसने भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया। दिल्ली में यमुना विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में शुमार है।
हमे याद रहना चाहिए कि पिछली गर्मियों में चेन्नई नगर निगम ने किस तरह एक दिन अचानक हाथ खड़े कर दिए थे कि उसके पास केवल कुछ दिन के लिए ही पानी उपलब्ध है। इस साल कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर से कुछ कुछ इसी तरह के गंभीर जल संकट की खबरें आ रही हैं। भू जल स्तर बहुत ज्यादा गिरने से अधिकतर बोरवेल सूख गए।कई कॉलोनी के लोग पानी के टैंकर मंगाने पर मजबूर हैं। टैंकरों के मालिकों ने आपदा में अवसर खोजकर पानी के दाम काफी बढ़ा दिए हैं।कोई भी सरकार, चाहे वह स्थानीय निकाय प्रशासन हो या राज्यों की सरकारें, यहां तक कि केंद्र सरकार भी अपने दम पर जल संकट से निजात नहीं दिला सकती। इसका समाधान केवल और केवल जन जागरूकता और जन सहयोग से ही संभव है। जब भी कोई प्राकृतिक या मानव जनित आपदा आती है सरकारी तंत्र की सजगता की पोल खुल जाती है। जल संकट हमारे समय का बड़ा संकट है जिसके दो प्रमुख आयाम हैं। जल संकट का जो दृश्य हमें सबसे पहले दिखाई देता है वह गर्मी की शुरुआत होते ही सूखती नदियों, झीलों, तालाबों और बॉरवेलों की वजह से पानी की चौतरफा कमी है। जल संकट का दूसरा उतना ही महत्त्वपूर्ण आयाम है शुद्ध पेयजल की कमी। हमें जिस पानी की आपूर्ति की जा रही है वह खेती की जमीन में डाले जाने वाले रासायनिक खादों और कीटनाशकों के जल स्रोतों तक पहुंचने से अत्यंत प्रदूषित हो चुका है। शहरों से निकले गंदे नालों का सीवेज भी इन्हीं जलस्रोतों में मिलकर प्रदूषण में इजाफा कर रहा है। जल और वायु के प्रदूषण से गंभीर बीमारियों में भी विगत दो तीन दशक में तेज वृद्धि हुई है। पंजाब में हरित क्रांति के दौरान पेस्टीसाइड के अंधाधुंध प्रयोग से खाद्य पदार्थों से लेकर जल, वायु और जमीन में इतना प्रदूषण हुआ कि कुछ इलाकों में घर घर कैंसर की दस्तक पड़ गई। सिंचाई के लिए अत्यधिक पानी लेने के कारण भूजल स्तर तेजी से सिकुड़ गया। धीरे धीरे पंजाब सिंड्रोम भी देश भर मे पैर पसार रहा है।
पंजाब का नाम तो पांच जल भरी सदानीरा नदियों के नाम पर पड़ा है इसलिए वहां वैसा जल संकट अभी दूर है जैसा चेन्नई और बैंगलोर एवम देश के पानी की कमी वाले कुछ अन्य क्षेत्रों में है, लेकिन देर सवेर बैंगलोर जैसा जल संकट भी हर जगह दस्तक देने की तैयारी कर रहा है। समझदारी इसी में है कि सरकारों और स्थानीय निकायों के भरोसे न रहकर हम सबको अपने अपने स्तर पर जल संसाधन को बचाने और बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।बोतलबंद पानी का कारोबार हर साल दुत्र गति से बढ़ रहा है। यदि जल संकट का यही हाल रहा तो शुद्ध पानी दूध से महंगा हो जाएगा क्योंकि दूध के बगैर जीवन संभव है लेकिन पानी के बगैर नहीं।