विचार / लेख
जय सुशील
किसी भी विदेशी भाषा मसलन जर्मन, रूसी, स्पैनिश से अंग्रेजी में किए गए अनुवाद से किसी तीसरी भाषा में अनुवाद करना आलस्य का प्रतीक है। यह काम भारत में कम से कम हिंदी और उर्दू में तो होता ही है। संभवत बांग्ला या अन्य भाषाओं में भी होता होगा।
अनुवादक यह नहीं समझते कि एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद होते ही कई चीज़ें छूटती और बदलती हैं लेकिन वो यह सोचे बगैर अंग्रेजी से उठा कर अनुवाद कर देते हैं और वाह-वाही बटोरते रहते हैं।
क्या आपने कभी सुना है कि अंग्रेजी जानने वाले ने किसी तीसरी भाषा से स्पैनिश उपन्यास का अनुवाद किया हो। पश्चिम के देशों में आम तौर पर किसी भाषा से अनुवाद करना हो तो लोग वो भाषा सीखते हैं मसलन डेजी रॉकवेल हिंदी और उर्दू से अनुवाद करती हैं। इसी तरह और भी लोग हैं। एक अनुवादक हैं (जिनका नाम भूल रहा हूं) वो पोलिश और स्पैनिश से अंग्रेजी में अनुवाद करती हैं। अनुवादकों ने पूरा जीवन लगाया है भाषा सीखने में तब अनुवाद करते हैं और इसी कारण अच्छा अनुवाद होता है अंग्रेजी में।
बहुत साल पहले महाश्वेता देवी की एक किताब का अनुवाद हिंदी में पढ़ते हुए बहुत ही खराब लगा। वही किताब बाद में अंग्रेजी में ठीक लगी। मेरा अनुमान है कि हिंदी अनुवादक ने अंग्रेजी अनुवाद से हिंदी में किया था जबकि बांग्ला से हिंदी बोलने समझने वाले बहुत लोग हैं भारत में। मैंने तमिल से अंग्रेजी में हुए अनुवाद का हिंदी अनुवाद भी देखा है और यह आलस्य भरा रास्ता है।
हिंदी भाषी लोगों को तो चाहिए कि वो अंग्रेजी के अलावा एक और भाषा जानें और उससे अनुवाद करें। पूरी दुनिया में अंग्रेजी की द्धद्गद्दद्गद्वशठ्ठ4 को चुनौती दी जा रही है लेकिन ये चुनौती दूसरी भाषाएं सीखकर ही दी जा सकती है। हवा हवाई नहीं होता है काम।