विचार / लेख

बस रुकवाने के लिए कोडवर्ड...
21-Mar-2024 4:29 PM
बस रुकवाने के लिए कोडवर्ड...

गोकुल सोनी

साथियों, प्रकृति ने हमें बोलने की क्षमता प्रदान कर हमारे साथ बड़ा उपकार किया है। हम कभी भी, कहीं भी और किसी भी परिस्थिति में बोलकर यानी अपनी बात रखकर अपना काम चला सकते हैं। लेकिन हमेशा यह काम में नहीं आता। कभी-कभी मौन रहकर या फिर सांकेतिक भाषा में अपनी भावना व्यक्त कर काम चलाना पड़ता है। सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल खास मौके पर किसी संस्था विशेष द्वारा अपना काम निकालने के लिए किया जाता है। एक सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल मैंने भी कभी किया था जो एक खास वर्ग के लोगों के लिए बनाया गया था।

मेरा पैतृक गांव मचान्दूर रायपुर-जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर मुख्य सडक़ से 2 किलोमीटर अंदर था। था इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि गंगरेल बांध के डुबान क्षेत्र में आने के बाद अब हमारा गांव सडक़ किनारे बस गया है। उस समय गांव के लोगों को जब कभी कांकेर-जगदलपुर, सुकमा-कोंटा, बारसूर-बैलाडीला या धमतरी-रायपुर जाना होता था तो बस पकडऩे के लिए गांव से पैदल मुख्य सडक़ तक आना पड़ता था। उस समय निजी कंपनी की बसें नहीं चलती थीं। सिर्फ मध्यप्रदेश सडक़ राज्य परिवहन निगम की बसें चलती थीं। अलबत्ता धमतरी-चारामा-कांकेर के बीच लोकल सवारियों के लिए जीप-टैक्सी भी बहुत कम संख्या में चला करती थीं।

खैर, सडक़ पर आने के बाद राज्य परिवहन की बस को हाथ दिखाकर रोकना पड़ता था। हाथ दिखाने पर बस कभी रुकती थी तो कभी नहीं रुकती थी। लेकिन मेरे पिताजी के साथ ऐसा नहीं था। वे जब भी किसी बस को हाथ दिखाते थे तो बस जरूर रुक जाती थी। गांव वाले इस बात को समझ नहीं पाते थे कि मानसिंह यानी मेरे पिता के हाथ दिखाने से बस क्यों रुक जाती है?

एक बार मेरी मां को रायपुर जाना था। मैं भी उनके साथ था। मैं बहुत छोटा था। मां बस को हाथ दिखाती थी लेकिन कोई बस रुकती ही नहीं थी। मुझे लगा कि अब मुझे कुछ करना चाहिए। मैंने आगे बढक़र एक बस को हाथ दिखाया और बस रुक गई। हम बस में बैठ गए। बस ड्राइवर ने मुझे अपने पास बुलाया और बोनट पर प्यार से बिठा दिया। बस में बोनट उसे कहते हैं जहां इंजन होता है जो एक पेटी जैसे लोहे की चादर से ढंका होता है। ड्राइवर ने मुझसे पूछा कि तुम्हें बस रोकने की यह तकनीक किसने बताई? मैंने बताया कि अपने पिताजी से सीखा हूं। ड्राइवर हंसे और बोले कि अब किसी को मत बताना।

दरअसल मेरे पिताजी सेना की सेवा से आने के बाद कुछ वर्षों तक राज्य परिवहन की बस चलाया करते थे। उन दिनों बस चालक कुछ कोडवर्ड का उपयोग किया करते थे। जैसे कहीं टिकट चेकिंग हो रही है तो ड्राइवर अपनी बस की लाइट दिन में भी जला दिया करते थे। विपरीत दिशा से आ रही बस का ड्राइवर-कंडक्टर उस लाइट को देखकर समझ जाते थे कि आगे चेकिंग हो रही है। कंडक्टर अपना हिसाब ठीक कर लेता था और पकड़े जाने से बच जाता था। रात को ठीक इसके विपरीत लाइट बुझा दिया करते थे। इसी तरह किसी बस को रोकने के लिए स्टाफ द्वारा एक कोड का उपयोग किया जाता था। सडक़ पर खड़ा स्टाफ अपने हाथ में कोई थैला, गमछा या अन्य कपड़ा लेकर हवा में लहराता था। ड्राइवर समझ जाता था यह हमारा स्टाफ है और बस रोक देता था। पिताजी भी बस रोकने के लिए हाथ में थैला या कपड़ा लेकर हवा में लहरा दिया करते थे। उस दिन मां के साथ मैं भी हाथ में थैला लेकर हवा में लहराया था और बस रुक गई थी।

मैंने ड्राइवर से किया अपना वादा निभाया और कभी भी इस सांकेतिक भाषा के बारे में किसी अन्य को नहीं बताया। आज जब परिवहन निगम की बसें बंद हो गई हैं तब इसका खुलासा कर रहा हूं।

तो कैसी लगी मेरी टेक्निक, आप जरूर बताइएगा।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news