विचार / लेख

जीवन का लक्ष्य शांति और खुशी है
21-Mar-2024 4:31 PM
जीवन का लक्ष्य शांति और खुशी है

पल्लवी त्रिवेदी

जब मैं 30 बरस की थी तब सारा संसार मिलकर मेरा ब्याह कराने पर तुला था ।

जब मैं मना करती तो अंत में हरेक के पास अंत में एक अकाट्य ( उनके हिसाब से) तर्क होता कि अभी पता नहीं चलेगा, 40 के बाद साथी की जरूरत महसूस होती है ,जब सारे दोस्त अपने जीवन में व्यस्त हो जाएंगे, तब अकेलापन काटने को दौड़ेगा। फिर बुढ़ापे में शरीर साथ नहीं देगा तो देखभाल करने के लिए पति और बच्चों की जरूरत होगी...।

मैं हमेशा इस बात की शुक्रगुजार रही हूँ कि हमको दो कान मिले हैं। एक से सुनकर दूसरे से निकालने के लिए। सो दोनों कानों का भरपूर इस्तेमाल करते हुए ‘एकला चलो रे’ की धुन पर हम आगे बढ़ते गए।

और अब जबकि मैं 44 साल की हो गई हूं, उन सभी अकाट्य तर्कों की चटनी बनाते हुए कहना चाहती हूं कि-

1- शादी तब करो जब किसी से मिलकर महसूस हो कि इसके साथ एक घर में रहे बिना जीवन जीना असंभव है और शादी ही एकमात्र तरीका है ।

2- शादी की कोई उम्र नहीं होती, अगर आपको शादी से बच्चे पैदा न करने हों। 80 की उम्र में भी किसी के साथ रहने के लिए शादी की जरूरत महसूस होती हो तो जरूर शादी करो।

3- किसी से अपनी देखभाल कराने के लिए शादी मत करो। उल्टा भी हो सकता है। इसलिए अपनी देखभाल आप करने लायक स्वस्थ रहो। अगर पैसा होगा तो नर्स भी लग जायेगी। और पैसा न होगा तो आपने जो रिश्ते कमाए होंगे वे काम आएंगे। शादी बुढ़ापे में देखभाल की गारंटी नहीं है।

4- शादी न करना प्रेम रहित जीवन जीना नहीं है जैसा लोग अक्सर सिंगल लोगों के बारे में धारणा बना लेते हैं।

5- अगर आपको अकेले रहने में आनंद आता है और खुद का साथ सबसे अच्छा लगता है तो शादी आपके लिए नहीं है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी, अकेले रहना और सुखद लगने लगेगा।

तो चालीस के बाद वाली परीक्षा को अव्वल दर्जे से पास करने के बाद अब बुढ़ापे वाली परीक्षा की मार्कशीट भी अवश्य शेयर की जाएगी।

चलते-चलते अंतिम बात यह कि जीवन का लक्ष्य शांति और खुशी है। शादी करना या न करना इस लक्ष्य प्राप्ति का एक मार्ग मात्र है।

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