विचार / लेख
आभा शुक्ला
मैं खाने में मांस मछली नहीं लेती, और ये मेरा धार्मिक या जातीय मसला नहीं है। ये सिर्फ मेरी फूड हैबिट है। मंै नॉनवेज नहीं खाती क्योंकि मैंने कभी खाया नहीं। मेरे घर में कभी बना नहीं। बाकी ऐसा नहीं है कि मेरे खानदान और रिश्तेदारो मे भी कोई नहीं खाता। लगभग 60 फीसदी लोग खाते हैं। गांव परिवार में जो पुराने और बुजुर्ग आज भी गांव में हैं वो नहीं खाते, जो नई जनरेशन बाहर निकल गई है वो दबा कर खाती है।
ऐसे में अगर जोमैटो की प्योर वेजिटेरियन स्कीम की बात करूँ तो समाज में फैलती जा रही प्योर बेवकूफी की एक और मिसाल होने के साथ ही देश में बहुसंख्यक नॉन वेजिटेरियंस के प्रति नफरत बढ़ाने की कोशिश भी है।बाकी प्योर वेज कोई नहीं होता ये आप भी समझते हैं।कौन ऐसा है जिसने कभी दही नहीं खाया।दही में लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणु पाया जाता है। जबकि दही तो लोग व्रत में भी खा लेते हैं। दूध में भी यही जीवाणु पाया जाता है। जब मानव की आंत में पाया जाने वाला जीवाणु एशररीशिया कोलाई है तो कोई प्योर वेज है तो कैसे है।
प्योर वेज का कांसेप्ट सही है ही नहीं। मैंने कभी मांस मछली नहीं खाया था पर अभी जब बीमार हुई तो फिश ऑइल यानी मछली के तेल कैप्सूल खूब दिए मुझे डॉक्टर ने। वो इलाज का हिस्सा था। अब अगर मछली के तेल कैप्सूल डकार कर कहूँ कि मैं प्योर वेज हूँ तो ये कितना झूठ होगा। और इलाज के दौरान ऐसा बहुत लोगों के साथ होता है पर फिर भी वो प्योर वेज पता नहीं कैसे कहते रहते हैं अपने आपको।
और फिर अगर आप साइंस में घुस जाईये तो साइंस तो पेड़ पौधो में भी जीवन मानती है। साइंस तो पानी में भी कई तरह के बैक्टीरिया होने की पुष्टि करती है। इसका है कोई जवाब क्या जोमैटो के पास।
जोमैटो वालों पर तो कायदे से मुकदमा होना चाहिए। क्या नाटक पसार कर रखा है प्योर वेज का। अगर लॉजिकली साइंस में घुस जायेंगे तो कैसे प्रूव करेंगे ये प्योर वेज का कांसेप्ट।
आपका मांसाहार छोड़ देने का फैसला पर्यावरण हितैषी हो सकता है, जैसा कि आज कल की नई रिसर्च बताती हैं। लेकिन अगर ऐसा कोई आदमी आपको कभी मिले जो साइंस के सारे कांसेप्ट को मानते हुए भी खुद को प्योर वेज बता सके जो उससे मेरी भी बात कराइयेगा एक बार।