विचार / लेख
कोर्ट के फैसले के बाद बरी होने वाले मोहाद गांव के लोग
शुरैह नियाजी
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के मोहाद गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवारों के लोग बरसों बाद सुकून से रमजान मना रहे हैं।
इन्हीं में एक इमाम तड़वी भी हैं। चार बच्चों के पिता इमाम अपनी बच्ची को एक सुबह स्कूल छोडऩे जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें रोक लिया था।
ये घटना जून, 2017 की है, जब इस गांव से हजारों किलोमीटर दूर लंदन में भारत और पाकिस्तान के बीच चैंपियंस ट्राफी का मैच खेला गया था और भारत वो मैच हार गया था।
लेकिन इस मैच से बेखबर 17 युवक और 2 नाबालिगों के लिए ये मैच उनकी जि़दगी में ऐसा पल बन गया जिसे वो याद करके सिहर उठते हैं।
30 वर्षीय इमाम ने बताया कि स्कूल के रास्ते में पुलिस ने उनके साथ बदतमीज़ी की और उनकी बच्ची को धक्का मार दिया गया जिसकी वजह से उसे नाक में चोट आई। वे कहते हैं कि उस दिन उनकी बेटी को लेकर कोई दूसरा व्यक्ति घर गया जबकि उन्हें पुलिस अपने साथ लेकर चली गई।
इमाम की आपबीती
इमाम कहते हैं, ‘मुझे क्रिकेट के बारे में कुछ भी नही मालूम है। लेकिन मैं उसकी वजह से जितना भुगता उसे में बयान नही कर सकता।’
उन्होंने बताया कि पुलिस घर वालों को कई दिन तक परेशान करती रही जिसकी वजह से वो लोग घर छोड़ कर भाग गए।
इमाम दावा करते हैं कि उनके परिजनों को गालियां दी जाती थी और बेइज्जत किया जाता था जिसकी वजह से परिवार ने कई दिन दूसरों के खेतों में सोकर गुजारे।
इमाम अब खेतों में काम करने जा रहे हैं और उन्हें रोज के ढाई सौ से लेकर तीन सौ रुपये तक मजदूरी मिलती है और केस से बरी होने के बाद उनका यह पहला रमज़ान है जब उन्हें अपने मुक़दमे के बारे में नही सोचना पड़ रहा है। उनका कहना है कि उन्हें आज भी नही पता है कि क्रिकेट में कौन-कौन से खिलाड़ी हैं लेकिन उसके बावजूद भी उन्हें उसके लिए परेशान होना पड़ा।
इमरान शाह की कहानी
इमाम तड़वी की तरह ही 32 वर्षीय इमरान शाह को भी पुलिस ने उस दिन गिरफ़्तार किया था। उस समय वो ट्रक में मक्का भर रहे थे। उन्हें पता ही नही था कि उन्हें किस वजह से गिरफ्तार किया जा रहा है।
इमरान ने बीबीसी को बताया, ‘उस समय को हम याद नही करना चाहते हैं। उस समय मेरे साथ पूरा परिवार इतना परेशान रहा कि बता नही सकते हैं। हमें तो गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन परिवार को भी भागना पड़ा था क्योंकि पुलिस कभी भी घर पर आ जाती थी और परिवार वालों से बदतमीजी करती था। घर वाले छुपकर जंगलों में सोते थे।’
इमरान के परिवार में उस समय उनकी मां, पिता, पत्नी और तीन बच्चें थे। इमरान ने इस मामले की वजह से डेढ़ लाख रुपये का उधार लिया है जिसका ब्याज ही वो किसी तरह से चुके पा रहे हैं।
उनका कहना है कि एक साल तक उन्हें हर हफ्ते थाने में जाना होता था जो उनके गांव से 12 किलोमीटर दूर था। इस दौरान वो मजदूरी भी नहीं कर पा रहे थे इसलिए परिवार चलाने के लिए उधारी लेनी पड़ी।
इमरान ने बताया, ‘जितना हमने उस दौरान भोगा उतना ही हमारे परिवार को भी भुगतना पड़ा। पुलिस वाले कभी भी घर पर आ जाते थे और परिवार वालों को गाली देते थे और बदतमीजी करते थे।’
क्या है मामला
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के मोहाद गांव में रहने वाले 17 युवक और 2 नाबालिगों पर चैंपियंस ट्रॉफी के उस मैच के बाद ये आरोप लगा था कि वे पाकिस्तान की जीत का जश्न मना रहे थे।
उन पर पाकिस्तान की जीत को लेकर खुशियां मनाने, पटाखे फोडऩे और मिठाइयां बांटने का आरोप लगाया गया था।
लेकिन कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में इन सब को सभी आरोपों से बरी कर दिया और पाया कि पुलिस ने इन पर फर्जी मामला दर्ज किया और गवाहों पर गलत बयान देने के लिये दबाव बनाया।
इस मामले में परेशान होकर एक अभियुक्त ने 2019 में आत्महत्या भी कर ली थी।
पहले इन लोगों पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया लेकिन बाद में उसे पुलिस ने बदलकर आईपीसी की धारा 153ए के तहत दर्ज किया जिसमें उन पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए गए।
गवाह का अपने बयान से पलटना
इस मामले में पुलिस ने जिन्हें गवाह बनाया था उनका भी कहना था कि इस तरह का कोई मामला हुआ ही नही है।
इस गांव में रहने वाले तड़वी मुसलमान हैं और ज्यादातर लोग मजदूरी करते हैं। आमतौर पर यह लोग खेतों पर काम करके अपना गुजर-बसर करते हैं।
इनका केस लड़ रहे वकील शोएब अहमद ने बीबीसी को बताया, ‘इस मामले में गवाह ही इस बात को नही मान रहे थे कि गांव में इस तरह की कोई चीज हुई है। गवाह अपनी बात पर अड़े रहे। इसके बाद कोर्ट ने फैसला हमारे हक में सुना दिया। ये लोग काफी गरीब हैं और मुश्किल से अपना गुजर बसर कर पाते हैं। खुशी मनाने के लिए न तो इनके पास पैसे हैं और न ही इन्हें क्रिकेट का कोई ज्ञान है।’
हालांकि कोर्ट ने इस मामले में पुलिस वालों के खिलाफ किसी किस्म की कारवाई का कोई आदेश नहीं दिया है जिनकी वजह से इन लोगों को बरसों परेशानी का सामना करना पड़ा।
शोएब अहमद ने बताया कि इन लोगों की पहली कोशिश यही थी कि वो किसी भी तरह से इस मामले से बरी हो जाएं। ये लोग इतने गरीब हैं कि पुलिस से वे लडऩा नहीं चाहते हैं।
इस मामलें में दो नाबालिगों को भी अभियुक्त बनाया गया था जिन्हें किशोर अदालत ने जून, 2022 में बरी कर दिया था।
हालांकि उसके बाद उन दोनों की जिंदगी कभी भी पटरी पर नही लौट पाई और दोनों ही कम उम्र में काम पर लग गए।
इस मामले में एक रुबाब नवाब ने फरवरी, 2019 में आत्महत्या करके अपना जीवन समाप्त कर लिया।
उनके परिवार के मुताबिक, उन पर लगे आरोप और रोज-रोज की बेइज्ज्जती की वजह से उन्होंने ऐसा किया।
नए सिरे से जिंदगी
बाकी बचे लोग भी अब अपनी जिंदगी को नये सिरे से आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं और मजदूरी कर रहे हैं। लेकिन बरसों के मिले जख्म अब भी उन्हें बैचेन करते रहते हैं।
इस मामले में एक मुख्य गवाह सुभाष कोली ने घटना के कुछ दिनों बाद ही मीडिया के सामने आकर कह दिया था कि इस तरह का कोई मामला नही हुआ है और पुलिस ने उन्हीं के मोबाइल फोन से डायल 100 नंबर पर कॉल करके ये मामला दर्ज किया था।
जबकि कोली उस समय अपने पड़ोसी अनीस मंसूरी को बचाने के लिए गए थे जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। कोली अब दुनिया में नही हैं। कुछ महीने पहले उनकी मौत कैंसर से हो गई।
इस पूरे मामले में पुलिस के अधिकारी अब बात नही करना चाहते हैं। इस मामले में भोपाल में अधिकारियों से संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने जवाब नही दिया।(bbc.com/hindi)