विचार / लेख
- प्रियदर्शन
हिंदी के साथ सबसे ज़्यादा धोखा किसने किया है?
1 हिंदी के लेखकों-प्राध्यापकों ने, जिन्होंने जानबूझकर या नासमझी में ऐसी हिंदी विकसित की जो आमजन की भाषा नहीं थी।
2 हिंदी के बुद्धिजीवियों ने, जिन्होंने अरसे तक इस भाषा में किसी क्रांतिकारी विचार को लगातार हतोत्साहित किया।
3 मध्यवर्गीय समाज ने, जिसने अपने बच्चों को हिंदी में पढ़ाना बंद कर दिया और वह जड़ ही सुखा दी जिस पर हिंदी का वृक्ष बढ़ता।
4 उन हिंदी प्रेमियों ने जिन्होंने बाक़ी भारतीय भाषाओं के साथ लगभग विद्वेष भरा रिश्ता रखा। बांग्ला, मराठी, तमिल, तेलुगू सीखने से परहेज किया।
5 संस्कृत के उन पुजारियों ने, जो बताते रहे कि हिंदी तो संस्कृत की बेटी है और उसका रिश्ता स्थानीय बोलियों से काट दिया।
6 संविधान-निर्माताओं ने, जिन्होंने हिंदुस्तानी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया। (क्या ही अच्छा होता कि हम एक ऐसी भाषा के लेखक-पाठक होते जिसकी दो-दो लिपियां संभव हो सकती थीं।)
7 अंग्रेजी के आतंक के मारे उन लोगों ने, जो मानते रहे कि सिर्फ अंग्रेजी में ही ज्ञान-विज्ञान और विशेषज्ञता संभव है, जिनकी वजह से अंग्रेजी ऐसी अपरिहार्य हो गई कि सभी भारतीय भाषाओं की मालकिन बन गई है।
8 हिंदी के संपादकों ने। ज़्यादातर खऱाब लेखक रहे और खऱाब लेखन को प्रोत्साहित करते रहे। वही लोग बाद में पुरस्कर्ता भी हुए और खऱाब परंपरा को पुरस्कृत करते रहे।
9 हिंदी के पत्रकारों ने, जिन्होंने एक तेजस्वी परंपरा को कीचड़-कीचड़ कर दिया। प्रतिरोध की भाषा भूल समर्पण के खेल में लग गए।
10 सार्वजनिक संस्थानों में बैठे हिंदी अफसरों ने, जो अबूझ कंकडऩुमा अनुवाद करते-करवाते हुए हिंदी को बदनाम करते रहे, अपने दफ्तरों में हिंदी लागू नहीं करवा पाए और खऱाब पत्रिकाएं निकालते रहे।