विचार / लेख
- अपूर्व गर्ग
टीवी घर -घर आया और धीरे -धीरे पत्र -पत्रिकाओं को ही नहीं पुस्तकें भी निगल गया । टीवी ने ये तय करना शुरू कर दिया लोग क्या खाएं, पहनें और कैसा जीवन जीयें ।
दिमाग अखरोट की गिरी सा दीखता है और इस अखरोट की दिमागी गिरी का आवरण बन गया टीवी ।
इसी टीवी के तार सत्ता के एंटीने से जुड़ गए और बरसाने लगीं प्रायोजित मंशाएं । भाषा बदल गई, तेवर बदल गए और सूख गए समाचार ।
इसका असर पूरे मीडिया पर आया और मीडिया जगत बन गया कठपुतली मीडिया ।
इस ‘डिहाइड्रेटेड’ मीडिया में खबर की एक बूँद भी न देखकर लोग सोशल मीडिया की ओर विमुख हो चुके और खबर पाने की प्यास वो ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर’ से लगाए हुए हैं ।
‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर’ को लोगों ने बेतहाशा समर्थन दिया , समय दिया , पैसा दिया, विश्वास दिया।
इसमें कोई दो राय नहीं कुछ पत्रकार और बुद्धिजीवी जनता के विश्वास की कसौटी पर खरे उतरे हैं और उनके पास विजन है,भाषा है, ज्ञान है, संस्कार है पर इनसे कहीं दुगनी-चौगुनी मात्रा में बहुत से नौजवान ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स’ उभरे हैं जो चालू भाषा में।
उत्तेजक पोस्ट निर्भीकता से डालकर सत्ता को चुनौती देते हैं। ये ऐसे नौजवान हैं जो शुरू -शुरू में हर उन खबरों पर बात करते हैं जो दबाई और छिपाई जाती हैं ।
जाहिर है इन युवा ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स’ की ओर उनकी ख़बरें ब्रेक करने की कला को देख लोग भागते हैं और एक दिन उन्हें लगता है ये जो कह रहे वही सही। लोग इन्हें कई मिलियन सब्सक्राइबर का बादशाह बनाते हैं इनके सोशल मीडिया के सभी माध्यमों फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम में फॉलो करते हैं। कभी गौर करिये ज़्यादातर इन ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स’ के पास न सोच है न समझ न विचार न विचारधारा। भाषा की तमीज जानते नहीं बस एक के बाद एक उकसावे-उत्तेजक पोस्टों के गोले दागते हैं और उस ताली पीटते हैं लाखों लोग ।
ताली पीटने वाले ऐसे लोग हैं जिनका न किसी पत्र से कोई रिश्ता रहता है न किताबों से, दरअसल, ये लोग उस धरती पर खड़े हैं जो कभी पत्रकारिता और साहित्य के शब्दों से हरी-भरी थी और अब बंजर हो चुकी। अच्छे और बुरे का कोई ज्ञान नहीं, समझ नहीं। फिर भी जिन्हें अगर ये लग रहा है कि सोशल मीडिया पत्रकारिता का विकल्प बन चुका तो बहुत बड़े मुगालते में हैं। सनसनी फैलना खबरें पढ़ाना नहीं होता।
गौर से देखिये, ज़्यादातर इन ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स’ ने बची-खुची भाषाई तमीज छीन ली है, पाठकों को तमाशाई दर्शकों में बदल दिया, गंभीरता-चिंतन गायब।
पहले ही हिंसक हो चुकी आवारा और तमाशबीन भीड़ को ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर कैसे मुर्ख, जाहिल और भाषाई असभ्य बना रहे हैं ये चंद ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स’ इस पर पहल करिये।
चुनाव बीत जायेगा पर आवारा और असभ्य बनाई जा रही भीड़ का खतरा बना रहेगा ।