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85 फीसदी हिंदू आबादी वाला नेपाल भारत से इतना दूर क्यों होता जा रहा है? : अभय शर्मा
30-Jun-2020 7:38 PM
85 फीसदी हिंदू आबादी वाला नेपाल भारत से इतना दूर क्यों होता जा रहा है? :  अभय शर्मा

दुनिया भर में हिंदू बहुल आबादी वाले दो ही देश हैं, एक भारत और दूसरा नेपाल। भारत की कुल जनसंख्या में हिंदू आबादी करीब 80 फीसदी है, जबकि नेपाल में यह आंकड़ा 85 फीसदी है। वर्षों से इसे दोनों देशों के जुड़ाव की एक बड़ी वजह माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से भारत और नेपाल के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं।

फिलहाल दोनों देशों के बीच तनाव की वजह नेपाल का नया नक्शा बना है जिसे भारत के कड़े विरोध के बाद भी जारी कर दिया गया। इस नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है, जबकि भारत इन्हें अपना इलाका मानता है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस समय भारत के लिए बेहद कठोर शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। बीते हफ्ते उन्होंने भारत पर नेपाल की जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगाया।

ओली ने कहा, ‘लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी विवादित भूमि हैं। कालापानी में भारतीय सेना रखकर हमसे हमारी जमीन छीनी गई है। जब तक वहां भारतीय सेना की मौजूदगी नहीं थी, तब तक वह जमीन हमारे पास ही थी। सेना रखने के कारण हम उधर नहीं जा सकते हैं। एक प्रकार से कहा जाए तो यह कब्जा है।।। हम कूटनीतिक संवाद के जरिए समाधान चाहते हैं और समाधान तब होगा जब हमें हमारी जमीन वापस मिलेगी।’ ओली ने भारत पर फर्जी सीमा बनाने का आरोप भी लगाया है।

भारत और नेपाल के बीच बीते महीने यह विवाद तब शुरू हुआ जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को धारचुला से जोडऩे वाली 80 किलोमीटर लंबी सडक़ का उद्घाटन किया। नेपाल ने इस सडक़ के उद्घाटन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया कि यह सडक़ नेपाली क्षेत्र से होकर गुजरती है। भारत ने नेपाल के दावों को खारिज करते हुए दोहराया कि यह सडक़ पूरी तरह से उसके भूभाग में स्थित है। इस घटनाक्रम से कुछ महीने पहले ही भारत ने अपना एक नया नक्शा जारी किया था जिसमें उसने कालापानी क्षेत्र को अपना हिस्सा बताया था। नेपाल सरकार भारत के इस फैसले का भी विरोध कर रही है।

दोनों देशों के बीच तनाव का परिणाम सीमा पर भी दिखा। एक महीने के अंदर भारत और नेपाल की सीमा पर दो बार गोली चली। बिहार से मिलती नेपाल की सीमा पर नेपाल पुलिस की फायरिंग में एक भारतीय नागरिक की मौत हो गयी और दो अन्य घायल हुए। स्थानीय लोगों के मुताबिक नेपाल पुलिस ने यह फायरिंग तब की जब ये लोग सीमा पर स्थित अपने खेतों में काम करने जा रहे थे। हालांकि, नेपाल पुलिस ने मारे गए व्यक्ति और घायलों को तस्कर बताया। इससे पहले बीते महीने भी बिहार-नेपाल सीमा पर इस तरह की घटना हुई थी। तब भी भारतीय किसानों को रोकने के लिए नेपाली पुलिस ने हवाई फायरिंग की थी। आज स्थिति यह है कि सीमा के नजदीक रहने वाले भारतीयों का नेपाल में अपने रिश्तेदारों से मिलना मुश्किल हो गया है क्योंकि नेपाल पुलिस अब उन्हें सीमा पार नहीं करने देती है।

नेपाल की सरकार इस समय भारत से इस कदर नाराज है कि वह अपने नागरिकता कानून में भी एक बड़ा बदलाव करने जा रही है। 21 जीन को नेपाल की संसद में नागरिकता संशोधन बिल पेश किया गया। इस कानून के पास होने के बाद नेपाल में विवाह करने वाली दूसरे देश की महिलाओं को नागरिकता के लिए सात साल तक इंतजार करना पड़ेगा। वैसे तो यह कानून सभी देशों पर लागू होगा, लेकिन जानकारों का मानना है कि इसे भारत की वजह से ही लाया गया है क्योंकि नेपाल के मधेसी समुदाय और भारत में सीमा के नजदीक रहने वाले लोगों में एक-दूसरे के यहां शादी करना आम बात है। भारत और नेपाल के बीच का रिश्ता भी बेटी और रोटी का माना जाता है।

साल 2015 में रिश्तों में कड़वाहट शुरू हुई

भले ही भारत-नेपाल के बीच इस समय तनाव अपने चरम पर हो, लेकिन दोनों देशों के बीच रिश्तों में कड़वाहट करीब पांच साल पहले आना शुरू हुई थी। तब नेपाल में तराई के इलाकों में रहने वाले मधेसी और थारू समुदायों ने नए संविधान में बेहतर प्रतिनिधित्व न मिलने पर अपनी सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ दिया था। उस समय मोदी सरकार ने नेपाली संविधान में (भारत के करीबी माने जाने वाले) मधेसियों को उचित स्थान दिए जाने की वकालत की थी और इस मामले को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भी उठाया था। तब मधेसियों ने भारत की सीमा से नेपाल में सामान की आवाजाही पूरी तरह बंद कर दी थी। हर जरूरी सामान के लिए केवल भारत पर निर्भर नेपाल में इस आर्थिक नाकेबंदी के चलते डीजल, पेट्रोल, गैस और खाने-पीने के सामान की काफी किल्ल्त हो गई थी।

नेपाल सरकार का कहना था कि जिन सीमाई इलाकों में मधेसियों ने नाकाबंदी नहीं की है, वहां से भी भारत सरकार सामान नहीं भेज रही है। ऐसे में नेपाल सरकार और वहां के अधिकांश लोग यह मानने लगे थे कि मधेसियों की नाकाबंदी के पीछे भारत की नरेंद्र मोदी सरकार का ही हाथ है। उस समय नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने देश के बिगड़े हालात के लिए कई बार सीधे तौर पर भारत को जिम्मेदार भी ठहराया था। उन्होंने एक बयान में कहा था कि नेपाल को एक विकसित और खुशहाल हिमालयी राष्ट्र बनाने को लेकर उन्होंने काफी सपने देखे थे, लेकिन भारत की नाकाबंदी ने इन सपनों को तबाह कर दिया। उन्होंने भारत द्वारा इस मसले को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उठाने पर भी नाराजगी जताई थी।

चीन ने तुरंत मौके का फायदा उठाया

2015 में बनी इन परिस्थितियों से उबरने के लिए नेपाल को चीन के पास जाना पड़ा। चीन ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया और नेपाल की खुलकर मदद की। उसने अपनी सीमा को नेपाल में सामान की आवाजाही के लिए पूरी तरह खोल दिया। उसने नेपाल को कई महीनों तक तेल, गैस और खाने-पीने की चीजें मुफ्त में या बेहद रियायती दामों पर दीं। इसके चलते देखते ही देखते चीन और नेपाल के संबंध काफी ज्यादा मजबूत हो गए। लेकिन, उस समय चीन की तरफ झुकते जा रहे केपी शर्मा ओली को उनके गठबंधन में शामिल पुष्प कमल दहल (प्रचंड) ने तगड़ा झटका दिया

और सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। जुलाई 2016 में ओली की सरकार गिर गयी और इसके बाद प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) ने नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार का गठन किया। इस सरकार में एक समझौते के तहत पहले प्रचंड प्रधानमंत्री बने और फिर नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ने यह पद संभाला।

इसके करीब साल भर बाद नवंबर-दिसंबर 2017 में नेपाल में राष्ट्रीय चुनाव हुआ। कुछ महीने पहले ही अलग हो चुके केपी शर्मा ओली और प्रचंड इस चुनाव में फिर एक साथ आ गए और अपनी पार्टियों का विलय कर एक मोर्चे (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी) का गठन किया। नेपाली मीडिया के मुताबिक चीन ने केपी ओली और पुष्प कमल दहल (प्रचंड) की वामपंथी पार्टियों के बीच गठबंधन करवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।

नेपाल के इस चुनाव में जहां वामपंथी केपी ओली को चीन का उम्मीदवार माना जा रहा था, वहीं नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को भारत का। चुनाव में ओली और प्रचंड के मोर्चे की बड़ी जीत हुई और केपी शर्मा ओली देश के प्रधानमंत्री बने। यह भारत के लिए बड़े झटके जैसा था क्योंकि ओली चीन के बड़े समर्थक थे और उनकी जीत एक तरह से नेपाल के मामले में भारत के ऊपर चीन की जीत थी।

जैसी आशंका जताई जा रही थी केपी शर्मा ओली ने दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने रास्ते चीन की ओर मोड़ दिए और उससे कई बड़े-बड़े समझौते किये। प्रधानमंत्री बनने के तीन महीने बाद उन्होंने चीन की पांच दिवसीय यात्रा की। इस दौरान चीन के साथ 14 समझौते किये गये। 15 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के इन समझौतों में ऊर्जा, पर्यटन, जल विद्युत, सीमेंट फैक्ट्री, व्यापार और कृषि जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा इस दौरान दोनों देश उस रेलवे लाइन को बिछाने पर भी सहमत हो गए, जो तिब्बत के ग्योरोंग पोर्ट को नेपाल के काठमांडू से जोड़ेगी।

ओली की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच नेपाल में विमानन, बंदरगाहों तक राजमार्ग, दूरसंचार क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव, नेपाल में तीन बड़े आर्थिक गलियारों के विकास में तेजी लाने, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासतों और स्कूलों के पुनर्निर्माण में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी। दोनों के बीच एक समझौता सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर भी हुआ जिसके तहत दोनों देशों की खुफिया और पुलिस सेवाएं मिलकर काम करेंगी। नेपाल के पोखरा क्षेत्र में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के तहत एयरपोर्ट का निर्माण करने को लेकर भी एक समझौता हुआ जिस पर इस वक्त काफी तेजी से काम चल रहा है। चीन ने बीते साल तिब्बत से नेपाल को जोडऩे वाले हाइवे को यातायात और व्यापार के लिए खोल दिया।

इसके अलावा चीन ने नेपाल में भारी भरकम निवेश भी किया है। वह पिछले चार सालों से लगातार नेपाल में सबसे ज्यादा निवेश करने वाला देश बना हुआ है। हाल में नेपाल के उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में (नेपाल में वित्तीय वर्ष जुलाई से शुरु होता है) नेपाल में चीन का प्रत्यक्ष निवेश करीब नौ करोड़ डॉलर था जबकि, इसी समय में भारत का करीब दो करोड़ डॉलर। इस वित्त वर्ष में नेपाल में हुए कुल विदेशी निवेश का 93 फीसदी हिस्सा चीन से आया है। पिछले कुछ सालों से चीन दो से चार अरब डॉलर की सालाना वित्तीय मदद भी नेपाल को देता आ रहा है। बीते साल अक्टूबर में 23 साल बाद चीन का कोई राष्ट्रपति नेपाल पहुंचा था। इस यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिंनपिंग ने नेपाल को 56 अरब नेपाली रुपए की मदद देने की घोषणा की थी।

केपी शर्मा ओली के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के प्रयास

नेपाल में नवंबर-दिसंबर 2017 में हुए चुनाव के बाद फरवरी 2018 जब केपी शर्मा ओली दोबारा प्रधानमंत्री बने तो भारत ने भी उन्हें साधने की कोशिशें तेज कर दीं। इसके तुरंत बाद तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज खुद नेपाल गयीं और नेपाली पीएम को पहली विदेश यात्रा के लिए भारत आने का न्योता दिया। इसके बाद केपी ओली भारत यात्रा पर आए और फिर इसके कुछ महीनों बाद ही नरेंद्र मोदी भी नेपाल यात्रा पर गये। इन दोनों मौकों पर भारत ने नेपाल के साथ कई नए समझौते किये। बीते साल सितम्बर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के मोतिहारी से नेपाल के अमलेखगंज तक तेल पाइपलाइन का भी उद्घाटन कर दिया, जिसे नेपाल के लिए एक बड़ी सहूलियत माना जाता है। बीते समय में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की यात्राओं के दौरान चीन से संबंधों को लेकर नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत को आश्वस्त भी किया। उन्होंने कहा कि वे इनके चलते भारत के हितों पर कोई आंच नहीं आने देंगे।

भारत की नेपाल को साधने की कोशिश कुछ हद तक सफल भी हुई। साल 2016 में केपी शर्मा ओली ने खुद चीन द्वारा बिछाई जाने वाली रेल लाइन को तिब्बत से नेपाल के लुंबिनी यानी भारत की सीमा तक लाने की बात की थी। लेकिन, 2018 में चीन यात्रा के दौरान उन्होंने इसे काठमांडू तक सीमित कर दिया। माना गया कि नेपाल ने यह फैसला भारत की वजह से लिया। नेपाल ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव योजना के तहत भी कोई ऐसा समझौता अभी तक नहीं किया है जिससे भारत को कोई नुकसान हो।

संबंध पटरी पर आने लगे थे, तभी भारत का नया नक्शा जारी हो गया

भारत और नेपाल के बीच 2015 के मधेसी आंदोलन के समय जो रिश्ते खराब हो गए थे, वे बीते एक-डेढ़ साल में धीरे-धीरे पटरी पर आना शुरू हो गए थे। लेकिन बीते नवंबर में एक बार फिर दोनों के बीच तब अनबन शुरू हो गयी जब भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया। सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद दो नवंबर को यह नक्शा जारी किया था। नेपाल ने भारत के नए नक्शे पर सवाल उठाए। नेपाल को इस मानचित्र के उस हिस्से से आपत्ति थी, जहां विवादित कालापानी क्षेत्र को भारतीय सीमा के अंदर दिखाया गया है। नेपाल का दावा है कि कालापानी क्षेत्र नेपाल के दार्चुला जि़ले का हिस्सा है। उधर, भारत का कहना है कि ‘कालापानी’ उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जि़ले का भाग है।

कालापानी एक तरह से डोकलाम की तरह ही है, जहां तीन देशों की सीमाएं हैं। डोकलाम में भारत, भूटान और चीन हैं। वहीं कालापानी में भारत, नेपाल और चीन हैं। ऐसे में सैन्य नजरिये से यह ट्राइजंक्शन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। यह उस क्षेत्र में सबसे ऊंची जगह भी है। 1962 युद्ध के दौरान भारतीय सेना यहां पर थी। सामरिक मामलों के जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में चीन ने भी बहुत हमले नहीं किए थे क्योंकि भारतीय सेना यहां मजबूत स्थिति में थी। इस युद्ध के बाद जब भारत ने वहां अपनी पोस्ट बनाई, तब नेपाल ने इसका कोई विरोध नहीं किया था। जानकारों की मानें तो भारत का यह डर है कि अगर वह इस पोस्ट को छोड़ता है, तो हो सकता है चीन यहां धमक जाए और इस स्थिति में भारत को सिर्फ नुकसान ही होगा। इन्हीं बातों के मद्देनजऱ भारत इस इलाके से सेना को नहीं हटाना चाहता है। बहरहाल, बीते नवंबर में जब भारत के नए नक़्शे का नेपाल में भारी विरोध हुआ तो वहां की सरकार और भारत सरकार दोनों ने ही कहा कि वे इस मामले को बैठकर सुलझा लेंगे और इसके बाद इस पर बवाल थम गया।

लेकिन, बीते मई में दोनों देशों के बीच तब एक बार फिर तकरार शुरू हो गयी, जब भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को पिथौरागढ़ जिले के धारचुला से जोडऩे वाली 80 किलोमीटर लंबी सडक़ का उद्घाटन किया। यह सडक़, पिथौरागढ़-तवाघाट-घाटियाबागढ़ रूट का विस्?तार है। यह सडक़ अब घाटियाबागढ़ से शुरू होकर लिपुलेख दर्रे पर ख़त्म होती है, जो कैलाश मानसरोवर का प्रवेश द्वार है। भारत के नजरिये से देखें तो कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रियों को यह सडक़ बनने के बाद लंबे रास्?ते की कठिनाई से राहत मिलेगी और गाडिय़ां चीन की सीमा तक जा सकेंगी। इस सडक़ के उद्घाटन के तुरंत बाद नेपाल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया कि यह सडक़ नेपाली क्षेत्र से होकर गुजरती है। जबकि भारत ने इसे अपने क्षेत्र में स्थित होने की बात कही।

महाकाली नदी का उदगम विवाद की वजह

इतिहासकारों की मानें तो 1816 में नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच सुगौली संधि हुई थी जिसके तहत महाकाली नदी को ही भारत और नेपाल दोनों की सीमा मान लिया गया था। अब भारत-नेपाल के बीच का झगड़ा महाकाली नदी के उद्गम को लेकर है। नेपाल का कहना है कि नदी का उद्गम लिम्पियाधुरा से है और यह नदी लिम्पियाधुरा से निकलकर दक्षिण-पश्चिम की तरफ बहती है। वहीं भारत दावा करता रहा है कि यह नदी कालापानी से निकलती है और दक्षिण-पूर्व दिशा की तरफ बहती है। जानकार कहते हैं कि अगर भारत का दावा सही है तो लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा तीनों ही उसके क्षेत्र हो जाते हैं। लेकिन अगर नदी का उदगम लिम्पियाधुरा है तो फिर इन तीनों क्षेत्रों पर नेपाल का अधिकार है।

भारत और नेपाल के बीच विवादित क्षेत्र 7 फोटो : आईएस पार्लियामेंट

हालिया झगडे पर कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि भले यह क्षेत्र भविष्य में बातचीत के बाद भारत के कब्जे में आ जाएं, लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए भारत को कालापानी को अपने नए नक़्शे में दिखाने और लिपुलेख तक सडक़ बनाने से पहले नेपाल को विश्वास में लेना जरूरी था। क्योंकि दोनों के बीच इन क्षेत्रों को लेकर चीजें साफ़ नहीं हैं। यही वजह थी कि जब नेपाल से विवादित हिस्सों पर बातचीत किये बिना फैसले ले लिए गये तो वह नाराज हो गया। और फिर उसने भी वही काम किया जो भारत ने किया था, यानी लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा तीनों को ही अपने नक़्शे में दिखा दिया।

वैसे हालिया मामले को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने जनता का ध्यान बांटने और अपनी कुर्सी बचाने के लिए नए नक़्शे को हवा दी है। कहा जाता है कि कोरोना वायरस सहित तमाम मामलों पर सरकार के ढीले रुख की वजह से जनता उनसे नाराज है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का मोर्चा भी अब टूट के कगार पर पहुंच गया है। कुछ ही दिन पहले सत्ताधारी मोर्चे के कार्यकारी चेयरमैन पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ पीएम ओली को असफल बताते हुए उनसे इस्तीफे की मांग कर चुके हैं। प्रचंड ने ओली को चेतावनी देते हुए यह भी कहा है कि अगर प्रधानमंत्री ने इस्तीफा नहीं दिया तो वे मोर्चे को तोड़ देंगे। इस घटनाक्रम के लिए भी केपी शर्मा ओली ने भारत को जिम्मेदार ठहराया है। उनका आरोप है कि नेपाल का नया नक्शा जारी करने से नाराज भारत उन्हें उनकी कुर्सी से हटाना चाहता है। (सत्याग्रह)

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