विचार / लेख

किसानों के हितों के खिलाफ हैं तीनों नए कानून
29-Sep-2020 10:36 AM
किसानों के हितों के खिलाफ हैं तीनों नए कानून

-शैलेष नितिन त्रिवेदी

केंद्र सरकार ने संसद में कृषि संबंधित जो तीनों कानूनों को पास कराया है, वह पूरी तरह से  असंवैधानिक और संघीय ढांचे के खिलाफ है। संविधान में कृषि राज्य सरकार का विषय है। इस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमंडल को है। मोदी सरकार के इन तीनों कानूनों के खिलाफ विधान सभा में प्रस्ताव लाया जाएगा। छत्तीसगढ़ में किसानों के साथ अन्याय नहीं होने देने और इस बिल को किसी भी सूरत पर छत्तीसगढ़ में लागू नहीं होने देने के संकल्प का मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने लिया है। इस बिल से यदि छत्तीसगढ़ की धान खरीदी की व्यवस्था प्रभावित हुई, तो हम नया कानून बनाकर किसानों का धान खरीदेंगे।

किसान संगठनों का भी मानना है कि केंद्र सरकार के तीनों नए कृषि कानून से किसानों का शोषण बढ़ेगा । इन अध्यादेशों के जरिए आने वाले समय में केंद्र सरकार किसानों को मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म करने जा रही है। इसके उलट केंद्र सरकार दावा कर रही है कि इससे किसानों को फायदा होगा जबकि हक़ीक़त यह है कि इसका असल में किसानों को नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी कंपनियों और कारपोरेट हाउस को  फायदा होगा । तीन नए कृषि अध्यादेशों से किसानों का शोषण  बढ़ेगा ।

एक तरफ सरकार व अनेक अर्थशास्त्री इस बात को मान रहे हैं कि कोरोना संकट काल में सिर्फ किसानों की मेहनत और कृषि क्षेत्र के बलबूते ही देश की अर्थव्यवस्था का पहिया घूम रहा है । दूसरी तरफ केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद बन्द कर के किसानों का शोषण करने में लगी हुई है। यदि सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य  पर खरीदी को बंद कर दिया, तो खेती-किसानी के साथ-साथ देश की खाद्यान सुरक्षा भी बड़े संकट में फंस जाएगी। इन नए कानून के  माध्यम से आगे आने वाले समय में केंद्र सरकार किसानों के उपज  की समर्थन मूल्य पर खरीदी बन्द करने की दिशा में बढ़ रही है।

पहला अध्यादेश है फार्मर्स प्रोड्यूज ट्रेड और कामर्स । इसके तहत केंद्र सरकार 'एक देश, एक कृषि मार्केट' बनाने की बात कह रही है। इस अध्यादेश के माध्यम से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं।

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि उपज  की जो खरीदी मंडी से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि मंडी की व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि किसान व कम्पनी के बीच विवाद होने की स्थिति में इस अध्यादेश के तहत कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया जा सकता। नए अध्यादेश की वजह से किसानों को न्याय मिलना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

नए कानून में  केंद्र सरकार ने इस बात की कोई गारंटी नहीं दी है कि प्राइवेट पैन कार्ड धारक व्यक्ति, कम्पनी या सुपर मार्केट द्वारा किसानों के उपज  की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर होगी। केंद्र सरकार के इस अध्यादेश से सबसे बड़ा खतरा यह है कि जब फसलें तैयार होंगी, उस समय बड़ी-बड़ी कम्पनियां जानबूझ कर किसानों के माल का दाम गिरा देंगी और उसे बड़ी मात्रा में स्टोर कर लेंगी जिसे वे बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगी।

नए अध्यादेश के जरिये केंद सरकार किसानों की उपज को  समर्थन मूल्य  पर खरीदने की अपनी ज़िम्मेदारी व जवाबदेही से बचना चाहती है।

दूसरा अध्यादेश सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम1955 में बदलाव के लिए लागू किया गया है। पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए  आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 बनाया गया था। जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी। अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है। अब समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85 प्रतिशत लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है, ये कम्पनियाँ और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे।

तीसरा अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के विषय पर लागू किया गया है जिसका नाम है  द फार्मर्स  एग्रीमेंट  ऑन प्राइस एश्योरेंस  एंड फार्म सर्विस। इसके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा जिसमें बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ खेती करेंगी और किसान उसमें सिर्फ मजदूरी करेंगे। इस नए अध्यादेश के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा।

इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का जो मॉडल  किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन वह यह बात भूल जाती है कि  हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है । कांटेक्ट फॉर्मिंग किसी भी स्थिति में किसानों के हित में नहीं है इसके कई प्रमाण भी मौजूद हैं।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कम्पनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तो कम्पनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर रिजेक्ट कर दिया जाता है।

केंद्र सरकार का कहना है कि इन तीन कृषि अध्यादेशों से किसानों के लिए फ्री मार्केट की व्यवस्था बनाई जाएगी जिससे किसानों को लाभ होगा लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि  फ्री मार्केट से कम्पनियों व सुपर मार्केट को ही फायदा हुआ है।

 ये तीनों अध्यादेश किसानों के अस्तित्व के लिए खतरा हैं , क्योंकि केंद्र सरकार इनके माध्यम से आने वाले समय में किसानों की फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बन्द करने की तैयारी कर रही है। ये अध्यादेश असंवैधानिक हैं। कृषि राज्य सरकारों का विषय है इसलिए केंद्र सरकार को कृषि के विषय में हस्तक्षेप करने का कोई संविधानिक अधिकार नहीं है।
(लेखक पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष हैं)

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