सामान्य ज्ञान

क्या है वॉरसा विद्रोह
06-Oct-2020 11:43 AM
क्या है वॉरसा विद्रोह

द्वितीय विश्व युद्ध के आखिरी दिनों में अगस्त 1944 में वॉरसा विद्रोह के नाम से विख्यात विद्रोह 70 साल बीत जाने के बाद भी विवादों के घेरे से नहीं निकला है।  
पहली अगस्त को हर साल वॉरसा में शाम पांच बजे सायरन बजने लगते हैं। यह है शून्य काल की याद, जब जर्मन कब्जावरों के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ। यह अधिकृत पोलैंड में प्रतिरोध आंदोलन की सबसे बड़ी सशस्त्र कार्रवाई थी। इसका नतीजा बहुत त्रासद था। दो महीने की लड़ाई में दो लाख लोग मारे गए। उनमें से ज्यादातर असैनिक नागरिक थे। वॉरसा विद्रोह का मूल्यांकन विवादित है। एक के लिए यह देशभक्तिपूर्ण बहादुरी है, जिसके दौरान देश की राजधानी को अपनी ताकत से आजाद करने की कोशिश की गई - तो दूसरों के लिए ऐसी निरर्थक कार्रवाई, जिसने बहुत सी जानें ले ली।
विद्रोह की विरासत को लेकर भी कुछ सालों से विवाद हो रहा है। पिछले सालों में स्मृति समारोहों के दौरान सत्ताधारी राजनीतिज्ञों को उग्र दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी गुटों की आलोचना सहनी पड़ी है। उनका कहना है कि जर्मनी के साथ रिश्ते सामान्य बना कर और यूरोपीय एकीकरण के साथ उन्होंने राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाया।  
वॉरसा विद्रोह बुरी तरह से विफल रहा। सोवियत सेना से मदद पाने की उम्मीद पूरी नहीं हुई। करीब 16 हजार  भूमिगत लड़ाके मारे गए, 20 हजार घायल हो गए और करीब 15 हजार  गिरफ्तार कर लिए गए। डेढ़ से पौने दो लाख आम लोग मारे गए। विद्रोह को दबाने के बाद जर्मनों ने वॉरसा को तहस नहस कर दिया। लोगों को भगा दिया गया या गिरफ्तार कर यातना शिविरों में भेज दिया गया। सजा के इन बर्बर तरीकों का मकसद यह था कि लोग विद्रोह के बारे में सोचें भी नहीं।

लखीसराय
लखीसराय बिहार का एक जिला है । इसका मुख्यालय लखीसराय है। लखीसराय बिहार के महत्वपूर्ण शहरों में एक है। इस जिले का गठन 3 जुलाई 1994 को किया गया था। इससे पहले यह मुंगेर जिला के अंतर्गत आता था।
लखीसराय की स्थापना पाल वंश के दौरान एक धार्मिक-प्रशासनिक केंद्र के रूप में की गई थी। यह क्षेत्र हिंदू और बौद्ध देवी देवताओं के लिए प्रसिद्ध है। बौद्ध साहित्य में इस स्थान को अंगुत्री के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ है- जिला। प्राचीन काल में यह अंग प्रदेश का सीमांत क्षेत्र था। पाल वंश के समय में यह स्थान कुछ समय के लिए राजधानी भी रह चुका है। इस स्थान पर धर्मपाल से संबंधित साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। जिले के बालगुदर क्षेत्र में मदन पाल का स्मारक (1161-1162) भी पाया गया है। ह्वेनसांग ने इस जगह पर 10 बौद्ध मठ होने के संबंध में विस्तार से बताया है। उनके अनुसार यहां मुख्य रूप से हीनयान संप्रदाय के बौद्ध मतावलंबी आते थे। इतिहास के अनुसार 11वीं सदी में मोहम्मद बिन बख्तियार ने यहां आक्रमण किया था। शेरशाह ने 15वीं सदी में यहां शासन किया था जबकि यहां स्थित सूर्यगढ़ा शेरशाह और मुगल सम्राट हुमायूं (1534) के युद्ध का साक्षी है।

 

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