सामान्य ज्ञान
सितोपलादि चूर्ण एक हर्बल आयुर्वेदिक औषधि है। इसे बनाने में मिश्री, वंशलोचन, पिप्पली, इलायची के बीज और दालचीनी का प्रयोग किया जाता है। सितोपलादि चूर्ण एक शास्त्रीय योग है जिसे शारंगधर संहिता से लिया गया है और इसका कई आयुर्वेदिक फार्मेसियां निर्माण करती हैं। इसके चूर्ण के सेवन से कफ और पेट संबंधी रोगों से लाभ होता है। यह चूर्ण अस्थमा, सांस की तकलीफ, सूखी-गीली खांसी, कोल्ड, कफ, साइनोसाइटिस, ब्रौकाइटिस आदि तकलीफों में लाभप्रद है।
इसका मुख्य घटक सितोपला होता है इसलिए इसे सितोपलादि नाम दिया गया है। सितोपला, मिश्री का ही आयुर्वेदिक नाम है। इसे रॉक कैंडी और रॉ शुगर भी कहते हैं। सौंफ के साथ इसे माउथ फैशनर के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह स्वाद में मीठी होता है और शरीर में वात को कम करती है। वहीं वंशलोचन सफेद नीलापन लिए हुए मोटे फीमेल बांस की गांठों में पाया जाने वाला पदार्थ है। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल बहुत सी दवाएं बनाने के लिए किया जाता है। यह तासीर में ठंडा होता है। इसका सेवन खांसी, कफ और शरीर में बढ़ी गर्मी , हाथ-पैरों की जलन, पसली के दर्द और कमजोरी को दूर करने में किया जाता है। यह एंटी बैक्टीरियल होता है। यह शरीर के लिए पैष्टिक भी है। वहीं पिप्पली उत्तेजत , वात दूर करने वाला, विरेचर और खांसी जैसी बीमरियों के लिए लाभप्रद है। छोटी इलायचती- इला कहलाती है। यह त्रिदोष -हर, पाचन, वातदोषक, विरेचर और कफ को ढीला करती है। यह मूत्रवर्धक है। दालचीनी भी वात और कफ को कम करने में मददगार है। यह सांस की बीमारियों में प्रभावी होती है।