सामान्य ज्ञान

दीवारों से बंटी दुनिया
08-Nov-2020 12:50 PM
दीवारों से बंटी दुनिया

बगदाद की दीवारें- बगदाद की सडक़ों पर चलती तीन मीटर ऊंची दीवार शिया और सुन्नी को अलग करने वाली इकलौती नहीं है। जिलों के चारों ओर भी दीवार तानी गई है। यह सुरक्षा कारणों से है। यह इराकी समाज में पैदा हुई जटिलताओं का एक उदाहरण है। 
बर्लिन की दीवार- 9 नवंबर 1989 को बर्लिन की दीवार का गिरना इतिहास की शानदार घटना थी। यह दिन शीत युद्ध और यूरोप के विभाजन के खात्मे का दिन था, लेकिन आज भी दुनिया भर में देश, धर्म, जाति, राजनीतिक विचारधारा की दीवारें बनी हुई हैं।  
उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच- पनमुंजोम में बनी दीवार भले ही कुछ सेंटीमीटर की हो, लेकिन इसके आर पार जाना असंभव है। यह उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच की दीवार है। वामपंथी उत्तर कोरिया दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है जबकि दक्षिण कोरिया विकसित औद्योगिक देश। दोनों के बीच की सीमा 250 किलोमीटर लंबी है।
इस्राएल - दस साल से इस्राएल 700 किलोमीटर लंबी और आठ मीटर ऊंची दीवार पश्चिमी तट की सीमा पर बना रहा है। इस्राएलियों के लिए यह हमलों से सुरक्षा का उपाय लेकिन फलिस्तीनी इलाके के लोगों के लिए मुश्किल। 
यूरोपीय संघ और अफ्रीका में- यूरोपीय संघ और अफ्रीका की सीमा पर बनाई गई फेंस। यह स्पेन के सेउटा और मेलिया को मोरक्को से अलग करती है. और दो बिलकुल अलग जीवन स्तरों को भी। इस फेंस के कारण जान जोखिम में डालकर आने वाले अवैध आप्रवासियों की संख्या कम नहीं हुई है। 
उत्तरी आयरलैंड- यहां विवाद के साथ खड़ी हुई सात मीटर ऊंची दीवार। पीस लाइन नाम की इस दीवार ने बेलफास्ट को दो हिस्सों में बांटा है। हालांकि बेलफास्ट समझौते के साथ विवाद तो 1998 में अधिकारिक तौर पर सुलझ गया लेकिन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट धर्मावलंबियों में तनाव बना हुआ है।
अमरीका और मैक्सिको- अमेरिका भले ही आजाद लोगों का देश कहा जाता हो लेकिन मेक्सिको से लगी उसकी सीमा पर कड़ी पहरेदारी होती है। टोर्टेया वॉल नाम से मशहूर यह दीवार अवैध आप्रवासियों को अमेरिका में आने से रोकने और नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने के लिए है। सीमा पार करने की कोशिश में हर साल करीब 500 लोग मारे जाते हैं। 
विभाजित साइप्रस- निकोसिया के बीच से जाने वाली दीवार 1974 से ग्रीस और तुर्की के हिस्से वाले साइप्रस को अलग करती है। 2003 से हालांकि दोनों इलाके के लोग एक दूसरे के यहां जा सकते हैं। 
 

संगम साहित्य
तमिल भाषा की प्रारंभिक रचनाओं को संगम साहित्य कहा जाता है। माना जाता है कि तमिलनाडु के मदुरै में लगभग पहली से चौथी शताब्दी के बीच तीन संगमों या विद्वत परिषदों में ये रचनाएं लिखी गईं, इनमें तोल्काप्पियम में व्याकरण व अलंकार शास्त्र तथा दो संकलन, जिनमें एक में आठ (एट्टïुटोकई) व दूसरे में दस (पट्टïुपाट्टïु) काव्य संकलित हैं। 
पहले संकलन में कुरुनटोकई, नत्रिणै, अक्नानुरू, आयंगरूनारू, कलिट्टïोकई, पूर्णानुरू, पदिरुपट्टïु और परिपदल शामिल हैं। दूसरे संगम में थिरुमुरुकरररूप्पटई, पोरूनरारूप्पटई, सिरूप्पनर्रारूप्पटई, पेरूमप्पनर्रूप्पटई, मुल्लईप्पट्टïु, मातुरअइक्कन्सी, नेतुनालवटाई, कुरिनसिप्पट्टïु, पट्टिïनाप्लई और मलइपटुकटम शामिल हैं। आरंभिक भारतीय साहित्य में, जो पूर्णत: धार्मिक हैं। ये धर्मनिरपेक्ष रचनाएं अद्वितीय जान पड़ती हैं। इन कविताओं में प्रेम और राजाओं और उनके कार्यों की प्रशंसा दो प्रमुख विषय हैं। इनमें से अधिकांश विशेषकर राजाओं पर लिखी कविताओं में ताजगी व उत्साह है और यह भारत के अन्य प्राचीन मध्ययुगीन साहित्य के साहित्यिक आत्माभिमान से मुक्त हैं। 
पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष होने के कारण, ये रचनाएं जटिल पौराणिक संदर्भ कथाओं से भी मुक्त हैं, जो अधिकांश भारतीय कला विधाओं की विशेषता है। वैसे संगम साहित्य में कुछ धार्मिक रचनाएं भी हैं। पट्टïपाट्टïु (दस लंबी कविताएं) में भक्ति कविताओं के कुछ आरंभिक उदाहरण समाहित हैं, जबकि परिपदल में विष्णु, शिव और मुरुगन जैसे देवताओं पर कविताएं हैं।
 

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