सामान्य ज्ञान

बर्लिन की दीवार
09-Nov-2020 12:47 PM
बर्लिन की दीवार

9 नवंबर जर्मनी के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन है।  आज ही के दिन बर्लिन की दीवार ढहाई गई थी।  बर्लिन की दीवार ने करीब तीन दशकों तक न सिर्फ जर्मनों को बल्कि पूरी दुनिया को बांट कर रखा।  9 नवंबर 1989 को दीवार गिरा दी गई। 
1950 और 1960 के दशक के शीत युद्ध में पश्चिमी देश बर्लिन को पूर्वी ब्लॉक की जासूसी के लिए भी इस्तेमाल करते थे।  जब तक सीमा खुली थी तो वे रूसी सेक्टर में चले जाते थे। 1960 में लगभग 80 जासूसी सेंटर थे। इतने ही सेंटर पूर्वी ब्लॉक के खिलाफ भी काम कर रहे थे।  इस तरह के जासूसी युद्ध को उस जमाने में खामोश युद्ध कहा जाता था।   इन्हीं सब वजहों से परेशान हो कर 1961 में 12 और 13 अगस्त की रात पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन की सीमा को बंद कर दिया गया।  हजारों सैनिक सीमा पर तैनात किए गए और मजदूरों ने कंटीले तार लगाने शुरू किए।  यह काम रात को एक बजे शुरू किया गया और सडक़ों पर जलने वाली लाइटें भी बंद कर दी गईं ताकि पश्चिमी हिस्से के लोगों को पता न चले।  सुबह तक शहर दो हिस्सों में बंट चुका था और लोगों को पता ही नहीं चल रहा था कि क्या हो रहा है।  समय बीतता गया और लोग दीवार पार कर अपनों से मिलने की कोशिश करते रहे। 
 करीब तीन दशक तक पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन को अलग अलग रखने के बाद आखिरकार साल 1989 में बर्लिन की दीवार गिरा दी गई।  9 नवंबर 1989 को पोलित ब्यूरो के सदस्य गूंटर शाबोस्की ने शाम को हो रहे पत्रकार सम्मेलन में यह खबर पढ़ी कि अब से हर कोई बिना वीजा के तुरंत ही देश से बाहर जा सकता है। जब बाहर जाने वालों की भीड़ बढ़ती गई, तो शुरू में कुछ झिझक के बाद दीवार पूरी तरह से खोल दी गई।  दीवार गिराए जाने के बाद दोनों तरफ के लोगों में गजब की खुशी थी। 


ग्राम ज्ञान केंद्र
 केंद्र सरकार ने वर्ष 2005-06 के बजट में  सौ करोड़ की लागत से ग्राम ज्ञान केंद्र स्थापित करने की घोषणा की थी। सरकार का यह कदम गांवों और शहरों के बीच सूचना प्राप्त करने के लिए पुल का काम करेगा। 
इन सूचना केंद्रों से ग्रामीणों और किसानों को कृषि संबंधित नई जानकारी, बाजार भाव, कृषि उपज के विपणन की जानकारी, बाजार की मांग, शिक्षा, सूचना और संचार आदि मूलभूत जरूरतों को पूरा किया जाएगा। हालांकि गांवों को सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ पहुंचाने का कार्य पहले ही कुछ निजी कंपनियों, औद्योगिक प्रतिष्ठïानों और राज्य सरकारों द्वारा शुरू किया जा चुका है। 


प्रेस नियंत्रण अधिनियम
भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान प्रारंभ में किसी भी प्रेस संबंधी कानून के अभाव में समाचार-पत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों की दया पर ही निर्भर करते थे। कंपनी के अधिकारी नहीं चाहते थे कि ऐसे समाचार-पत्र जिनमें उनके कारनामों के बारे में जिक्र होता था, किसी भी तरह लंदन न पहुंचे।  जिन संपादकों से उन्हें परेशानी होती थी, उन्हें लंदन वापस भेज दिया जाता था।  लेकिन ऐसा भारतीयों के साथ संभव नहीं था।  अंतत: वेलेस्ली ने प्रेस नियंत्रण अधिनियम द्वारा समाचार- पत्रों पर नियंत्रण लगा दिया।  इसके तहत समाचार-पत्र  पर उसके संपादक और मुद्रक का नाम प्रकाशित करना अनिवार्य हो गया। 
लार्ड हेस्टिंग्स ने इसे कड़ाई से लागू नहीं किया और 1818 में फ्री सेंसरशिप को समाप्त कर दिया।  जॉन एडम्स के समय (1823) में भारतीय प्रेस पर फिर से पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।  लायसेंस के अभाव  में समाचार-पत्र प्रकाशित करने पर जुर्माना या कारावास की सजा भुगतनी पड़ती थी। 
वर्ष 1835 में लिबरेशन ऑफ द इंडियन  प्रेस अधिनियम लागू किया गया। इसके अंतर्गत प्रकाशक को केवल  प्रकाशन स्थान की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया गया। 1867 में पंजीकरण अधिनियम लागू करने का उद्देश्य समाचार- पत्रों को नियंत्रित करना था, जिसके तहत मुद्रक और प्रकाशक का नाम प्रकाशित करना जरूरी था।
1878 के वर्नाकुलर प्रेस अधिनियम में देशी भाषा वाले समाचार पत्रों को नियंत्रण में लाने का प्रयास किया गया। 1908 के अधिनियम द्वारा आपत्तिजनक सामग्री छापने पर मुद्रणालय जब्त कर लिए जाते थे। 1910 के इंडियन प्रेस एक्ट के तहत प्रकाशकों से पंजीकरण जमानत जमा की जाती थी। इसके बाद 1931 और 1951 में भी प्रेस विरोधी अधिनियम लागू किए गए। 
 

समुदाय सूचना केंद्र
सूचना प्रौद्यौगिकी विभाग ने पूर्वोतेतर और सिक्किम के 487 विकासखंडों में समुदाय सूचना केंद्र- कम्युनिटी इनफॉर्मेशन सेंटर स्थापित किया है ताकि क्षेत्र के लोगों का सामाजिक और आर्थिक विकास हो सके और विकासखंड स्तर पर लोगों की भागीदारी बढ़ सके। इन केंद्रों की मदद से स्वास्थ्य , ऊर्जा, शिक्षा, जल , साक्षरता और गरीबी आदि की समस्याओं से आसानी से निपटा जा सके। 
 

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