सामान्य ज्ञान
जिमनोथोरेक्स मिश्रई, ईल की नई प्रजाति है जिसकी खोज हाल ही में की गई है। ईल मछली या सांप के समान लम्बी पंख और गलफड़े वाली मछली होती हैं, जो सागर के उथले पानी में रेत, मिट्टी, या चट्टानों के बीच पाई जाती है। ईल अपने शरीर की लंबाई के बराबर लहरे उत्पन्न करके तैरती है। यह मछली लहर की विपरीत दिशा में भी तैर सकती है। दुनिया भर में ईल की 800 प्रजातियां पाई जाती हैं और भारत में 150-200 ईल की प्रजातियां हैं।
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई) के वैज्ञानिकों ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिला में स्थित दीघा के तट पर जिमनोथोरेक्स मिश्रई नामक ईल की नई प्रजाति की खोज की।
ईल की नई प्रजाति की खोज के बारे में डेविड जी स्मिथ और दीपांजन रे के साथ अनिल महापात्र द्वारा संयुक्त रूप से पत्रिका जूटाक्सा में जानकारी प्रकाशित हुई। जिमनोथोरेक्स मिश्रई प्रजाति 32.4 सेमी, लंबी भूरे रंग की है। यह एक समुद्री प्रजाति है और खाने योग्य भी है। यह जिमनोथोरेक्स समूह में वर्णित अन्य प्रजातियों से अलग है, मोरे मछली की इस प्रजाति की 134 कशेरुकी हड्डियां है। यह प्रजाति को विशेष रूप से 22 मीटर की गहराई से एकत्र किया गया। इन प्रजातियों का नमूना मछली लैंडिंग केंद्र, शकरपुर में एक मछली पकडऩे की नाव से एकत्र किया गया।
ब्रुनेई
ब्रुनेई (मलय - नेगारा ब्रुनेई दारुस्सलाम) जंबुद्वीप में स्थित एक देश है। ये इंडोनेशिया के पास स्थित है। ये एक राजतंत्र (सल्तनत) है। ब्रुनेई पूर्व में एक समृद्ध मुस्लिम सल्तनत थी, जिसका प्रभाव संपूर्ण बोर्नियो तथा फिलीपिन्स के कुछ भागों तक था। 1888 में यह ब्रिटिश संरक्षण में आ गया। 1941 में जापानियों ने यहां अधिकार कर लिया। 1945 में ब्रिटेन ने इसे मुक्त करवाकर पुन: अपने संरक्षण में ले लिया। 1971 में ब्रुनेई को आंतरिक स्वशासन का अधिकार मिला। 1984 में इसे पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई। ब्रुनेई की कुल आबादी लगभग 4 लाख 20 हजार है। इसमें 65 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। लगभग 20 प्रतिशत आबादी गैर-मुसलमान, बौद्ध और क्रिश्चियन कम्युनिटी की है।
ब्रुनेई में वर्ष 2015 को सार्वजनिक स्थानों पर क्रिसमस मनाने पर प्रतिबंध लगाया गया था। नये आदेश के अनुसार किसी भी मुसलमान द्वारा क्रिसमिस मनाये जाने पर उसे पांच साल की जेल की सज़ा देने का प्रावधान रखा गया था। इसके अलावा 20 हजार डॉलर (लगभग 13 लाख रुपए) जुर्माना भरने की भी सजा मिली थी। नए आदेश के अनुसार केवल गैर मुस्लिम क्रिसमस मना सकते थे, लेकिन इसके लिए उन्हें प्रशासन से मंजूरी लेनी होगी। इसके अतिरिक्त सुल्तान ने यह भी आदेश जारी किया कि यदि कोई मुसलमान इसकी बधाई देता हुआ अथवा सांता टोपी पहने दिखा तो उसे भी सजा मिलेगी।