सामान्य ज्ञान

कालका शिमला रेलवे
30-Dec-2020 12:42 PM
 कालका शिमला रेलवे

ब्रिटिश शासन की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को कालका से जोडऩे के लिए 1896 में दिल्ली- अंबाला कंपनी को इस रेलमार्ग के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। समुद्र तल से 656 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालका (हरियाणा) रेलवे स्टेशन को छोडऩे के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाडिय़ों के घुमावदार रास्ते से गुजरते हुए 2 हजार 76 मीटर ऊपर स्थित शिमला तक जाती है।
दो फीट छह इंच की इस नैरो गेज लेन पर नौ नवंबर, 1903 से आजतक रेल यातायात जारी है। कालका-शिमला रेलमार्ग में 103 सुरंगें और 869 पुल बने हुए हैं। इस मार्ग पर 919 घुमाव आते हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है। वर्ष 1903 में अंग्रेजों द्वारा कालका-शिमला रेल सेक्शन बनाया गया था। रेल विभाग ने 7 नवम्बर 2003 को धूमधाम से शताब्दी समारोह भी मनाया था, जिसमे पूर्व रेलमंत्री नितीश कुमार ने हिस्सा लिया था।  
यूनेस्को ने 24 जुलाई 2008 को इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया। 60 के दशक में चलने वाले स्टीम इंजन ने इस स्टेशन की धरोहर को बरकरार रखा है और यह आज भी शिमला और कैथलीघाट के बीच चल रहा है। इसके बाद देश की हैरिटेज टीम ने इस सेक्शन को वल्र्ड हैरीटेज बनाने के लिए अपना दावा पेश किया था। इस सेक्शन पर 103 सुरंगों की के कारण शिमला में आखिरी सुरंग को 103 नंबर सुरंग का नाम दिया गया है। इसी कारण से ठीक ऊपर बने बस स्टॉप को भी अंग्रेजों के जमाने से ही 103 स्टेशन के नाम से जाना जाने लगा।
भले ही इस ट्रैक को वल्र्ड हैरिटेज का दर्जा मिल गया है, लेकिन 105 वर्ष पुराने इस ट्रैक पर कई खामियां भी हैं। इस ट्रैक पर बने कई पुल कई जगह इतने जर्जर हो चुके हैं कि स्वयं रेलवे को खतरा लिखकर चेतावनी देनी पड़ रही है। ऐसे असुरक्षित पुलों पर ट्रेन निर्धारित गति 25 किलोमीटर प्रतिघंटा की जगह 20 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चलती है। कालका-शिमला रेलमार्ग पर सामान्य सीजन में लगभग डेढ़ हजार यात्री यात्रा करते हैं, जबकि पीक सीजन मे यह आंकड़ा दुगुना हो जाता है।
अंग्रेजों ने हिमाचल के किन्नौर जिले के कल्पा में इस रेल ट्रैक को बनाने का प्लान बनाया था। पहले यह रेल ट्रैक कालका से किन्नौर तक पहुंचाया जाना था, लेकिन बाद में इसे शिमला लाकर पूरा किया गया। अंग्रेजों ने इस रेल ट्रैक पर जब काम शुरू किया तो बड़ोग में एक बड़ी पहाड़ी की वजह से ट्रैक को आगे ले जाने में दिक्कतें आने लगीं। एक बार तो हालात यह बन गए कि अंग्रेजों ने इस ट्रैक को शिमला तक पहुंचाने का काम बीच में ही छोडऩे का मन बना लिया। इस वजह से ट्रैक का काम देख रहे कर्नल बड़ोग ने आत्महत्या तक कर ली। उन्हीं के नाम पर आज बड़ोग स्टेशन का नाम रखा गया है।
इस ऐतिहासिक रेलमार्ग पर चलने वाले अधिकतर इंजन 36 वर्षों की यात्रा के बाद भी सवारियों को कालका-शिमला की ओर ढो रहे हैं। इस रेलमार्ग पर वर्तमान मे लगभग 14 इंजन चल रहे हैं, इनमे 10 इंजन 36 वर्ष पूरे कर चुके हैं और शेष 4 इंजन भी 20 से 25 वर्ष पुराने हो चुके हैं। हालांकि पहाड़ों पर चलने वाले टॉय ट्रेन इंजन का जीवनकाल लगभग 36 वर्ष का ही होता है।
 

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