सामान्य ज्ञान

पड़
31-Dec-2020 12:58 PM
पड़

पड़ का अर्थ है पट्ट चित्र यानी कपड़े पर बना हुआ चित्र।  राजस्थान में पड़ बांचने की एक लंबी परंपरा रही है। रामदेवजी की पड़, माताजी की पड़, रामदला की पड़, कृष्णदला की पड़  और बगड़ावत जैसे इसके कई रूप यहां के लोक में प्रचलित हैं।  रामदेव की पड़ में उस लोकदेवता के सुकृत्यों का वर्णन किया जाता है, तो रामदला और कृष्णदला की पड़ में  सभी चराचर में घटित होने वाले कार्य का ब्यौरा देने के साथ ही राम और कृष्ण के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं का भी वर्णन किया जाता है। मान्यता है कि जब पुराने जमाने में लोग चोरी करने के लिए जाते थे, तब वे इसकी पूजा करके शुभ शकुन देख लेते थे। 

 इन सभी पड़ों में पाबूजी की पड़  और बगड़ावत  यानी देवनारायण की पड़ को राजस्थान में सबसे ज्यादा सुना जाता है।  बगड़ावत तेरह से  पच्चीस हात लंबी पड़ होती है और इसे मुख्य रूप से गूजर बांचते हैं। पाबूजी की पड़ बारह से बीस हाथ लंबी होती है। यह रावणहत्था नामक वाद्य के साथ बांची जाती है। इसे बांचने वाले भोपे के साथ उसकी पत्नी भोपी भी होती है जो हाथ में दीपक लिए होती है और भोपे के बोलों को दोहराती है। कभी दो भोपे मिलकर भी पड़ बांचते हैं।  पड़ में गीत और चित्र  दोनों का ही मिश्रित रूप देखने को मिलता है।  इसलिए उसकी विवेचना में  उसके चित्र - रूप  और गेय रूप दोनों का विशेष ध्यान रखा जाता है।  पड़ को एक चलता-फिरता मंदिर भी कहा जाता है।  इसे बंचवाने वाला अपनी मनौती पूरी होने के बाद पड़ बांचने वालों को आमंत्रित करता है और वहां  रात भर पड़ बांची जाती है।  बरसात के दिनों में पड़ बांचना  और बनना बंद रहता है। पड़ के फट जाने पर उसे पुष्कर में ले जाकर विसर्जित कर दिया जाता है  और इस अवसर पर वहां भोपे को सवामणी चढ़ानी पड़ती है।  पाबू और देवनारायण की पड़ों की शैली एक 
 

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