विचार / लेख

कर्ज में दबे कृषिजीवी आंदोलन के मरण पर्व पर आमादा
09-Feb-2021 5:54 PM
कर्ज में दबे कृषिजीवी आंदोलन के मरण पर्व पर आमादा

-प्रकाश दुबे

 गांव में बचत एक नया कारोबार है। रकम जमा करने का धंधा ऐसे कर्ज देने की प्रवीणता में बदलता है जो आम तौर पर गैरजरूरी हैं। सूक्ष्म वित्त यानी माइक्रो फाइनेंस के कारोबार में जुटी बड़ी कंपनियों की सूची पर ध्यान दें मुनाफाखोरी के खेल का भांडा फूट जायेगा  विलासिता या सुविधा की चीजें खरीदने का प्रोत्साहन।

गोदावरी और नर्मदा भारत की सप्त नदियों में शामिल है। आस्थावान लोग उसकी प्रतिदिन आराधना करते हैं। शेर, शक्कर, हिरन, पांडाझिर, पैनगंगा छोटी नदियां हैं। आसपास के इलाकों की खेती और खुशहाली में उनका योगदान कम नहीं है। नदी तट ग्रामवासी किसान और छोटे कारोबारी की कर्ज पर निर्भरता कायम है। बैंक देश के करोड़ों लोगों की पहुंच से बाहर हैं। बचत गट, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं और छोटे परिचित साहूकार ही उनके लिए फरिश्ते हैं। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में अनेक किसान परिवारों का जीवन और घरबार बैंक के बाहर से मिलने वाले कर्ज की बदौलत चलता है।

माइक्रो फाइनेंसिंग कंपनियां कर्ज उपलब्ध कराती हैं। महाराष्ट्र में बचत गट सक्रिय हैं। मध्यप्रदेश में नर्मदा तट की जमीन सबसे उर्वरा है। वहां के किसान और गांव-कस्बे वाले साहूकार पर निर्भर हैं। तेलंगाना में घर घर जाकर कर्ज बांटने वाले बड़े और स्थानीय समूह सक्रिय हैं। वर्ष 2016-17 और 2019 में किसानों की कर्जमाफी के फायदे से वंचित महाराष्ट्र में अनेक किसान हैं। बैंक नहीं खुला। किसी का कर्जमाफी सूची में नाम नहीं आया। तेलंगाना सीमा से सटे गांवों के मराठी किसान बाहर से कर्ज पाकर संतुष्ट हैं।

ठीक विपरीत आदिलाबाद, निजामाबाद आदि जिलों में किसानों के गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के कारण बर्बाद होने के कारण तहलका मचा है। महाराष्ट्र का यवतमाल जिला पूरी दुनिया में किसान आत्महत्याओं के कारण जाना जाता है। कर्ज बांटने वाली संस्थाओं और समूहों का स्वागत करने वालों में आत्महत्या कर चुके किसानों की विधवाएं भी हैं और किसी तरह खेती पर जीवित किसान भी। मध्यप्रदेश के गांवों में आत्महत्या की घटनाएं कम हैं।

 तेलंगाना में किसान आत्महत्या और कर्जदार के भागकर हैदराबाद या कहीं और जाकर काम तलाशते हैं। तीनों राज्यों में, और संभवत: सभी जगह एक बात समान है। गैर बैंकिंग संस्थाएं 20 से 36 प्रतिशत तक ब्याज वसूल करती हैं। अच्छी उपज के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के खलौटी इलाके में आपात् स्थिति में कुछ लोग इससे भी अधिक ब्याज दर पर कर्ज लेते हैं। इस क्षेत्र के सामाजिक जीवन से जुड़े डॉ. प्रभु दयाल का अनुमान है कि 20 प्रतिशत से कम ब्याज दर पर तो शायद ही किसी को कर्ज मिलता है।

खेती को लाभदायी बनाने का कोई भी दावा खरा नहीं उतरा। कर्ज और आत्महत्या का सीधा संबंध है। महिलाओं के बचत गट बनाकर कर्ज और बचत के बीच संतुलन से समाधान पाने का प्रयास किया गया। महिलाओं को आत्मनिर्भरता बनाकर सामाजिक समता का सपना कुछ जगह कारोबार बनकर रह गया। महाराष्ट्र के सबसे संपन्न नगर निगमों में शामिल पिंपरी चिंचवड़ में बचत गट प्रयोग ने मुनाफा कमाया। महिलाएं समिति बनाकर बचत करतीं।

राजनीति में सक्रिय उनके पति उस रकम से निर्मित उत्पाद अधिक मूल्य पर निगम को बेचते। जाने माने अर्थशास्त्री डॉ. श्रीनिवास खांदेवाले ने इसे शहरी साहूकारी का ही एक रूप माना। अनेक राज्यों में कर्जबांटू कंपनियों के कर्मचारी सबेरे कर्ज बांटते हैं और शाम को वसूली करने जा धमकते हैं। देर रात कर्जदार के घर पर डटे रहना, धौंस, मारपीट सब संभव है। महिला बालविकास की प्रभारी भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी नीला सत्यनारायण ने ऐसे प्रतिनिधिमंडल को ग्राम और गरीब द्रोही कहकर सचिवालय से बाहर कर दिया था।

 सामान्य महिलाओं के बजाय ऐसे समूहों को उन्होंने राजनीतिक लोगों के कमाई के औजार बताया। ग्रामीण आर्थिक विकास में मददगार कुछ संस्थाएं ही इसका अपवाद हैं। गांव में बचत एक नया कारोबार है। रकम जमा करने का धंधा ऐसे कर्ज देने की प्रवीणता में बदलता है जो आम तौर पर गैरजरूरी हैं। सूक्ष्म वित्त यानी माइक्रो फाइनेंस के कारोबार में जुटी बड़ी कंपनियों की सूची पर ध्यान दें मुनाफाखोरी के खेल का भांडा फूट जायेगा  विलासिता या सुविधा की चीजें खरीदने का प्रोत्साहन। हैदराबाद में केन्द्रीय विश्वविद्यालय के ऊंचे ओहदे पर कार्यरत डा फरियाद अली ने ग्रामीण कर्जबाजारी का अध्ययन किया। उनके जैसे लोगों का मत है कि विषचक्र में फंसकर गांवों की अर्थ व्यवस्था जर्जर हो रही है। गांव यदि इतने संपन्न हैं और बचत के आंकड़े इतने अधिक हैं तो गरीबी फिर है कहां? क्यों किसान आत्महत्या करते हैं और क्यों लोग गांव छोडक़र भागते हैं? क्यों उन्हें आंदोलन करना पड़ता है? गरीबी पर कर्ज का अभिशाप।

सब्जी, फल जैसे जरूरत का माल बेचने वाले प्रात: कर्ज से सामान खरीदते हैं। कमाई का बड़ा हिस्सा शाम को वसूली करने वाला ऐंठ लेता है। केन्द्रीय वित्तमंत्री ने देहात की जरूरत को देखते हुए 16 लाख करोड़ रुपए छोटे कर्ज बांटने का प्रावधान किया है। लगभग आधी रकम गैरबैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से ही वितरित कराने का लक्ष्य रखा है।

महाराष्ट्र में किसानों को आत्महत्या से रोकने के लिए वसंतराव नाईक शेतकरी मिशन बना। इसके अध्यक्ष किसान नेता लगातार बैंकिंग पक्ष को किसान हितैषी बनाने की मांग कर रहे हैं। बैंक 24 घंटे सेवा और छोटे बकायेदार को अधिक मुहलत दे सकते हैं। कर्जदाताओं पर कोई नियमन आवश्यक है। किसानों की मांगों पर विचार एक पक्ष है। डा स्वामीनाथन की रपट वाल्मीकि रामायण की तरह है। पढ़ा किसी ने नहीं और लागू करने के दावे अनेक। शोषण की मशीन में गांव की अर्थ व्यवस्था की पेराई कर समता पर आधारित समाज नहीं बन सकता। कर्ज शोषण रोके बिना देहात और शहर के बीच विषमता की खाई नहीं पट सकती। (लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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