विचार / लेख

जीत की हार
12-Feb-2021 5:15 PM
जीत की हार

-सांवर अग्रवाल

‘यह क्या एंटीबायोटिक है?’

पर्चे पर एक अंगुली ठिठकती है, एक प्रश्न दागती है!

‘नहीं, यह एंटीबायोटिक नहीं है।’

‘पर, मेरा बच्चा बिना एंटीबायोटिक के ठीक नहीं होता, बहुत बार आज़माया हुआ है। आप प्लीज लिख ही दीजिये।’

‘ मैं वायरल फीवर के लिये एंटीबायोटिक नहीं लिखता’

‘पर बहुत सारे डॉक्टर्स तो लिखते हैं’

‘मैं नहीं लिखता।’

‘फिर वे क्यों लिखते हैं?’

‘इस प्रश्न का जवाब देने के लिये तो वे ही उपयुक्त हैं’

‘वैसे तो मैं भी ज्यादा दवाइयों के फेवर में नहीं हूँ, पर हमारे फ्लैट के ऊपर एक आंटीजी रहती हैं वे हमेशा कहती हैं कि बच्चाों को जल्दी ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक जरूरी होता है।’

‘वो आंटीजी डॉक्टर हैं?’

‘नहीं है, पर बच्चों का काफी अनुभव है उन्हें, प्लीज लिख दीजिये!’

‘मुझे क्षमा करें, मैं नहीं लिख पाऊंगा ’

‘मुझे मेरी किटी पार्टी वाली दोस्तों ने पहले ही आगाह किया था कि आप चाहे जो हो जाए एंटीबायोटिक नहीं लिखेंगे।’

‘मैंने एंटीबायोटिक के खिलाफ कोई जिहाद नहीं छेड़ा हुआ कि जो हो जाए पर एंटीबायोटिक नहीं लिखना है, मैं जो कर रहा हूँ उसकी जवाबदेही है मेरी।’

उसने मेरा पर्चा मेरी टेबल पर छोड़ा और  ‘आती हूँ’ कहकर बिना फीस दिये निकल कर चली गई!

मैं ठगा सा देर तक उस पर्चे को घूरता रहा!

याद आया कि आज तो  Rational antibiotics पर एक CME में जाना है! फिर स्पीकर का नाम देखा और घर लौट गया।

 

 

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