धमतरी
नगरी, 7 जनवरी। छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन गट्टासिल्ली, करैहा, सारंगपुरी, तालपारा, सराईटोला, जोराडबरी, गुहाननाला सहीत आसपास के गांव मे बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया। छेरछेरा दान लेने-देने का पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों मे धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर- घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। छेरछेरा पर बच्चे गली, मोहल्लों व घरों मे जाकर छेरछेरा का दान मांगते हैं।
दान लेते समय बच्चे च्च्छेर-छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेराज्ज् कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देगी तब तक वे कहते हैं च्च्अरन-बरन कोदो दरन, जबे देबे तभे टरन च्च्। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक नहीं जाएंगे। इस पर्व मे अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को गट्टासिल्ली ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं।