कवर्धा
![कबीरधाम के जंगलों में राजस्थानी गुजराती भेड़-बकरियों का डेरा, चट कर रहे वनस्पति कबीरधाम के जंगलों में राजस्थानी गुजराती भेड़-बकरियों का डेरा, चट कर रहे वनस्पति](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1718720967awardha-15.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कवर्धा, 18 जून। मानसून के आगमन के साथ कबीरधाम जिले के जंगलों में राजस्थान, गुजरात की भेड़-बकरियां भी दिखाई दे रही हैं। यह वनस्पति को चट कर जाते हैं। चरवाहे भी भेड़-बकरियों को खिलाने के नाम पर हरे-भरे पौधे को काट देते हंै। जिससे वनों का रकबा भी प्रति वर्ष कम हो रहा है ।
जंगलों और मैदानी इलाकों में राजस्थान, गुजरात के ऊंट-भेड़ों का डेरा यहां कई साल से हैं। जहां चरवाहे अपने पशुओं को खिलाने के नाम पर हरे-पौधे वनस्पति को काट रहे हैं। जिससे स्थानीय लोगों में वन विभाग के खिलाफ जमकर आक्रोश देखने को मिल रहा है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि वन विभाग कार्रवाई के नाम पर मात्र खानापूर्ति कर रहा है।
जंगल ठूठ में हो रहा है तब्दील
जिले के बोड़ला, पंडरिया और सहसपुर लोहारा विकासखंड के वन परिक्षेत्र में कुछ दिनों बाद बड़ी संख्या में राजस्थानी ऊंट देखे जा सकते हंै। ऊंचाई अधिक होने के कारण ऊंट बड़े पेड़ों की हरियाली चट कर देते हैं और भेड़ बकरी छोटे पेड़ों की हरियाली। इन ऊंटों और भेड़ों का झुंड जहां से निकला जाता है, वहां पेड़ों में ठूंठ और जमीन पर बिना पत्तों की डंगाल नजर आती है। बावजूद इसके वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी इसे रोकने में के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाते। जंगलों में वनस्पतियां बड़ी तेजी से नष्ट होती जा रही है। जिस स्थान से इन ऊंटों और भेड़ों का झुंड गुजरता है वहां हरियाली दिखाई नहीं देती है।
प्रतिवर्ष रहता है डेरा
बीते कुछ साल से राजस्थान और गुजराज से आने वाले ऊंट और भेड़ वालों यहां जमे हुए हंै। बोड़ला, सहसपुर लोहारा, पंडरिया, अंचलों में भेड़ वालों के चलते वनों और वनस्पतियों को काफी नुकसान हो रहा है। वनवासी अंचलों में जहां-तहां उनके डेरे दिखाई देने लगे हैं। एक-एक डेरे में हजारों की संख्या में भेड़ें रहती हंै।
वनवासियों के अनुसार जिन स्थानों पर इनके डेरे ठहरते हैं और भेड़ें बैठती है, वहां घास तक नहीं जमती। दूसरी ओर भेड़ों को खिलाने के लिए उनके चरवाहे जंगल के झाड़ों को काट देते हैं, इससे जंगलों में कर्रा, धवड़ा, बबूल जैसे झाड़ों के ठूंठ दिखाई देने लगे हैं।
औषधि पौधे हो रहे हैं विलुप्त
वनवासी आज भी अस्पताल बहुत कम जाते हैं। वे सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज जड़ी-बूटियों से ही ठीक कर लेते हैं, लेकिन भेड़-बकरियों, ऊंट के चलते कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां विलुप्त होने के कगार पर है। कुछ साल पहले चरौहा नामक झाडिय़ों की भरमार रहती थी, जो अब समाप्ति की ओर है।
वनवासियों का कहना है कि यदि ऊंट-भेड़ वालों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो आने वाले कुछ वर्षों में वन और वनस्पतियां नष्ट हो जाएगी।
जंगल क्षेत्रों में वन विभाग के रेंजर और अनुविभागीय अधिकारी और वन विभाग के कर्मचारी रहते हैं, लेकिन अंचल के लोगों को कभी भी इन अधिकारियों की सक्रियता जंगलों की सुरक्षा के लिए दिखाई नहीं देती। इसी का फायदा उठाते हुए चरवाहों ने वनांचल में अपना डेरा जमाना प्रारंभ कर दिया है। वे बेखौफ होकर जंगलों में घुसकर पेड़-पौधों को चारागाह बनाकर नष्ट कर रहे हैं। वनांचलवासी जब इसका विरोध करते हैं तो उनके द्वारा भी धौंस जमाते हुए विवाद करने पर उतारू हो जाते हैं।