गरियाबंद

सिकासार बांध में दुर्लभ प्रजाति की मछली ‘महासीर’ से अनजान है विभाग
21-Jan-2021 4:28 PM
सिकासार बांध में दुर्लभ प्रजाति की मछली ‘महासीर’ से अनजान है विभाग

नर्मदा नदी में महासीर मछली की मौजूदगी मिलती है 

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
मैनपुर, 21 जनवरी।
सिकासार बांध में पल रहे दुर्लभ प्रजाति महासीर मछली मौजूद है। इसकी पहचान करने वाली निजी संस्था का दावा है कि प्रदेश का यह इकलौता स्थान जहां महासीर मौजूद है पर संरक्षण के अभाव में इसकी संख्या तेजी से घट रही है। 
गरियाबंद जिला के तहसील मुख्यालय मैनपुर से 30 किलोमीटर दूर में मौजूद सिकासार जलाशय न केवल अपने प्राकृतिक अनुपम छटा को लेकर विख्यात है बल्कि यहां पाए जाने वाले एक खास प्रजाति के मछली महासीर की उपस्थिति भी इसे खास बनाती है।
पश्चिम घाटी व हिमालय में मौजूद जलधाराएं,नर्मदा नदी में इसकी उपस्थिति दर्ज किया गया था,पर वन्य प्राणियों के संवर्धन पर इस इलाके में काम कर रही एनजीओ नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी ने 2016 में इस प्रजाति की मौजूदगी, सिकासार जलाशय में होने की पुष्टि की है।
संस्था के अध्यक्ष एम सूरज ने बताया कि बाजार में बिकने आई मछलियों को देखकर दुर्लभ होने की संभावना हुई, और अध्ययन करने पर पता चला कि यह दुर्लभ महासीर मछली है, इस मछली की उपप्रजाति जानने संस्था द्वारा इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के साथ काम किया जा रहा हैं, सूरज ने बताया कि वन विभाग को इसकी प्रारंभिक पहचान रिपोर्ट सौंपा गया है। आगे विस्तृत अध्ययन के लिये अनुमति मांगी गई है, ताकि भारत में पाये जाने वाले महासीर के 16 उप प्रजाति के में यह कौन से उप्रजाति के श्रेणी में आता है इसका पता लग सके।

इसकी पहचान होना बाकी है, 
मध्यप्रदेश सरकार ने 2011 में इसे राज्यकीय मछली का दर्जा दिया हुआ है। मामले में मत्स्य विभाग की उपसंचालक मधु खाखा ने कहा कि महासीर की कोई जानकारी विभाग के पास मौजूद नहीं है। वैसे भी सिकासेर में मछली पालन का काम मत्स्य महासंघ देखती है। मत्स्य महासंघ के प्रबंधक एस के साहू ने कहा की अभी केवल मत्स्याखेट का ही काम देखते है। पालन या संवर्धन को लेकर कोई गाइडलाइन प्राप्त नहीं है।

तेज बहाव इन्हें पसंद है
जंगलों के पारिस्थितिक तंत्र में बाघ का जो दर्जा होता है,पानी में उसी तरह का दर्जा महासीर को प्राप्त है। इसे टाइगर फिश के नाम से भी जाना जाता है। मछुवारे व स्थानीय लोग इसे खुसेरा कहते हैं। बाढ़ के समय में यह मछली तेज बहाव के विपरीत छोटे नालों में चढ़ती हैं और चट्टानों के नीचे ये प्रजनन करते हैं, सिकासेर जलाशय के बहाव वाले इलाके में इन्हें ज्यादातर देखा जाता है। जल के पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित करने में इनका अहम योगदान होता है। यह 15 किलो से भी अधिक वजन की हो सकता है। शक्तिशाली मछली होने के कारण यह सामान्य जाल में नहीं फंसाया जा सकता है।

तेजी से घट रही है संख्या
शिकार करने वाले ग्रामीण व मछली के बीच रहकर लगातार काम कर रही नोवा नेचर संस्था का दावा है कि पिछले एक दशक में इसकी संख्या काफी कम हो गई है। कारण बताया कि इसका संवर्धन नहीं हो रहा, खाने में अन्य मछलियों की तुलना में ज्यादा स्वादिष्ट होता, मछली चतुर व बलशाली होता है, पर प्रजनन काल में शक्ति शिथिल होता है, इसी समय आसानी से इसका शिकार कर दिया जाता है। यही वजह है कि इसकी संख्या तेजी से घट रही है, यदि इनके संरक्षण के लिए समय रहते ठोस पहल नहीं किया गया तो आने वाले समय में महासीर एक कहानी बनकर रह जाएगा।

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