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छत्तीसगढ़ एक खोज : उन्नीसवीं कड़ी : ठाकुर जगमोहन सिंह
29-May-2021 1:22 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : उन्नीसवीं कड़ी : ठाकुर जगमोहन सिंह

-रमेश अनुपम
सन् 1880 में तहसीलदार के रूप में ठाकुर जगमोहन सिंह ने धमतरी में अपना पदभार ग्रहण किया। ठाकुर जगमोहन सिंह को पहली बार छत्तीसगढ़ को देखने और समझने का अवसर मिला। हालांकि उस समय तक मध्यप्रदेश का ही कोई अस्तित्व  नहीं था, छत्तीसगढ़ अभी भविष्य में रूपाकर ग्रहण करने वाले मध्यप्रदेश के गर्भ में ही कहीं अटका हुआ था। मध्यप्रदेश सी.पी.एंड बरार का ही एक अभिन्न हिस्सा था। 
ठाकुर जगमोहन सिंह ने कभी सोचा ही नहीं था कि बनारस के च्ींस कॉलेज में पढऩे और  विजयराघवगढ़ रियासत के राजकुमार होने के बाद भी उन्हें छत्तीसगढ़ में तहसीलदार के रूप में नौकरी करनी पड़ेगी। कहां विजयराघवगढ़ जैसी रियासत के राजकुमार और कहां अंग्रेजों की गुलामी वाली चाकरी। यह दिन भी उनके नसीब में शायद देखना लिखा था।
ठाकुर जगमोहन सिंह ने अपनी इस मनोव्यथा को अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ ‘श्यामा सरोजनी’ में कुछ इस तरह से व्यक्त करने की कोशिश की है-
‘छूटी धरती धन धाम विराम कछु
यह पूरब जन्म की रेखा
सुशासक जो अब शासित हवे   
जगमोहन के यह कर्म को देखा’
ठाकुर जगमोहन सिंह ने धमतरी में रहते-रहते आस-पास के ग्रामीण जनजीवन को भी निकट से देखा-परखा था। नगरी सिहावा भी धमतरी तहसील के अधीन था, सो सन 1881 में वे दौरा करते हुए नगरी सिहावा की यात्रा पर निकल पड़े थे।
ठाकुर जगमोहन सिंह आज के प्रशासकों जैसे नहीं थे, जो किसी सुरम्य स्थल में ठहरते और रात में विलासिता के संसाधन जुटवाते।
वे एक बेहद संवेदनशील प्रशासक थे, जो मनुष्य और प्रकृति से प्रेम करना जानते थे। धन संचय और विलासिता से जिनका कोसों दूर तक कोई रिश्ता नाता ही नहीं था। 
सिहावा पहुंचकर उनके भीतर विद्यमान गंभीर सर्जक और कवि जैसे जाग उठे थे। सिहावा के जंगल, पहाड़ और महानदी के अपूर्व सौंदर्य ने उन्हें सम्मोहित कर लिया था।
दो सतत् अन्वेषणशील चक्षु ने अपनी गहरी दृष्टि के साथ अन्वेषण तथा उत्खनन का कार्य  प्रारंभ कर दिया था। उन चक्षुओं ने महानदी के उदगम स्थल का अवलोकन किया। महानदी के उदगम स्थल को देखकर हृदय और मेधा दोनों एक साथ सक्रिय हो उठे। वे पहाड़ों पर अवस्थित श्रृंगी ऋषि आश्रम तक जा पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने ढेर सारे नोट्स लिए, जिसका उपयोग उन्होंने सन् 1885 में लिखित अपनी सुदीर्घ कविता ‘प्रलय’ में किया है।
सन् 1881 के सिहावा को ठाकुर जगमोहन सिंह की आंखों से देखना हमें किंचित रोमांचित और विस्मित कर सकता है-
‘सिहावा जहां महानदी का स्रोत है एक छोटा सा ग्राम पर्वत के मूल में जिसे लोग श्रृंगी ऋषि का आश्रम कहते हैं, बसा है। यहां ऐसा घोर वन है कि सूर्यास्त के पश्चात व्याघ्र और अनेक वन्य पशु ग्राम के भीतर स्वच्छंद विचरते हैं। ग्रामवासी इनके भय से सांझ ही टट्टी लगाकर घर से बाहर नहीं निकलते।’
आज सिहावा का वह रूप नहीं रह गया है। न वनों को हम बचा पाए हैं और न ही वन्य जीवों को ही। इसके साथ ही प्रकृति के उस   नयनाभिराम छवि को ही हम कहां सुरक्षित रख पाएं हैं।
सन् 1881 के आस-पास ही ठाकुर जगमोहन सिंह का स्थानांतरण धमतरी से शिवरीनारायण हो गया।शिवरीनारायण में वे लंबे समय तक रहे। शिवरीनारायण में रहते-रहते ही उन्होंने अपना सर्वोत्तम साहित्य रचा। 
कहा जाता है कि शिवरीनारायण में रहते हुए उन्हें श्यामा नामक एक अपूर्व सुंदरी से प्रेम हो गया। श्यामा संभवत: एक विधवा ब्राह्मण स्त्री थी।
ठाकुर जगमोहन सिंह के हृदय में श्यामा की सुंदर छवि इस प्रकार रच बस गई थी कि उन्होंने अपनी प्रमुख कृतियों के शीर्षक श्यामा के नाम पर ही रख दिए। 
यथा- 
‘श्यामा सरोजनी’,  ‘श्यामा स्वप्न, ‘श्यामा लता’।
शिवरीनारायण में रहते-रहते उन्होंने अपने प्रिय सखा भारतेंदु हरिश्चंद्र के भारतेंदु मंडल के तर्ज पर अपना एक मंडल बनाया जिसे उन्होंने नाम दिया ‘सज्जनाष्टक’। ठाकुर जगमोहन सिंह के इस मंडल में आठ प्रमुख कवि सम्मिलित थे जो शिवरीनारायण में ही रहते थे। यह ठाकुर जगमोहन सिंह की सोहबत का कमाल था कि वे सभी कविता लेखन की ओर प्रेरित हुए थे। शिवरीनारायण में रहते-रहते उन्होंने अनेक दुर्लभ साहित्यिक ग्रंथों का सृजन किया।
वे शिवरीनारायण में एक लोकप्रिय तथा संवेदनशील प्रशासक के रूप में जनता में लोकप्रिय हुए। सन् 1885 में शिवरीनारायण में आई हुई बाढ़ के समय उन्होंने वहां की जनता की सुरक्षा के लिए जो भी कारगर कदम उठाए, उसे उनकी सुदीर्घ कविता ‘प्रलय’ को पढ़े बिना नहीं जाना जा सकता है।
‘प्रलय’ एक ऐतिहासिक कविता है। जिसमें ठाकुर जगमोहन सिंह ने शिवरीनारायण में 21, 22, 23 जून सन 1885 में महानदी में आई हुई प्रलयंकारी बाढ़ का सजीव चित्रण किया है। इस कविता के फुटनोट में जिस तरह से महानदी का विशद वर्णन किया गया है, वह देखते ही बनता है।
‘प्रलय’ कविता में बाढ़ की विभीषिका का चित्रण करते हुए ठाकुर जगमोहन सिंह ने सार छंद में यह लिखा है-
‘प्रबल प्रलय के मेघ तीन दिन
बरसे बूंद अटूटे
छहर मूसल सी धार वारि की
जलद न ततिकौ फूटे’
शिवरीनारायण में ही उन्होंने सन 1885 में अपना प्रथम उपन्यास ‘श्यामा स्वप्न’ लिख कर पूर्ण किया। ‘श्यामा स्वप्न’ को उन्होंने ‘चार खंडों में एक कल्पना’ का  नाम दिया है। 
हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि केदार नाथ सिंह सहित अनेक विद्वानों का यह मत है कि कल्पना शब्द का हिंदी में पहले पहल प्रयोग ठाकुर जगमोहन सिंह ने किया है। उनसे पूर्व कल्पना शब्द का प्रयोग अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता है।
इसी तरह अंग्रेजी के प्रमुख कवि बायरन की सुप्रसिद्ध कविता ‘प्रिजनर ऑफ शिलन’ का हिंदी अनुवाद भी उन्होंने किया है। ठाकुर जगमोहन सिंह हिंदी के ऐसे पहले साहित्यकार हैं, जिन्होंने किसी अंग्रेजी कविता का हिंदी में अनुवाद किया। उनसे पूर्व तब तक हिंदी के किसी अन्य साहित्यकार ने अंग्रेजी से हिंदी में कोई अनुवाद नहीं किया था।
(शेष अगले हफ्ते)

 

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