विचार / लेख
ध्रुव गुप्त
दुनिया के कई देशों के जासूस स्पाईवेयर एक बार फिर चर्चा में है। एक ख़बर के मुताबिक अभी सौ से ज्यादा स्पाईवेयर लोगों के मोबाइल फोन और लैपटॉप पर टहल रहे हैं। ये स्वयं अदृश्य रहकर भी सबको देख-सुन लेते हैं। राजनेताओं को भी,पत्रकारों को भी, उद्योगपतियों को भी, न्यायमूर्तियों को भी, सैन्य अधिकारियों को भी, अफसरों को भी। यहां तक कि लोगों के बेडरूम को भी। ईश्वर के बाद ये आज के सबसे बड़े अंतर्यामी हैं। ये जिनके मोबाइल में घुसे उन्हें लाइम लाइट में ला दिया। हे स्पाईवेयर, तेरी सर्वदर्शी, सर्वभेदी आंखों से हम से फेसबुकिए कवि कैसे ओझल रह गए अब तक ? तू कभी हम बेचारों को भी देख-सुन जिनको अब कोई नहीं देखता-सुनता। हमें भी ख़बर में ला जिनकी ख़बर अब कोई नहीं लेता। तू देख कि हम में ऐसे शूरवीर भी हैं जो बिना किसी प्रतिदान की आशा के दिन में दस-दस, बीस-बीस कविताएं लिख और छाप रहे हैं। ऐसे-ऐसे शब्द और शिल्प गढ़ रहे हैं जिन्हें समझने समझाने के लिए किसी दूसरे ग्रह से विशेषज्ञों को लाने की जरुरत महसूस होने लगी है। ऐसे भी है जिन्हें गली-मुहल्ले से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के दस-बीस सम्मान और प्रशस्ति पत्र हर रोज़ हासिल होते हैं। बावज़ूद इसके हम सब डिप्रेशन में क्यों हैं प्रभु? आ, कभी हमारी भी जासूसी कर ! हमें भी चर्चा में ला दे ! हमारे मोबाइल में घुसकर तू दुनिया को बता कि हम इतने भी गए बीते नहीं, हमारी भी कुछ औकात है।
हमें पता है कि हमारी जासूसी से न तो कोई सरकार बनने या गिरने वाली है और न हमें ब्लैकमेल करने से किसी को फूटी कौड़ी ही नसीब होगी, लेकिन अपनी कविताओं से हम तुम्हारे शत्रुओं को पगला देने की काबिलियत तो रखते ही हैं। तू चाहे तो हमारी कविताओं को अपने दुश्मनों तक निर्बाध पहुंचाकर उन्हें बिना बम-बारूद के भी नेस्तनाबूद कर दे सकता है। तो आ प्रभु, हमको भी अब लिफ्ट करा दे!