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![इसराइल के खिलाफ लाए गए जनसंहार मामले में आईसीजे के कहे के मायने? इसराइल के खिलाफ लाए गए जनसंहार मामले में आईसीजे के कहे के मायने?](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/17161381342d197e0-151f-11ef-a5f9-c9e97f2e93cf.jpg)
-डोमिनिक कास्सियानी
संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने इसराइल के खिलाफ लाए गए दक्षिण अफ्रीका के मुकदमे की सुनवाई शुरू कर दी है।
दक्षिण अफ्रीका ने इसराइल पर गाजा में जनसंहार करने का आरोप लगाया है और कोर्ट से गुजारिश की है कि वो रफाह में इसराइल की सैन्य कार्रवाई को तुरंत रोकने का आदेश दे।
दक्षिण अफ्रीका के लाए इस मामले पर इसराइल ने ‘पूरी तरह से बेबुनियाद’ और ‘नैतिक रूप से विरोध में’ बताया था। इसराइल ने इस मामले में शुक्रवार को अपना जवाब दिया है।
दक्षिण अफ्रीका के इसराइल के खिलाफ मामला लेकर कोर्ट जाने के बाद से ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के शब्दों की समीक्षा की जा रही है। ये चर्चा उसके अंतरिम फैसले में इस्तेमाल किए गए शब्द ‘प्लॉजिबल’ को लेकर हो रही है।
इसी साल जनवरी में कोर्ट ने इस मामले में अपना अंतरिम फैसला सुनाया था। इस फैसले के एक पैरा ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इस पैरा में लिखा गया था, ‘कोर्ट की राय में, पेश किए गए तथ्य और परिस्थितियां। ये निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं कि दक्षिण अफ्रीका ने जिन अधिकारों का दावा किया गया है और जिसके लिए वो सुरक्षा की मांग कर रही है उनमें से कुछ प्लॉजिबल हैं।’
प्लॉजिबल का अर्थ
प्लॉजिबल का अर्थ है विश्वसनीय या मुमकिन।
कई लोगों ने कोर्ट के इस फैसले का ये अर्थ समझा कि कोर्ट ने ये निष्कर्ष निकाला है कि इसराइल गाजा में जनसंहार कर रहा है ये दावा ‘विश्वसनीय या मुमकिन’ है। फैसले की ये समीक्षा करने वालों में कानूनी मामलों के कई जानकार भी शामिल थे।
कोर्ट के फैसले की ये समीक्षा तेजी से फैल गई।
संयुक्त राष्ट्र की प्रेस विज्ञप्ति, कैंपेन समूहों के जारी किए बयान के साथ साथ बीबीसी और अन्य कई मीडिया संस्थानों में कोर्ट के फैसले की इसी समीक्षा को जगह दी गई।
हालांकि अप्रैल में अंतरिम फ़ैसले के वक्त आईसीजे की अध्यक्ष रही योआन डोनोह्वे ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि कोर्ट ने जो फैसला दिया उसका ये मतलब नहीं था।
उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले का उद्देश्य ये घोषित करना था कि दक्षिण अफ्रीका को इसराइल के खिाफ मामला लाने का अधिकार है और फिलस्तीनियों को ‘जनसंहार से सुरक्षा का विश्वसनीय अधिकार’ है - खासकर वो अधिकार जिन्हें अपूरणीय क्षति पहुंचने का जोखिम है।
जेनोसाइड कन्वेन्शन
जजों ने इस बात पर जोर दिया था कि उन्हें अभी ये कहने की जरूरत नहीं है कि जनसंहार हुआ है या नहीं बल्कि कोर्ट ने ये निष्कर्ष निकाला कि दक्षिण अफ्रीका ने जिन कदमों के बारे में शिकायत की है उनमें से कुछ, अगर साबित हो जाते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र जनसंहार समझौते (जेनोसाइड कन्वेन्शन) के तहत आ सकते हैं।
पहले एक नजर इस पर डालते हैं कि इस मामले की पृष्ठभूमि क्या है और इसमें कानूनी विवाद कैसे हुआ।
आईसीजे संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत है जो अंतरराष्ट्रीय कानून से जुड़े मामलों में सरकारों के बीच विवाद में फैसले देती है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य स्वत: आईसीजे के सदस्य हैं।
इसका मतलब जेनोसाइड कन्वेन्शन उन कानूनों से है जिन पर मुल्कों की सहमति बन गई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फिर से बड़े पैमाने पर जनसंहार न हो इसके लिए जेनोसाइड कन्वेन्शन बनाया गया था।
बीते साल दिसंबर में दक्षिण अफ्रीका ने आईसीजे के सामने अपनी दलील दी थी और ये साबित करने की कोशिश की थी कि उसकी राय में जिस तरह इसराइल गाजा में हमास के खिाफ युद्ध कर रहा है, वो जनसंहार के बराबर है।
उसका आरोप था कि जिस तरह इसराइल युद्ध को अंजाम दे रहा है उसकी ‘प्रकृति जनसंहार के समान है’ क्योंकि दक्षिण अफ्ऱीका के लाए केस के अनुसार इसके पीछे उसका इरादा ‘गाजा में फिलस्तीनियों को तबाह करने’ की है।
इसराइल ने इन आरापों को खारिज कर दिया था। उसका कहना था कि ये पूरा मामला जो ज़मीन पर हो रहा है उसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
दक्षिण अफ्रीका को कोर्ट के समक्ष इसराइल के कथित जनसंहार करने को लेकर स्पष्ट और ठोस सबूत पेश करने होंगे।
वहीं इसराइल को ये अधिकार होगा कि वो कोर्ट में किए गए दावों की एक के बाद एक पड़ताल करे और ये जिरह करे कि शहरी गलियों में हो रहे इस युद्ध में उसकी कार्रवाई हमास से आत्मरक्षा के लिए वैध कदम हैं। कई मुल्कों ने हमास को आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है। इस पूरे मामले को तैयार करने और इसमें जिरह करने में कई सालों का वक्त लग सकता है।
आईसीजे से जुड़ी शब्दावली
इसलिए दक्षिण अफ्ऱीका ने आईसीजे में जजों की बेंच से गुजारिश की कि वो इस मामले में पहले ‘अतंरिम फैसला’ दे।
आईसीजे से जुड़ी शब्दावली में इसका मतलब है स्थिति को यथास्थिति में रोक देने के लिए कोर्ट की तरफ से आदेश ताकि कोर्ट का अंतिम आदेश आने से पहले किसी पक्ष को और नुकसान न पहुंचे।
दक्षिण अफ्रीका ने कोर्ट से गुज़ारिश की थी कि वो ‘फिलस्तीनी लोगों के अधिकारों को गंभीर और अपूरणीय क्षति होने से बचाने के लिए’ इसराइल को कदम उठाने के लिए आदेश दे।
कोर्ट में दो दिन तक दोनों मुल्कों के वकील ये जिरह करते रहे कि गाजा में रह रहे फिलस्तीनियों के अधिकार क्या हैं जिनकी कोर्ट को रक्षा करनी चाहिए। कोर्ट के 17 जजों ने (जिनमें से कुछ फैसले से सहमत नहीं थे) इस मामले में 26 जनवरी को अंतरिम फैसला दिया था।
आईसीजे ने कहा, ‘जिस वक्त मामला इस स्टेज पर हो तब कोर्ट से ये गुजारिश नहीं की जाती कि वो निश्चित रूप से ये फैसला दे कि दक्षिण अफ्रीका जिन अधिकारों की रक्षा की बात कर रहे है वो वाकई अस्तित्व में हैं।’
‘कोर्ट को फिलहाल केवल ये तय करना था कि जिन अधिकारों की रक्षा के लिए दक्षिण अफ्ऱीका ने दावा किया है और जिनकी रक्षा के लिए उसने कोर्ट में गुहार लगाई है, वो मुमकिन है।’
यूके लॉयर्स फॉर इसराइल की चिट्ठी
कोर्ट की राय में, पेश किए गए तथ्य और परिस्थितियां। ये निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं कि दक्षिण अफ्रीका ने जिन अधिकारों का दावा किया गया है और जिसके लिए वो सुरक्षा की मांग कर रही है उनमें से कुछ प्लॉजिबल हैं।’
ये तय करने के बाद कि जेनोसाइड कन्वेन्शन के तहत गाजा में रह रहे फिलस्तीनियों के विश्वसनीय अधिकार हैं, कोर्ट ने ये निष्कर्ष निकाला कि इन्हें अपूरणीय क्षति पहुंचने का जोखिम था और इसराइल को तब तक जनसंहार न हो, इसके लिए कदम उठाने चाहिए जब तक उन गंभीर मुद्दों पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
कोर्ट ने अब तक ये फ़ैसला नहीं दिया है कि इसराइल ने जनसंहार किया है या नहीं- लेकिन क्या कोर्ट ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया उसका ये मतलब है कि उसे भरोसा है कि ये हो सकता है?
और यहीं से ये विवाद शुरू हुआ कि अदालत का असल में मतलब क्या था।
अप्रैल में, 600 ब्रितानी वकीलों में जिनमें सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व जज भी शामिल हैं, ने ब्रितानी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसराइल के लिए हथियारों की बिक्री रोकने की मांग की। उन्होंने ‘नरसंहार के संभावित खतरे’ का संदर्भ दिया था।
इसके जवाब में यूके लॉयर्स फॉर इसराइल (यूकेएलएफआई) ने एक पत्र लिखा। 1300 सदस्यों वाले इस समूह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने सिर्फ ये फैसला दिया है कि गाजा के फिलीस्तीनियों के पास नरसंहार से सुरक्षित किए जाने का तर्कसंगत अधिकार हैं- दूसरे शब्दों में कहे तो, अदालत एक जटिल और कुछ हद तक अमूर्त कानूनी तर्क से निपट रही थी।
ये विवाद और लिखे गए पत्रों और व्याख्याओं में बढ़ता रहा।
पहले समूह में शामिल बहुत से लोगों ने यूकेएलएफआई की व्याख़्या को ‘शब्दों से खेलना’ बताया। उन्होंने तर्क दिया कि अदालत, सिर्फ एक अकादमिक प्रश्न को लेकर ही चिंतित नहीं रह सकती है, क्योंकि इस मामले में और भी बहुत कुछ दांव पर लगा है। और, अन्य जगहों की तरह ही, ये बहस इसराइल को हथियार निर्यात करने को लेकर चर्चा कर रही ब्रितानी संसदीय समिति के समक्ष क़ानूनी लड़ाई में बदल गई।
ब्रितानी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज लॉर्ड सम्पशियन ने संसदीय समिति से कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है कि, (यूकेएलएफआई के पत्र में) ये सुझाव दिया गया है कि आईसीजे जो कुछ भी कर रहा है वो सिर्फ ये स्वीकार कर रहा है कि, अमूर्त क़ानून के रूप में गाजा में रहने वालों के पास ये अधिकार है कि उनका नरसंहार ना किया जाए। मैं ये कहना चाहूंगा कि मैं उस प्रस्ताव को मुश्किल से बहस के योग्य मानता हूं।’
इसके जवाब में यूके लॉयर्स फॉर इसराइल की तरफ से नतासा हाउसड्रॉफ ने कहा, ‘ऐसा नहीं है।’ उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं सम्मान के साथ ये कहना चाहती हूं कि तर्कसंगत ख़तरे को इस तरह देखना कि इसराइल गज़़ा में नरसंहार कर रहा है, कोर्ट के अस्पष्ट बयान की अवहेलना है।’ इसके एक दिन बाद, आईसीजे से रिटायर हो चुकीं जस्टिस योआन डोनोह्वे ने बीबीसी के शो हार्डटॉक ने इस बहस को ख़त्म करने की कोशिश करते हुए ये समझाने की कोशिश की कि अदालत ने क्या किया है।
पूर्व जज ने कहा, ‘अदालत ने ये तय नहीं किया- और ये वो बात नहीं है जो आमतौर पर मीडिया में कही जा रही है और जिसे मैं सही कर रहा हूंज्। कि नरसंहार का दावा तर्कसंकत है।’
‘आदेश में इस बात पर जरूर जोर दिया गया है कि नरसंहार से सुरक्षित होने के फिलीस्तीनियों के अधिकार को अपूरणीय क्षति पहुंचने का खतरा था। लेकिन आमतौर पर जो इसके मायने दिख रहे हैं कि, नरसंहार का तर्कसंगत खतरा है, अदालत ने ऐसा तय नहीं किया था।’ या इस तरह के भयावह नुकसान का कोई सबूत है, अदालत यह तय करने से बहुत दूर है। (bbc.com/hindi)