विचार / लेख

पुणे हादसे से जरूरी सबक
24-May-2024 2:21 PM
पुणे हादसे से जरूरी सबक

डॉ. आर.के. पालीवाल

पुणे में बिल्डर के नाबालिग बिगड़ैल बेटे ने अपने पिता की ढाई करोड़ की कार से शराब के नशे में दो युवा इंजीनियर को कुचल दिया। इस हाई प्रोफाइल मामले में महाराष्ट्र पुलिस और महाराष्ट्र जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने जिस तरह से संवेदनहीनता दिखाकर मामले पर लीपापोती की उसकी सोशल मीडिया सहित चौतरफा भत्र्सना होने पर इस मामले को दुबारा खोलकर कड़ी कार्यवाही की जा रही है। यह मामला भी हमारे देश की व्यवस्था को जंग लगने का सटीक उदाहरण है जहां सी सी टी वी फुटेज में शराब पीते दिखते बिल्डर के बिगड़ैल बेटे को मेडिकल में क्लीन चिट मिल गई और बालिग होने की दहलीज पर खड़े सत्रह साल आठ महीने के इस बिगड़ैल किशोर को नाबालिग कहकर तुरंत रिहा कर दिया गया और सजा के तौर पर कुछ दिन ट्रैफिक पुलिस की सहायता करने और सडक़ दुर्घटना पर तीन सौ शब्दों का निबंध लिखने को कहा गया।

इस सजा का चारों तरफ मजाक बनने पर महाराष्ट्र सरकार के उप मुख्यमंत्री के संज्ञान लेने पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने अपने फैसले पर पुनर्विचार कर दो युवा इंजीनियर की मौत के जिम्मेदार किशोर को बाल गृह में भेजा है और पुलिस ने इसके पिता के साथ साथ रेस्टोरेंट में नाबालिगों को शराब परोसने वाले मालिक और मेनेजर को गिरफ्तार किया है। यदि चुनाव का मौसम नहीं होता और चौतरफा निंदा से जगी सरकार का दखल नहीं होता तो मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले दो युवा इंजीनियर की मौत के लिए जिम्मेदार इस धनाढ्य परिवार का बाल भी बांका नहीं होता।

हमारे देश में आर्थिक उदारीकरण और काले धन एवम भ्रष्टाचार के चलते नव धनाढ्य बिल्डरों, दलालों, नेताओं और अफसरों की संख्या तेजी से बढ़ी है और उसी अनुपात में इन परिवारों में बिगड़ैल औलादों की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ी है और भविष्य में इसके और भी तेजी से बढऩे की पूरी संभावनाएं हैं। कुछ साल पहले दिल्ली में उद्योगपति की बिगडैल औलाद ने ऐसा ही कांड किया था।सलमान खान का फुटपाथ पर सो रहे गरीबों को कुचलने का किस्सा भी हम सबको याद है । इसी तरह मुंबई में अंबानी परिवार की गाड़ी से भी एक हादसा होने की दबी सहमी खबरें सामने आई थी। इन सभी मामलों में रसूख और धन के बल पर कानून को ठेंगा दिखा दिया गया था। इस मामले में भी ऐसा ही होना था लेकिन सशक्त सोशल मीडिया के कारण इस मामले में ढुलमुल शुरुआत के बाद कड़ी कार्यवाही हो रही है। यह कहना तो संभव नहीं कि कोर्ट कचहरी में इस मामले का हस्र सलमान खान की तरह होगा या सही अर्थ में न्याय होगा।

हमारे समाज में आजकल मोटा-मोटी तीन वर्ग बन गए हैं। एक नव धनाढ्य रईसों का वह समूह जिसने पिछले दो दशक में येन-केन प्रकारेण राजनीति, ठेकेदारी, बिल्डर, दलाली, अफसरी या फि़ल्म और क्रिकेट जैसे खेलों से अथाह धन संपत्ति अर्जित की है और अपने बच्चों को दारू, ड्रग्स और अय्याशी के क्लबों, होटलों और पब एवं बारों में आवारागर्दी करने के लिए खुली छूट दे रखी है। दूसरा वर्ग उन लोगों का है जो इंजीनियरिंग, मेडिकल या एम बी ए आदि की पढ़ाई कर पांच दस लाख से 25-30 लाख सालाना के पेकेज पाकर आराम से अपनी जिंदगी जी रहे हैं। तीसरा वर्ग उन लोगों का है जो पहले और दूसरे वर्ग के लोगों की सेवा में ड्राइवर, माली, घरेलू सहायक सहायिकाओं और गार्ड आदि के काम करते हैं। दूसरा और तीसरा वर्ग पहले वर्ग के धन और रसूख के सामने कीड़े-मकोड़े के समान है। आजकल जिस तरह से पहले वर्ग के किशोर संगीन अपराधों में लिप्त हो रहे हैं उससे किशोरों को भी तीन वर्ग में बांटने की आवश्यकता महसूस हो रही है। एक बारह साल से कम उम्र के, दूसरे बारह से पंद्रह और तीसरे पन्द्रह से अ_ारह वर्ष के किशोर। पन्द्रह से अठारह साल के किशोर इंटरनेट ने व्यस्क बना दिए हैं इसलिए उनके संगीन अपराधों को बच्चा समझ कर माफ करना समाज हित में नहीं है।

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