विचार / लेख
SANJAY DAS/BBC
प्रभाकर मणि तिवारी
‘मैं अगले साल राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारियों में जुटा था। लेकिन अदालत के फ़ैसले ने मेरे सपने पर पानी फेर दिया है। अब सामान्य वर्ग में नौकरी मिलनी तो मुश्किल है। अगर सरकार ने कुछ नहीं किया तो सरकारी नौकरी का मेरा सपना एक सपना बन कर ही रह जाएगा।’
यह कहना है 25 वर्षीय मोहम्मद शफ़ीकुल्ला का। तीन साल पहले ग्रेजुएशन करने के बाद से ही वो सरकारी नौकरी की तैयारी में जुटे हैं।
यह स्थिति अकेले शफ़ीकुल्ला की ही नहीं है। वर्ष 2010 के बाद जारी अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के तमाम सर्टिफिकेट रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के बाद उनकी तरह के हज़ारों युवकों को लग रहा है कि उनका भविष्य अनिश्चित हो गया है।
हालांकि, अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा है कि इससे उन लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा जो आरक्षण का लाभ उठा कर सरकारी नौकरी कर रहे हैं या फिर जिनका चयन हो चुका है।
लेकिन अब ऐसे लोगों की चिंता यह है कि उनको प्रमोशन में आगे शायद आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा।
दक्षिण 24-परगना जिले में बांगड़ इलाके में रहने अब्दुल मसूद पारिवारिक स्थिति के कारण ज्यादा पढ़ नहीं सके। लेकिन वो खेती के जरिए अपने छोटे भाई को पढ़ा रहे हैं।
मसूद कहते हैं, ‘मैंने सोचा था कि पढ़-लिख कर भाई को कोई सरकारी नौकरी मिल जाएगी। तब परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। खेती अब फायदे का सौदा नहीं रही। लेकिन अब क्या होगा, समझ में नहीं आ रहा है।’
वहीं कुछ लोग अदालत के इस फ़ैसले का समर्थन भी कर रहे हैं।
एक शिक्षक प्रदीप्त चंद कहते हैं, ‘आरक्षण की वजह से मुझे नौकरी पाने में कई साल लग गए। अब आज़ादी के इतने साल बाद आरक्षण बेमानी है। पिछड़े तबके के लोगों को सरकारी योजनाओं के जरिए बेहतर तरीके से मदद दी जा सकती है। अदालत का फ़ैसला सही है। आरक्षण खत्म होने पर सबके लिए लेवल प्लेइंग फील्ड बनेगा यानी सबके लिए समान मौके रहेंगे।’
प्रदीप्त उन शिक्षकों में शामिल हैं जिनकी नौकरी हाईकोर्ट ने बीते महीने रद्द कर दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उस फैसले पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी है।
साल 2016 में राज्य में हुई शिक्षक भर्तियों को हाईकोर्ट ने अवैध कऱार देते हुए रद्द कर दिया था।
प्रदीप्त कहते हैं कि उन्होंने अपनी प्रतिभा के बूते नौकरी हासिल की थी, आरक्षण के भरोसे नहीं।
इस मुद्दे पर राजनीतिक विवाद भी लगातार तेज हो रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मुद्दे पर काफी आक्रामक नजर आ रही हैं। भाजपा ने फ़ैसले का स्वागत किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो इस फ़ैसले को विपक्षी गठबंधन के मुंह पर करारा तमाचा बताया है।
क्या है पूरा मामला?
इसी सप्ताह बुधवार को कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में साल 2010 के बाद से जारी अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के तहत सारे सर्टिफिक़ेट रद्द कर दिए।
इसकी वजह से पांच लाख लोगों के ओबीसी सर्टिफिक़ेट रद्द हो गए। इनमें से ज़्यादातर लोग मुसलमान हैं।
इस लिस्ट में 77 कैटेगरी के तहत ओबीसी सर्टिफिक़ेट बांटे गए थे। ज़्यादातर कैटेगरी मुस्लिम समुदाय से हैं।
दिलचस्प बात ये है कि राज्य में मुसलमानों को ओबीसी आरक्षण के दायरे में वामपंथी सरकार लेकर आई थी। फिर 2011 में तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई।
राज्य सरकार की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा, ‘ओबीसी के तहत 77 नई कैटेगरी जोड़ी गईं और ऐसा सिफऱ् राजनीतिक फ़ायदे के लिए किया गया। ऐसा करना ना सिफऱ् संविधान का उल्लंघन है बल्कि मुस्लिम समुदाय का भी अपमान है।’
हलांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि भले ही ये ओबीसी सर्टिफिक़ेट रद्द कर दिए गए हों लेकिन इनके तहत जो लोग किसी शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश हासिल कर चुके हैं या नौकरी हासिल कर चुके हैं या दूसरे लाभ ले चुके हैं, उन पर इसका असर नहीं पड़ेगा।
अदालत ने राज्य सरकार के पिछड़ी जाति क़ानून 2012 को रद्द कर दिया। इस क़ानून का सेक्शन 16, सरकार को पिछड़ी जातियों से संबंधित अनुसूची में बदलाव की इजाज़त देता है।
इस नियम के सहारे राज्य सरकार ने अन्य पिछड़ी जातियों में 37 नई श्रेणियां जोड़ दीं।
हलांकि अदालत ने ये भी कहा कि वो 2010 से पहले ओबीसी के तहत दर्ज की गई 66 कैटेगरी के मामले में दख़ल नहीं देगी। अदालत ने कहा, ‘इसकी वजह ये है कि अदालत में दाख़िल जनहित याचिका में 2010 के पहले ओबीसी के तहत दर्ज की गई इन श्रेणियों को चुनौती नहीं दी गई थी।’
अदालत के इस फ़ैसले की आलोचना करते हुए राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों से आरक्षण छीनना चाहती है।
उन्होंने कहा, ‘मैं यह फैसला नहीं मानती। राज्य में ओबीसी तबके के लोगों को आरक्षण मिलता रहेगा। मैं आखिर तक यह लड़ाई लड़ूंगी। सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।’
उन्होंने इसे भाजपा का फैसला बताते हुए कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी आग से खेल रहे हैं। पिछड़े तबके के लोगों का आरक्षण रद्द नहीं किया जा सकता।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अदालत के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा, ‘तृणमूल और कांग्रेस दोनों ही तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं जिस पर लगाम लगाना ज़रूरी है।’
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि ममता बनर्जी सरकार ने किसी तरह के सर्वेक्षण के बिना ही वोट बैंक की राजनीति के तहत अन्य पिछड़ी जातियों के लिए तय आरक्षण मुस्लिमों को दे दिया था।
दूसरी ओर वामपंथी दलों ने तृणमूल कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा, ‘हमने पिछड़ी जातियों के विकास के लिए जो क़दम उठाए तृणमूल कांग्रेस ने उनका दुरुपयोग किया। तृणमूल के सत्ता में रहने के दौरान बिना नियमों का पालन किए ओबीसी सर्टिफिक़ेट जारी किए गए। सिफऱ् वोटबैंक की राजनीति की ख़ातिर ऐसा किया गया।’
सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने कहा, ‘वाममोर्चा सरकार ने रंगनाथ आयोग की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी का आरक्षण सात से बढ़ा कर 17 फीसदी किया था। अल्पसंख्यकों में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों को पढ़ाई और नौकरी में आरक्षण देने के लिए ऐसा किया गया था। लेकिन ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के बाद अपने सियासी हित के लिए मनमाने तरीके से ओबीसी सर्टिफिकेट बांटे थे।’
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राज्य की सियासत पर क्या होगा असर?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने भी इस मुद्दे पर ममता सरकार की खिंचाई की है। उन्होंने पुरुलिया की एक चुनावी रैली में कहा, ‘तृणमूल कांग्रेस सरकार की उदासीनता के कारण ही अदालत ने पांच लाख लोगों का ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द कर दिया है। इस सरकार ने ओबीसी वर्ग के लाखों लोगों का भविष्य अंधेरे में धकेल दिया है।’
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव के बीच में आए इस फैसले ने तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इससे पहले बीते महीने 26 हजार शिक्षकों की भर्ती रद्द करने के फैसले से भी उसे झटका लगा था। उस पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक जरूर लगा दी। लेकिन उन हजारों लोगों का क्या होगा, यह तय नहीं है।
राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर उत्पल सेनगुप्ता कहते हैं, ‘अदालत का यह फैसला तृणमूल कांग्रेस सरकार के लिए एक झटका है। इससे उसका सियासी समीकरण में गड़बड़ी हो सकती है। शायद यही वजह है कि ममता इस मुद्दे पर काफी आक्रामक नजर आ रही हैं।’
चार दशकों से भी ज्यादा समय तक राज्य के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारिता करने वाले तापस मुखर्जी कहते हैं, ‘राज्य में अभी दो अहम चरणों का मतदान बाकी है। उन इलाकों में कई सीटों पर मुस्लिम और दलित वोटर निर्णायक हैं। ऐसे ज्यादातर लोग ममता बनर्जी सरकार की बनाई ओबीसी सूची में शामिल थे। अब उनका आरक्षण रद्द करने के फैसले का क्या असर होगा, यह पूरी तरह समझना तो मुश्किल है। लेकिन इससे तृणमूल कांग्रेस की दिक्कत बढ़ सकती है।’ (bbc.com/hindi)