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श्रीनगर, बारामूला, अनंतनाग-राजौरी में रिकॉर्ड वोटिंग के क्या हैं मायने?
27-May-2024 7:29 PM
श्रीनगर, बारामूला, अनंतनाग-राजौरी  में रिकॉर्ड वोटिंग के क्या हैं मायने?

कुलगाम में वोट देने के बाद यास्मीन ग़नी photo : MAJID JAHANGIR

-माजिद जहांगीर
भारत-प्रशासित कश्मीर की श्रीनगर और बारामूला लोकसभा सीट पर रिकॉर्ड वोटिंग होने के बाद 25 मई को अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर भी वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। चुनाव अधिकारियों के मुताबिक़ इस सीट पर 53 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया है।

जम्मू- कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी पांडुरंग कोंडबारो पोल ने श्रीनगर में प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि, ‘साल 2014 के चुनाव में 49.58 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया था जबकि साल 1996 में 47.99 प्रतिशत वोट पड़ा था।’

जम्मू-कश्मीर की पांच सीटों पर 2024 के लोकसभा चुनाव में कुल 58 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया है जो कि बीते पैंतीस वर्ष में सबसे ज़्यादा है।

अनंतनाग लोकसभा सीट में दो साल पहले हुए परिसीमन के दौरान जम्मू क्षेत्र के पुँछ और राजौरी के इलाकों को भी शामिल किया गया था। परिसीमन के बाद इस सीट पर शनिवार को पहली बार वोटिंग हुई है।

2019 में इस अनंतनाग लोकसभा सीट पर कुल 8.9 प्रतिशत वोटिंग रिकॉर्ड की गई थी।
पांडुरंग के। पोल ने बताया कि अनंतनाग-राजौरी की इस सीट के अधीन पडऩे वाले कुलगाम और अनंतनाग में वोट का प्रतिशत कम रहा और इन दो जगहों पर 32-33 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया। लेकिन, इसी सीट के सुरनकोट में सबसे अधिक वोटिंग रिकॉर्ड की गई जहाँ 68 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई है।

श्रीनगर और बारामूला लोकसभा सीटों पर 13 और 20 मई को वोट डाले गए थे। 
श्रीनागर लोकसभा सीट पर करीब 38.99 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो बीते तीस वर्षों में अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

इसी तरह बारामूला लोकसभा सीट पर बीते चार दशकों में सबसे ज़्यादा दर्ज किया गया है जो करीब 59 प्रतिशत है।

अनुच्छेद 370 का फैक्टर
शनिवार को अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट जिला अनंतनाग के मटन पोलिंग बूथ पर 65 साल के मतदाता शौकत अहमद गणाई ने बीबीसी के साथ बातचीत में बताया कि उन्होंने कऱीब तीन दशकों से अधिक समय के बाद वोट डाला है।

शौकत अहमद बताते हैं कि 2024 में मत डालने से पहले उन्होंने 1987 में आखिरी बार वोट डाला था। उन्होंने यह भी बताया कि पहली बार उन्होंने वोट डाला था तो उस समय वो बेरोजगार थे और नौकरी पाने की चाहत के साथ उन्होंने वोट दिया था।

उन्होंने बताया, ‘पहली बार वोट देने के बाद करीब पैंतीस वर्षों के बाद वोट दिया है। इतने लंबे समय तक वोट न देने का कारण कुछ डर भी था और कुछ खास दिलचस्पी भी नहीं थी। कश्मीर में अफरा-तफरी का माहौल भी था।’

‘अब महसूस होता है कि कुछ हालात भी बेहतर हो रहे हैं और एक समाज के लिए वोट देना अच्छी बात है। वोट देने का मकसद अब ये है कि पढ़े लिखे लोगों को सरकारी नौकरी मिले।’

वो बताते हैं, ‘2019 में आर्टिकल 370 खत्म किया गया। हमारा एक विशेष दर्जा था, जो अब नहीं रहा। हमारी एक क्षेत्रीय पहचान थी, जो अब ़त्म हो गई।’

‘अब हमारे बच्चों को पूरी देश में हर शिक्षा में एक कड़े मुक़ाबले का सामना करना पड़ रहा है। हमारे पास वो संसाधन भी नहीं हैं। इस वजह से आर्टिकल 370 का हटना भी चुनाव में वोट देने का एक मुद्दा है।’

इस पोलिंग बूथ पर सुबह दस बजे तक लोगों ने धीरे-धीरे आना शुरू किया जिसके बाद लोगों की संख्या बढ़ती गई। वहीं श्रीनगर लोकसभा सीट पर वोट डालने वाले शाबिर अहमद ने बताया कि उन्होंने इस चुनाव में पहली बार वोट दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि जिस तरह से कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया गया, उनका वोट उस फैसले के खिलाफ था।

शाबिर का कहना था कि वो दस साल पहले फस्र्ट टाइम वोटर बन गए थे लेकिन वोट उन्होंने आज पहली बार डाला है।

‘जीवन में पहली बार डाला वोट’
पांच अगस्त 2019 में जम्मू -कश्मीर से केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 हटा कर यहां का विशेष दर्जा खत्म कर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया। इसके बाद केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में पहली बार कोई बड़ा चुनाव हो रहा है।

बारामूला सीट पर मतदान करने वाले पचास वर्ष के डॉक्टर इकबाल शाह ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में पहली बार अपने मत का इस्तेमाल किया है। शाह ने बताया कि इस बार मत का इस्तेमाल करने का कारण ये था कि उन्हें जमीन पर कुछ तबदीली नजर आ रही है।

वो कहते हैं, ‘बीते कुछ वर्षों में सबसे बड़ी तब्दीली ये देखने को मिली कि सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारी काम-काज को ढंग से अंजाम देते नजर आ रहे हैं। दूसरी बात ये महसूस हुई कि बीते कुछ वर्षों से विकास के काम जमीन पर नजर आने लगे।’

‘पहले ये होता था कि वो वोट मांगने आते थे और सडक़ देने का वादा करते थे, वो कभी फिर सडक़ भी नहीं देते थे। मैंने उसको वोट दिया, जो मेरे पास वोट मांगने भी नहीं आया।’

‘बीते पांच वर्षों में सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बहुत काम किया और अभी बहुत कुछ करना बाकी है।आम लोगों के अभी दो ही मसले हैं। एक मसला भ्रष्टाचार है और दूसरा विकास है।’

यह पूछने पर कि क्या अगर बीजेपी का उमीदवार मैदान में होता, तो क्या फिर आप उन्हीं को वोट देते, तो उनका जवाब था, ‘गुड गवर्नेंस में किसी पार्टी का नाम नहीं लेना चाहिए, गुड गवर्नेंस वाली पार्टियां भी वोट लेने का हक रखती हैं।’

अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट के जिला कुलगाम के दमहाल पोलिंग बूथ पर वोट देने के बाद यास्मीन गनी ने बातचीत में बताया कि वो हमेशा से वोट डालती रही हैं। उनका कहना था कि इस बार उन्होंने बीजेपी को कश्मीर से दूर रखने के लिए वोट दिया है।
जम्मू-कश्मीर पूरे भारत में एकमात्र मुस्लिम बहुल केंद्र शासित प्रदेश है। साल 1989 में जब कश्मीर में चरमपंथ का दौर शुरू हुआ तो तभी से कश्मीर में अलगावादी या चरमपंथी संगठन, आम लोगों को चुनाव से दूर रहने को कहती रही हैं।

हालांकि 2024 के चुनाव में पहली बार कश्मीर में किसी अलगावादी या चरमपंथी संगठन ने लोगों से चुनाव बहिष्कार की अपील नहीं की। इससे ये कहा जा सकता है कि चुनाव का विरोध करने वाली कोई भी आवाज किसी भी दिशा में सुनाई नहीं दी।

राजनीतिक सरगर्मी
कश्मीर में चुनाव के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले अलगावादी नेताओं को या तो जेलों में नजरबंद कर दिया गया है और कुछ का निधन हो चुका है।

जम्मू -कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद कश्मीर में एक लंबे समय तक प्रतिबंध लगाए गए और कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।

जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी घरों में कैद करके रखा गया था। इस दौरान जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक एक तरह का सियासी सन्नाटा छाया रहा। 5 अगस्त 2019 के बाद कश्मीर में किसी भी बड़े सियासी प्रदर्शन की ना तो भारतीय सियासी दलों को इजाजत दी जा रही थी और न ही किसी अलगावादी संगठन या नेता को। ऐसे में चुनाव के दौरान कश्मीर में पहली बार लोग और सियासी दल सडक़ों पर चुनावी सरगर्मियों में जुटे नजर आए।

मुख्य रूप से कश्मीर में पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी और जम्मू-कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस चुनाव लड़ रहे हैं।

कश्मीर में इस बार बीजेपी ने अपना कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है।
हालांकि इस बात की चर्चा हो रही है कि बीजेपी अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी और सज्जाद लोन की पीपल्ज कॉन्फ्रेंस का समर्थन कर रही है। दोनों ही दलों को बेजीपी का बहुत करीबी समझा जा रहा है।

कानून व्यवस्था का फैक्टर
कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुलाह बारामूला सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि महबूबा मुफ्ती अनंतनाग-राजौरी से चुनावी मैदान में हैं।

दोनों ही दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी 05 अगस्त 2019 के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों ही दलों ने लोगों से इसी मुद्दे को लेकर वोट भी माँगा है।

इस बार वोटिंग प्रतिशत बढऩे का कारण कश्मीर में कानून एवं व्यवस्था की बेहतर स्थिति को भी माना जा रहा है। श्रीनगर लोकसभा सीट पर कुल चौबीस उम्मीदवार मैदान में थे। इस लोकसभा क्षेत्र के लिए कुल 2,135 पोलिंग बूथ बनाए गए थे।

इसी तरह उतारी कश्मीर की बारामूला सीट पर करीब 59 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया, जो श्रीनगर सीट से करीब 23 ज्यादा था।

पांडुरंग के। पोल के मुताबिक, बारामूला लोकसभा सीट पर 1984 के बाद पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने अपने मत का इस्तेमाल किया है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 1984 में इस सीट पर 61.09 प्रतिशत मतदान रिकॉर्ड किया गया था। वहीं 2019 में इस लोकसभा सीट पर 37.41 मत रिकॉर्ड किया गया था।

रिकॉर्ड वोटिंग के कारण
विश्लेषक कहते हैं कि कश्मीर में इस बार जिस तरह से लोगों ने बड़े पैमाने पर मत का इस्तेमाल किया है, उसके कई कारण रहे हैं।

कश्मीर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर नूर अहमद बाबा कहते हैं कि पांच अगस्त 2019 के बाद कश्मीर में राजनीति का प्रसंग ही बदल गया है।
वो बताते हैं, ‘एक तो कश्मीर में अलगावाद राजनीतिक नक्शे से गायब है। दूसरी बात ये है कि कई वर्षों के बाद कश्मीर में किसी बड़े चुनाव में लोगों को अपनी राय सामने रखने का मौका मिला है।’

‘लोगों की चुनाव में भारी भागीदारी से ये भी साबित हो रहा है कि यहां की जनता की लोकतंत्र में दिलचस्पी है। लेकिन, लोगों के वोट देने के पीछे क्या कारण रहा, उसकी पूरी जानकारी चार जून को चुनाव नतीजे सामने आने के बाद ही किया जा सकता है कि लोगों ने किस मुद्दे को लेकर वोट दिया है?’

बाबा का कहना था, ‘अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के उमीदवार जीत जाते हैं तो फिर ये भी साफ होगा कि लोग 05 अगस्त 2019 के फैसले के साथ नहीं हैं। अगर अपनी पार्टी या पीपल्ज पार्टी को लोगों का ज़्यादा वोट मिला तो ये समझा जाएगा कि आर्टिकल 370 के हटाने के फ़ैसले को लोगों की हरी झंडी मिल गई है।’ वहीं कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक तारिक बट कहते हैं कि इस बार लोगों का बड़ी संख्या में वोट देने के दो खास कारण हैं। उनका कहना था कि एक तो अलगावादी बहिष्कार का कोई भी फैक्टर नहीं था और दूसरा कारण आर्टिकल 370 को लेकर लोगों में अभी तक काफी गम और गुस्सा है।

अपनी आवाज संसद में भेजने की चाहत
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने 14 मई 2024 को समाचार एजेंसी एएनआई के एक इंटरव्यू में बताया कि कश्मीर में वोटिंग का प्रतिशत जिस तरह से इस बार बढ़ गया है वो आर्टिकल 370 को खत्म करने की कामयाबी को दर्शाता है।

नूर अहमद बाबा गृहमंत्री अमित शाह ने इस दावे पर बताते हैं कि, ‘वो तो ऐसा कहेंगे ही क्योंकि आर्टिकल हटाने के पीछे भी वही लोग हैं। सारी तस्वीर चुनाव के बाद स्पष्ट हो जाएगी।’

दरअसल कश्मीर में बीते पांच वर्षों में पथरबाज़ी की घटनाएँ थमी हैं, हड़ताल का आह्वान अब कोई नहीं करता और हिंसा भी कुछ हद तक कम हो गई है।

हालांकि समय-समय पर इस दौरान टार्गेटेड किलिंग्स की घटनाएं होती रही हैं। इन टार्गेटेड किल्लिंग्स में खासकर कश्मीरी पंडित और प्रवासी मजदूर मारे गए हैं। साल 2019 के बाद भी टार्गेटेड किलिंग्स होती रही हैं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माक्र्सवादी) नेता और पूर्व विधायक मोहम्मद यूसफ तारिगामी कश्मीर में लोगों का मतदान देने की भारी वजह ये मानते हैं कि लोग अपनी चिंताओं को वोट के माध्यम से समाधान चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को अब समझ आ गया है कि वोट के बगैर अब उनके पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

वहीं पीडीपी के प्रवक्ता मोहित भान बताते हैं, ‘पांच अगस्त के बाद ये बताया जा रहा था कि क्षेत्रीय सियासी दलों की अब कोई अहमियत नहीं है। लेकिन ये कश्मीर के क्षेत्रीय सियासी दल हैं, जिन्होंने लोगों को बड़ी संख्या में बाहर निकलने में अहम किरदार निभाया है।’

‘दूसरी बात ये कि, लोगों की जिस आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही थी तो उस आवाज को संसद में भेजने के लिए लोगों ने वोट दिया है।’

कश्मीर में बीजेपी के प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर बड़ी संख्या में लोगों के मतदान को कश्मीर में हिंसा के दौर का अंत बताते हैं और लोग वोट देने को सही रास्ता मान चुके हैं।

(bbc.com/hindi)

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