विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
न्यायपालिका हमारे संविधान के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों में इस अर्थ में सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उसे संविधान के अन्य दो स्तंभों विधायिका और कार्यपालिका द्वारा बनाए और क्रियान्वित किए गए कानूनों की समीक्षा का अधिकार है। संसद द्वारा पारित कई कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की मूल भावना के विपरित मानते हुए असंवैधानिक करार दिया है। इलेक्टोरल बॉन्ड इसका ताजातरीन उदाहरण है। संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया प्रत्येक निर्णय अंतिम होता है और उसे देश भर का कानून मानकर लागू किया जाता है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अवमानना करने पर संबंधित व्यक्ति या संस्था के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। विगत में इसी तरह के मामले में सहारा समूह के तत्कालीन प्रमुख सुब्रत रॉय सहारा को तिहाड़ जेल में लंबी सजा काटनी पड़ी थी।
अभी हाल में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की शिकायत पर पतंजलि योगपीठ समूह के प्रमुख बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का समुचित अनुपालन नहीं करने की वजह से अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई थी। इन दोनों के सार्वजनिक रूप से विज्ञापन जारी कर बिना शर्त माफी मांगने पर सर्वोच्च न्यायालय ने इन्हें सजा नहीं सुनाई थी। हाल ही में इस मामले ने एक और करवट ली है। अब बाबा रामदेव और उनकी संस्था पतंजलि ने शिकायतकर्ता इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ अशोकन द्वारा पी टी आई को दिए साक्षात्कार की सर्वोच्च न्यायालय में शिकायत की है। बाबा रामदेव और पतंजलि द्वारा भ्रामक विज्ञापन और एलोपैथी की कटु आलोचना करने के मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की बैंच ने एलोपैथी के कुछ चिकित्सकों का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की थी कि जब आप किसी की शिकायत करते हैं तो आपकी तरफ भी उंगलियां उठती हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएसन के अध्यक्ष ने पी टी आई को दिए साक्षात्कार में सर्वोच्च न्यायालय की इसी टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। इसी सिलसिले में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने तलब किया था कि क्यों ना आपके खिलाफ सर्वोच्च अदालत की अवमानना की कार्यवाही की जाए। हालांकि सुनवाई के दौरान इंडियन मेडिकल एसोसिएसन के अध्यक्ष ने बिना शर्त माफी मांग ली है लेकिन मामले की सुनवाई कर रही बैंच इतने से संतुष्ट नहीं है।
आजकल यह फैशन सा बन गया है कि अपने खिलाफ या अपनी विचारधारा से जुड़े किसी व्यक्ति, संगठन या राजनीतिक दल के खिलाफ उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने पर नाराज़ लोग सोशल मीडिया पर न्यायालय की कटु आलोचना करने लगते हैं जो अदालत की अवमानना के दायरे में आता है। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट और इंडियन मेडिकल एसोसिएसन के मामले में भी यही हुआ है। यह मामला इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि इसमें शामिल दोनों पक्षों को सर्वोच्च न्यायालय ने अवमानना का नोटिस दिया है और दोनों ही पक्षों ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए बिना शर्त माफी मांगी है। सर्वोच्च न्यायालय के लिए भी यह संभव नहीं है कि वह अवमानना के सभी मामलों में कड़ी कार्यवाही कर सके इसलिए बहुत से अवमाननाकर्ता बिना सजा के छूट जाते हैं, लेकिन जब किसी प्रतिष्ठित पद पर आसीन लोग अवमानना करते हैं, जो राष्ट्रीय मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक हो जाता है, ऐसे मामले में सर्वोच्च न्यायालय का संज्ञान लेना ज़रुरी हो जाता है। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट बनाम इंडियन मेडिकल एसोसिएशन मामले पर भी राष्ट्रीय मीडिया की नजर थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मामले के बाद लोग सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करने से बचेंगे।