सामान्य ज्ञान
26 जून 1975 का दिन भारत के इतिहास का सबसे काला दिन कहा जाता है। इस दिन भारत में आपातकाल लगा था। लोकतांत्रिक भारत का काला अध्याय 21 मार्च 1977 को खत्म हुआ।
राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अनुरोध पर धारा 352 के तहत आपात काल की घोषणा की थी। आजाद भारत के दौर का यह सबसे विवादास्पद दौर माना जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे सबसे काले घंटों की संज्ञा दी थी। विपक्षी पार्टियों के लोग काफी समय से कांग्रेस पार्टी पर 1971 के चुनाव में धांधली का आरोप लगा रहे थे। जयप्रकाश नारायण और उनके समर्थकों ने छात्रों, किसानों, मजदूर संघों में समर्थन जुटा लिया। गुजरात में विपक्षी गठबंधन जनता पार्टी ने कांग्रेस को हरा दिया। इसके बाद संसद में भी उसे अविश्वास प्रस्ताव से जूझना पड़ा। 12 जून 1975 के दिन इलाहबाद हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया। सरकार ने उनके चुनाव को खारिज कर दिया। इतना ही नहीं छह साल उनके चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी गई।
देश भर में हड़तालें चल रही थीं। जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन दिल्ली तक आ पहुंचा। चार साल के बाद जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा गांधी के खिलाफ फैसला दे पाए थे। यही फैसला आपातकाल लागू करने का मुख्य कारण बना। सरकार ने सुरक्षा, पाकिस्तान के साथ युद्ध, सूखा, 1973 के तेल संकट का हवाला देते हुए इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया। सरकार ने दावा किया कि हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों के कारण देश की गति रुक रही है। पार्टी के मु_ी भर लोगों से इंदिरा गांधी ने बातचीत की। इसके बाद पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को देश में इंटरनल इमर्जेंसी लगाने की सलाह दी। उन्होंने राष्ट्रपति के लिए लेटर का मसौदा तैयार किया। लिखा गया कि आंतरिक अस्थिरता के कारण देश की सुरक्षा को खतरा है।
यह आपातकाल हर छह माह बाद बढ़ाया जाता गया। इसके बाद 1977 में चुनावों की घोषणा की गई। इस आपातकाल ने कांग्रेस को बुरी हार दिलाई और आजाद भारत में पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई । कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली। नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फ़ैसलों की जांच के लिए शाह आयोग गठित की गई। हालांकि नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरूनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे। इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई, लेकिन चली सिफऱ् पांच महीने। उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।